Friday, July 23, 2010

विशेषणवादी विनय !!!

विशेषणवादी विनय !!!

सर्वप्रथम विशेषण की परिभाषा :- जिस शब्द से किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता अथवा गुण का बोध हो उसको विशेषण कहते है !!!

जनाब ......आप लोग तो जानते है ही की हम खुद को "कलम घसीट" विनय पाण्डेय नाम से जानते है !
और आप को भी यही सलाह देते है की हमको आप कलम घसीट नाम से ही जाने पर कभी सोचा है आपने की आखिर यह कलम घसीट है क्या ?

नहीं सोचा ! तो कोई बात नहीं हम बैठे है न आपको समझा देंगे आप बस इत्मीनान से पढ़ते रहा कीजिये मुझ कलम घसीट को !!!

पहली बात तो हम चाइल्डहुड से ही काफी विशेषणवादी रहे है !

बगैर विशेषण के तो हमें रोटी तक हज़म नहीं होती ! अगर दिन भर में १० -२० विशेषण न लगा दे लोगो के नाम के आगे तो हमको नींद तक नहीं आती ऐसा इसलिए की हमारी दृढ मान्यता है की जिस इंसान के नाम के आगे विशेषण न लगा हो उसका समाज में कोई महत्व नहीं होता !

उदाहरण के लिए हमारे समाज में जिनके पास धन है , उन्हें विशेषण लगाने की खुजली चलने लगती है और सबसे सहज विशेषण है समाजसेवी !!!

एक बार हमने एक सांस्कृतिक संध्या आयोजित की अब आप तो जानते ही है अपने समाज में कोई भी काम बगैर खर्च के सफल नहीं माना जाता ! जिस काम में एक पैसा भी खर्च न हो , उसे हीन काम समझा जाता है !

उस संध्या के लिए हमे एक ऐसे धनिक की तलाश थी , जो खर्चे के लिए पैसे दे सके ! हमने मित्रों से चर्चा की हमारा एक बेवडा मित्र हमे एक दारु के ठेकेदार के पास ले गया !

हमने कहा - क्या यह ठीक होगा की एक नेक काम के लिए इन महाशय से धन लिया जाये ?

मित्र बोला - धन तो आखिर धन है !

बहरहाल , समस्या तो यह थी की धन प्राप्ति के पश्चात संबोधन हेतु इन महाशय के नाम के आगे विशेषण क्या लगाये अब दारु विक्रेता श्रीमान फेफड़ा चंद तो लिख नहीं सकते थे !

तभी हमारे मस्तिष्क में एक विचार आया हालाँकि इस बात की सम्भावना बहुत ही कम होती है की हमारे मस्तिष्क में कोई विचार आये किन्तु उस दिन सौभाग्य से आ गया !

और हमने भी तुरंत बिना देर किये कह दिया जुझारू प्रख्यात विख्यात संघर्षशील कर्मठ व्यक्तित्व फेफड़ा चंद और उसी दिन से दारु विक्रेता फेफड़ा चंद हमारे द्वारा दिए गए विशेषण से जगप्रसिद्द हो गए !

अब इसका यह मतलब कतई न निकाले की हम इसके एवज में उनके यहाँ फ़ोकट में दारु पीते है !

न ....भैया .....न !!!

ऐसा हो ही नहीं सकता क्योकि दारु पीने से लीवर खराब होता है !!!

पर यह तो फ़िल्मी डायलोग है !!!

इसलिए कभी कभार बैठ जाते है पर उसमे भी हम अपनी शर्तो पर ही बैठते है !

पानी का इस्तेमाल निषेध मानते है क्योकि एक जमाने में हम NIIT के विद्यार्थी थे !!! इसलिए नीट में बिलीव करते है !!! बहरहाल ,

विशेषण बड़े काम की चीज़ है !

हमारे एक युवा लेखक मित्र की रचनाओं को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !

वे तुरंत केश सज्जाघर गए और अपने काले बालों को सफ़ेद करवा आये !

हमने कहा - यार अभी तो तुम चालीस के ही हो अभी से यह सफेदी !

वे बोले - रचनाओं से नहीं तो कम से कम सफेदी से ही लोग वरिष्ठ लेखक मानना तो शुरू करेंगे !

उस दिन हमने एक विशेषण उनको भी चिपका दिया महाकवि और आज तक वो इसी महाकवि विशेषण के साथ लिख रहे है और बदस्तूर जारी भी है !!!

अभी पिछले दिनों एक भ्रष्ट अफसर के घर छापा पड़ा !!! नाम था सेनानी मूलचंद !!!
जनाब हद तो तब हो गयी जब उनके घर के दीवार पर बच्चो ने उनके नाम के आगे एक विशेषण लगा दिया !

"स्वतंत्रता" सेनानी मूलचंद !

बाद में पता चला की न वो सेनानी था न वो बलिदानी बल्कि आजादी के समय फौजदारी मामले में दो दिन जेल में बंद था !

बहरहाल , जरा कलाकारों का अभिनन्दन पत्र बांच ले , तो विशेषणों की भरमार से आपको गश आ सकता है !

एक नुक्कड़ कवि को सरस्वती पुत्र , ज्ञानमर्मज्ञ , साहित्य का पुरोधा , कवि कुल शिरोमणि , शब्द शिल्पी , ज्ञानदूत , प्रखर व्यक्तित्व न जाने क्या क्या लिख दिया जाता है !

बेचारा सच्चा लेखक तो यह विशेषण सुनकर चाहने लगता है की जमीन फट जाये और वो माँ जानकी की तरह उसमे समा जाये !!!

पिछले दिनों एक संयोजक महोदय मंच पर बैठी एक भद्र महिला के नाम के आगे विशेषण लगाने में इतने मस्त हो गए की उन्हें ज्ञानेश्वरी के साथ साथ हृदयेश्वरी और चुम्मेश्वरी तक कह गए !!!

फिर क्या था ?

उस भद्र महिला ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया और उस संयोजक महोदय के नाम के आगे विशेषण ही नहीं बल्कि वास्तविक विशेषण लगा दिया " जूतम पैजार " !!!

सन्देश :- हे गुणिजनों , ज्ञानधाराओं, अतुल्य , अग्रिणी , अद्वितीय ,अद्भुत , श्रेष्ठ , आदरणीय लेखको आप लोग अपने ज्ञानेश्वरी , चुम्मेश्वरी ब्लॉग लिखते रहिये !!!

ताकि मुझ जैसे दरिद्र ब्राह्मण सतुवा पान पर जीवित कलम घसीट के विशेषण देने की भूख बरकरार रहे ! और कृपया कर मेरे द्वारा दिए गए विशेषणों को व्यंग्य न समझे वह वास्तविक होते है !!!

आफ्टर आल इट्स माय चाइल्डहुड प्रॉब्लम !!!

नमस्कार !!!

आपका अपना

सतुवा पान पर जीवित कलम घसीट विनय पाण्डेय !!!

अब आप लोग विशेषण लगा सकते है मेरे नाम के आगे !!!

Sunday, July 4, 2010

पान खाए सैयां हमारो !!!

पान खाए सैयां हमारो !!!

पान खाए सैयां हमारो !!! सावली सुरतिया होठ लाल लाल !!! हाय हाय मलमल का कुर्ता !!! मलमल के कुर्ते पर छींट लाल लाल !!! पान खाए सैयां हमारो..............

चली आना तू पान दूकान पे !!! साढ़े हुम...
साढ़े हुम.... साढ़े तीन बजे !!! औ रस्ता देखूंगा मैं पान कि दूकान पे !!! साढ़े तीन बजे !!!

हालाँकि , पान हम शौकिया कभी कभार खा लेते है !!! वो तब जब कि हमारे सामने वाला हमको खिला रहा हो !!! वरना अपने पैसे से तो हम जहर भी नहीं खरीद सकते !!! पर पान का सामाजिक , आर्थिक , और राजनैतिक महत्त्व उस दिन पता चला , जब रज्जू पान वाले के इनकम टैक्स का छापा पड़ा !!! शहर के अखबार में उस दिन यह बैनर न्यूज़ थी !!!
खबर पढ़ते ही आधा शहर सुन्न हो गया !!!
छापे का मतलब यह सिद्ध हो जाना कि रज्जू पैसे वाला है !!!
हमारे शहर में कई व्यापारी चाहते है कि कभी उनके यहाँ भी छापा पड़े !!! कम से कम जात बिरादरी वाले यह तो जानेंगे कि उनके पास भी माल है !!!
छापे के बाद जैसे ही हम रज्जू कि दूकान पर पहुंचे उसे हमेशा कि तरह चहकता हुआ पाया ! दरअसल , रज्जू और हम एक साथ स्कूल में पढ़े थे !!! दसवी करने के बाद उसने पान कि दूकान संभाल ली और हमने कलम !!!
शुरू शुरू में हम रज्जू को हेय दृष्टि से देखते थे , लेकिन एक दिन उसने एक दोहा पढ़कर हमारी सारी हेकड़ी उतार दी !!!
उस दिन हमने पान खा कर रज्जू से कहा :- रज्जू यार यह भी कोई काम है ???
उत्तर में रज्जू ने मुस्कुरा कर देखा और कहा :-
गुलामी कि जंजीरों से स्वतंत्रता कि शान अच्छी है ,
हज़ार रूपए कि नौकरी से तो पान कि दूकान अच्छी है !!!
कसम बनारसी पान कि !!! यह सुनते ही हमारे ऊपर मानो सौ घड़े पानी पड़ गया और हमने पान के बारे में सोचना शुरू कर दिया !!!
हमको लगा कि किसी भी शहर कि धड़कन उसके चौराहे है !!! और चौराहे कि शान पान कि दूकान है !!! पान कि दूकान किसी भी चौराहे पर ऐसी सजी होती है जैसे किसी सुंदरी के नाक में मोती !!! पान कि दूकान पर शहर के अधिकतर लोग आते है !!! गपियाते है !!! क्या आप जानते है इन दुकानों का राजनीती में बड़ा ही महत्व है !!!
नेताओ कि कारगुजारियों पर भी यहाँ खूब चर्चा होती है !!! पान कि दूकान का महत्व इसलिए भी है कि हमारे यहाँ कोई भी पवित्र काम हो , पान का हरा पत्ता जरूर चाहिए !!! शादी तो बिना पान के हो ही नहीं सकती !!! दूल्हा घोड़ी पर तब बैठता है जब उसे पान का बीड़ा खिला दिया जाता है !!! और असली रसिक व्यक्ति वह माना जाता है गर्मियों कि रात में मलमल का कुर्ता पहना हुआ हो और उसपर पान के छीटे पड़े हो !!! पान खाए सैयां हमारो , मलमल के कुर्ते पर छीट लाल लाल !!!
रही पान के सामाजिक महत्व कि बात तो जो आदमी प्रतिदिन शाम को घंटे - आध घंटे पान कि दूकान पर खड़ा होता है !!! तो दोस्ती भी हो ही जाती है !!! इसलिए जनाब पान कि दूकान को कम मत आंकिये !!! चलता हूँ आज रज्जू स्पेशल पान खिलाने वाला है !!! फिर मिलेंगे !!!
नमस्कार !!!

Tuesday, June 15, 2010

मनमौजी के आंसू !!!
गली गली मैं तुझे ढूंढ रहा !!! नाम पता तेरा पूछ रहा !!! किस नम्बर पर करूँ टेलीफून !!! दिल में तलाश तेरी सिर पर जूनून !!! अफला....अफला.......अफला तून अफलातून............ मैं हूँ अफलातून !!!
पिछले महीने हमे वो एक दावत में मिले थे !!!
उनकी काया कि विशाल गोलाई देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि देश में खाने पीने कि चीजों कि महंगाई में इजाफा क्यों होता जा रहा है !!!
उन्हें हम बरसो से जानते है !!!
वे कहते है कि फकीर कि गाली , औरत के थप्पड़ और विदूषक के मजाक का कभी बुरा नहीं मानना चाहिए और परायी दावत में तो खूब दबा कर खाना चाहिए !!!
लेकिन अब उन्हें देख कर हम हैरत में पड़ गए !!!
पहले तो हम उनको पहचान ही नहीं पाए !!!
आप एक विशाल चट्टान को एक मरियल से टीले के रूप में देख कर कैसे पहचान सकते है ?
अगर उन्होंने हमारा हाथ न थामा होता, तो हम उनके पास से ही गुज़र जाते !!!
आश्चर्य से हमारा मुहँ खुला का खुला रह गया !!!
माफ़ करना हम आपको उनका नाम तो बताना ही भूल गये जनाब मनमौजी साहब !!!
आज हम उनको ही खदेड़ रहे है !!!
ओह हो !!!
माफ़ करना कृपया आप हमारे इस स्लिप ऑफ़ फिंगर को नज़रंदाज़ करे !!!

हमारे कहना का आशय यह था की आज हम उनके ही दर्द से आपको रूबरू करवा रहे है !!!
वे फीकी मुस्कराहट के संग बोले :- अफलातून !!! सब इस चटोरी जुबान कि वजह से हुआ है !!!
उस दावत में जिसमे हम और तुम मिले थे वह हमारी आखरी दावत थी !!!
दरअसल उस पार्टी में खाना इतना लजीज बना था कि हम अपने पर काबू नहीं रख पाए !!!
खाते रहे !!! खाते रहे और इतना खाया कि घर पहुँचते ही पेट ने विद्रोह कर दिया !!!
परेशान घरवाले हमें एक L P Truck में डालकर दवाखाने ले गये !!!
हमे ठीक से याद नहीं पर शायद उस दिन मिनी ट्रक हड़ताल पर थे !!! और कोई फायदा भी नहीं होता क्योकि हम उसमे आते भी नहीं !!!
उसी वक़्त हमे देख !!!
डॉक्टर ने ढोल बजाकर यह घोषणा कर दी कि अगर आज के बाद आलू ,चावल , अचार , पापड़ , मावा , मिष्ठान , पूड़ी , परांठे , मिर्च के कोफ्ते , समोसा , कचौड़ी , कलाकंद जैसा कुछ खाया तो हमारी आत्मा काया का पिंजड़ा छोड़ कर तुरंत गायब हो जाएगी !!!
फिर क्या था ? घरवाली ने सब बंद कर दिया !!!
बस अब थोडा सा घास फूस खाने को मिलता है !!!
चार महीने में ही सूख कर काँटा हो गए है !!!
हमने कहा :- भाभी जी ने जो कुछ भी किया वह आपकी सेहत के लिए किया अथवा आपकी भलाई के लिए ही किया है !!!
यह सुनते ही उनकी आँखों में आंसू छल छला आये !!!

बोले :- यार अफलातून !!!
वह तो ठीक है , पर ऐसा जीना भी क्या जीना !!!
एक जमाने में, मैं मनमौजी शहर का नामी चटोरा था !!! यूँ ही मेरा नाम मनमौजी नहीं पड़ा !!!
मैं आज भी बता सकता हूँ कि शहर कि किस गली में

गरमागरम जलेबियाँ किस वक़्त मिलती है !!!
टमाटर के कोफ्ते कहाँ बनते है ?
कौन सा हलवाई बाल्टी भर मिर्च के पकोड़े बनाता है जो दो घंटे में साफ़ हो जाते है !!!
किस चौराहे पर पपड़ी और आलू का साग मिलता है , जहां शहर वाले भुखमरो कि तरह टूट पड़ते है !!!

नारियल की !!! काजू की !!! खोये की बर्फी कहाँ बनती है ? और रबड़ी के लच्छो का तो कहना ही क्या ?
कौन सा हलवाई है जो मावे को मंदी आंच पर भूनकर ऐसी सुनहरी बर्फी बनाता है जिसे खाकर स्वर्गीय आनंद प्राप्त होता है !!!
मुझे यह भी पता है की किस गली में कितने नम्बर की दूकान पर खस्ता गोलगप्पे चाट मिलते है !!!
और किस मंदिर के सामने भेल पूड़ी और पावभाजी का ठेला लगता है !!!
पराठे वाली गली में कब ? कितने बजे ? आलू का पराठा बनता है !!! कब गोभी का पराठा बनता है !!! कब मेथी का परांठा बनता है !!! और कितने बजे आलू नान , बटर नान बनता है ?
लेकिन हाय !!! अब सब कुछ हवा हो गया !!! घरवाली दावतों में जाने नहीं देती !!! फ्रिज पर ताला लगाय रखती है !!! सब छूट गया !!! लेकिन इस पापी जुबान का क्या करूँ ? इतना कह कर वो रो पड़े !!!
हम समझ नहीं पा रहे थे की इस शहर में हम मनमौजी के आंसू को कैसे रोके ?
दरअसल उनकी बात सुनकर हमारी भी जुबान लपलपाने लगी थी !!!
विशेष अनुरोध :- यदि आप लोग अपने घर में कभी कोई उत्सव !!! शादी विवाह !!! पार्टी इत्यादि का गठन करे तो दो न्योते जरूर भेजे मनमौजी और अफलातून को !!! एक बार सेवा का मौका अवश्य दे !!!
हम है रही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते.....धन्यवाद !!!

Wednesday, May 19, 2010

देहाती ज्ञान !! दे हाथी ज्ञान !!

अरे............... ऐ रामअवध ....ऐ रामदुलारी !!!

अरे ....................औ.. भौजाई कहाँ हो ? अकेल अकेल कहाँ जात बाणु .....तनी रउवा संग बतिया ला शहरिया से आये है ...!!!

मिश्र जी ....का मर्दवा तुहू जौन हउवा ना.... लावा तनी चुनौटी - वुनौटी दा ढेर दिन हो गईल बानी शुर्तियाँ खाए !!!

अरे ऐ............ संग्ठा ले आवा ऐहरे ले आवा आपन घटियवा तनी बैठल जाई..और पिंकिया कि अम्मा से तनी कह दा कि दुई चार लोटा गुड का रस बना ले आजले मिल बैठकर सब लोगन गुड का रस पियल जाई ! कहो कैसा पिलान है ?

रामअवध :- कहो भैया पाणे चाय वाला ! का बात है ? आज बड़े ही खुश दिख रहे हो ? कौनो बिशेष बात भैय्ल का !

पाण्डेय चाय वाला : अरे हाँ भैया ! आज हम देहाती ज्ञान देंगे तुमका !

रामअवध :- ऐसा क्या ? ता फैकिये पाणे भैया ! हम तुम्हरे साथ है और पूरा गाँव तुम्हरे साथ है !
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लीजिये साब ...."देहाती ज्ञान" ! अब इसको यह मत कहना की "दे हाथी ज्ञान" !

आप हमारी तस्वीर देखकर अंदाज़ा लगा सकते है की हम कैसे हाथी है ?

गलती से छींक भी मार दोगे तो पतंग जैसे गंगन विहार करने लगेंगे हम !

भला इस "विकास दर" के माहौल में हाथी भी पचास किलो का रह गया है अब तो कुछ करो ! बहरहाल ,

विकासदर
हम डॉ मनमोहन सिंह , प्रणब मुखर्जी , और मोंटेक सिंह आहलुवालिया जैसे अर्थशास्त्री तो है नहीं , हम तो भारत देश में रहने वाले सामान्य नागरिक है !

अभी तक तो हमारा प्रवेश "इंडिया" तक में नहीं हुआ है ! अब देहाती क्या जाने अंग्रेजी ?

लुटियन के टीले पर रहने वाले मानव रत्नों के बारे में तो हम सात जन्मो तक नहीं पहुँच सकते ! अलबत्ता हम भी इसी देश के सभ्य नागरिक है , संविधान की मोटी पुस्तक में वर्णित अधिकार हमारे पास भी है !

हम भी चौराहे पर खड़े होकर किसी को भी गरिया सकते है ! किसी के खिलाफ लिख सकते है !

इसके बावजूद हमे "विकास दर" का गणित अभी तक समझ नहीं आया ! पीएम् साब कह रहे है की गरीबी हटाने और युवाओ को रोज़गार देने के लिए दस फीसदी विकास दर की आवश्यकता है !

हम तो मोटी सी बात यह समझते है की इसका अर्थ है इस साल जितनी आपकी आमदनी है , उसमे दस फीसदी इजाफा हो जाये तो आपकी विकास दर दस प्रतिशत हो गयी !

लेकिन साब ऐसा होता है ?
हमारे देश में तो विकास दर की गतियों में भी उतना ही अंतर है ,जितना सिविल लाइंस और गरीबों की कच्ची बस्ती की सड़कों में !

एक तो एकदम फिल्म तारिका के कपोलों की तरह चिकनी और दूसरी किसी उजाड़ बंजर मैदान की तरह खुरदरी !

जहां तक विकासदर की बात है वो भी उतनी ही असंतुलित है की पूछो मत !

अपने चुकंदर मल का बेटा छछूंदर सरकारी आरक्षण पाकर सिविल सर्वेंट बन गया ! दो बर्ष में ही चुकंदर जी के ठाठ हो गये ! टाट के कपडे की जगह मखमल के परदे लग गए ! खुरदरी खादी की जगह बंगाली मखमल के कुर्ते बन गए ! चना - सत्तू की जगह काजू - किशमिश चबाने लग गए ! राम कसम ऐसी विकासदर तो विकासशील देशो की भी नहीं थी !

अगर कोई आदमी थर्ड हैण्ड मोपेड की जगह लक्जरी कार खरीद ले , तो आप उसकी विकास दर की कल्पना कर सकते है ?

ज़मीन - जायदाद का अवैध धंधा करने वालो की विकासदर को देखिये ! कल तक जुगाड़ चलाने वाले को आज "बी एम् डब्लू " में बैठा देख............... हमे गश आ गया !

विकासदर देखनी है तो अपने नेता और जन प्रतिनिधियों को देखिये ! विकास दर का अध्ययन करना हो तो उत्तरप्रदेश की रानी बहन जी का अध्ययन कीजिये ! विकासदर की असीमित गति तो भ्रष्टाचारी अफसरों के घर देखी जा सकती है !

बहरहाल , सुयोग्य पुत्रियों के ईमानदार पिता मनमोहन सिंह एक पढ़े लिखे अर्थशास्त्री की तरह देश के विकासदर की बात करते है ! तो हमे थोड़ी हैरत होती है ...हैरत इसलिए की अब उन्हें इस देश का प्रधानमन्त्री बने काफी अरशा हो गया है ! अब तक तो उन्हें भी इस देश के भ्रष्ट अधिकारियों , बेईमान नेताओ ,और चालबाजो की विकास दर दिखाई देने लगी होगी !

नहीं तो , हम उन्हें उस प्रदर्शनी में लेकर चल सकते है जिसके लिए एक शायर दुष्यंत ने कहा है

" कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए ,हमने पूछा नाम तो बोला :- हिन्दुस्तान ! "

रामअवध :- का कह रहे हो भैया ! ऐसा गज़ब खेला होत है शहरिया में....
ए भैया अब कि बार हमका भी लिवा चलो शहरिया अपने संगे !

पाण्डेय चाय वाला :- हुमम म म म म म !

का बोलते हो आप ले आवे इनको शहरिया ?

Friday, May 14, 2010

पाण्डेय चाय वाला !!!

लीजिये हुज़ूर संभालिये ! एक दम पुराना और बासी प्रोडक्ट लेकर आया हूँ ! अब ताज़े कि उम्मीद तो मुझसे कीजियेगा नहीं क्योकि अपने धंधे का एक ही उसूल है "बासी माल टिकाना ताज़ा माल छिपाना"

हाँ ! तो साब और मेमसाब कौन सी चाय पियेंगे रामदुलारी चाय , राम बिसारी चाय , रामकली चाय , लाची वली चाय , बिना लाची वाली चाय, स्पेसल चाय !

समोसा , कचौड़ी , पकौड़ी , गरमा गरम टिक्की सौ प्रतिशत बासी कि गारंटी के साथ !

जी जनाब ....यस सर ....हाज़िर महोदय !!!

जनाब , जब हम तीसरी क्लास में पढ़ते थे तो प्रार्थना के बाद पहले पीरियड में क्लास टीचर महोदय हमारी हाजरी लेते थे !

वे बोलते - गंगुलाल ! तो "गंगू" उठकर बोलता - उपस्थित महोदय !
"गंगू" यह शब्द बोलता तो "नंगू" यस सर कहता !
"प्रेमू" हाज़िर जनाब बोलता तो "नरेश" जी हाँ श्रीमान कह कर अपनी उपस्थति दर्ज करवाता !

अर्थात कक्षा में पूरी तरह लोकतंत्र विद्यमान था !

लेकिन कभी कभी कोई अकडू अध्यापक आता तो वह सभी को एक जैसे शब्द बोलने पर मजबूर कर देता जैसे "उपस्थित हूँ गुरुदेव"!

कक्षा में हाजरी के समय उपस्थित रहना ऐसा अनुष्ठान था जैसे पाणिग्रहण संस्कार के वक़्त वर वधू का !

कक्षा में हाज़िर रहने वालो कि संख्या प्रतिदिन नब्बे प्रतिशत से ऊँची रहती थी !
बाद में स्कूलों के मॉनिटर अर्धविश्राम के बाद भी हाजरी लेने लगे !
कॉलेज में तो हर पीरियड में ही उपस्थति ली जाती थी ! यहाँ ज्यादातर बच्चे गायब रहते थे और विषय प्राध्यापक अक्सर उनके अनुपस्थित रहने पर भी उपस्थति लगा देते !

तब स्कूल - कॉलेज के रजिस्टर को सच्चा दस्तावेज माना जाता था !

एक बार हम अपने चंट दोस्तों के साथ सलीमा देखने चले गए ! वहाँ दोस्तों ने सलीमा कर्मचारी को बिना डिटर्जेंट के धो दिया !

पुलिस केस हुआ ! लेकिन हम उस पुलिसिया चक्कर से इसलिए बच गए क्योंकि अध्यापक जी ने रजिस्टर में हमारी हाजरी लगा रखी थी ! यानी उस वक़्त हम सलीमा घर में नहीं वरन कक्षा में मौजूद माने गए !

लेकिन अब देखिये कक्षाओ में छात्रों को जाने के लिए बेचारे मंत्री महोदय को छात्रों को बोनस अंक देने पड़ रहे है !

क्या आप बता सकते है कि छात्र कक्षा में क्यों नहीं आते ?

इसलिए नहीं कि वो पढना नहीं चाहते ! दरअसल उन्हें ढंग से पढाया नहीं जाता ! गुरु जी को कालेज में राजनीति करने से फुर्सत मिले तो पढाये ! गुरूजी परनिंदा में डूबे रहते है !

वे इस बोर तरीके से पढ़ाते है कि बच्चे उनकी कक्षा में ऊँघने से बेहतर मेरी कैंटीन में बैठ कर बासी समोसा और स्पेसल चाय पीना ज्यादा पसंद करते है !

हमारी मित्रा ,सखी, सहेली.... संगीता जब बीच सत्र में अपनी पढाई से संन्यास लेने कि घोषणा कि तो हमने उसको सत्र पूरा करने के बारे में समझाया !

उत्तर में संगीता हमसे प्रश्न कर बैठी - अबे मलीहाबादी आम !

( कृपया आप इस संबोधन शब्द को नज़रंदाज़ करे ! वो स्नेहवश मुझको मलीहाबादी आम कहती है वो ह्रदय कि बुरी कतई नहीं है ! )

मैं क्यों पढूं ? ना तो मुझे पढाई में रस आता है, ना गुरु जी हमको ढंग से पढ़ाते है , ना इस पढाई से मेरा कोई लाभ होने वाला है , जब पढने से कुछ भी हासिल नहीं तो मैं क्यों पढूं ?

यह सवाल तो ऐसे था जैसे जून कि दोपहर में कोई आग जला कर तापे !

तो साब चाहे कितना भी कर लो पर जब तक ससुर पढने में आनंद नहीं आएगा , पढने से फायदा नहीं होगा ! कौन पढने में रुचि लेगा भला ? आग लगा दो क्लास को !

पर कुछ भी कहो अपना बासी माल बिकता तो खूब है !

अपील :- शिक्षा जगत में सुधार कीजिये मंत्री महोदय अन्यथा ब्लैक बोर्ड होंगे ! सीटे होंगी ! अध्यापक होंगे ! रजिस्टर होंगे पर जी जनाब ! यस सर ! हाज़िर महोदय ! हाँ श्रीमान बोलने वाले विद्यार्थी नहीं होंगे !!! होगा तो सिर्फ पाण्डेय चाय वाला ..........

एक बार सेवा का मौका अवश्य दे ! आज नकद कल उधार !
पिछला हिसाब clear कर दीजिये साब !

Wednesday, May 12, 2010

खीर पूड़ी !!!

कोई सही शीर्षक नहीं मिल रहा था सोचा क्यों ना खीर पूड़ी का एक पहलू बता दूँ आपको कि हमारे बड़े बुजुर्ग क्यों कहते थे की बंद मुठ्ठी लाख की और खुल गयी तो ख़ाक की !

इसीलिए पुराने लोग अपनी तिजोरी और संदूक किसी को नहीं दिखाते थे !

सामने वाला अंदाज़ा ही लगाता रहता की इस तिजोरी में कितना माल है, चाहे उसमे रुपयों की जगह रद्दी कागज ही क्यों ना भरे हुए हो !

हम एक ऐसे सेठ जी को जानते है जिनके बारे में यह प्रसिद्द था की उनके पास बड़ा भारी धन है लेकिन जब वे मरे तो पता चला की उनके ऊपर लाखो का कर्जा है !

बंद मुठ्ठी कहते किसे है ? ऐसी बात जिसके बारे में अनुमान लगाना मुश्किल हो ! समझदार ऐसा तमाशा करते है की सामने वाला यह तय ही नहीं कर पता की इसमें कितना सच है और कितना झूठ !

अब देखिये अपनी नादानी से अपनी बहन जी ने अपने करिश्मे की पोल खोल दी ! अपने गले में मुसीबत की माला पहनकर ....उनके ही प्रदेश में बच्चो को शिक्षा नहीं मिल रही है क्योकि धन की कमी है किन्तु माला पहनने के लिए धन की पूर्ती भी हो जाती है !

बहरहाल , अपने यहाँ तो चमत्कार को नमस्कार किया जाता है !

महान वीर और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माने जाने वाले अर्जुन के भी इतने बुरे दिन आये कि जब वे विधवा यादव स्त्रियों को ले जा रहे थे तो उन्हें साधारण लुटेरों ने लूट लिया !

रणभूमि में अपने धनुष कि टंकार से लोगो के कान बहरे कर देने वाला अर्जुन टापता ही रह गया !

इसी हाल पर अपने चचा ग़ालिब ने कहा है - बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले .....!

हमे एक सच्ची कथा याद रही है ...एक वृद्ध दंपत्ति थे जिनके चार बेटे थे ! बूढ़े माँ बाप को कौन रोटी खिलाये, इस बात को लेकर बहुएं दबी दबी जुबान में बड़बड़ाती रहती !

उनकी मंशा भांप एक दिन बूढ़े बाप ने कहा पुत्रों ! मैं तुम्हारी माँ के साथ अलग रहना चाहता हूँ ! मैं अपना सब कुछ तुमको सौंप रहा हूँ बस यह संदूक अपने साथ ले जा रहा हूँ !

बेटे ने देखा कि पिताजी के पास इतना मज़बूत संदूक है जिसपर मोटा सा ताला लटक रहा है ! उसने सोचा इसमें जरूर जेवर दौलत है !

उसने तुरंत कहा पिताजी : आप मेरे साथ रहिये ! एक भाई कि बात सुन बाकी भाइयों के कान खड़े हो गए ! वे भी पिताजी को अपने साथ रखने के लिए उत्सुक हो गए बहुएं भी अपने सास ससुर को रोज़ रोज़ खीर पूड़ी बनाकर खिलाने लगी !

वक़्त गुज़रता गया एक दिन बूढ़ा मर गया लेकिन संदूक कि चाबी बुढ़िया को सौंप गया और बुढ़िया को समझा गया कि संदूक को भूल कर भी ना खोले ! फिर एक दिन बुढ़िया भी राम को प्यारी हो गयी तेरहवी के बाद लडको ने संदूक को खोला तो उसमे धातु के कबाड़ के साथ एक पत्र मिला जिसमे लिखा था -

बेवकूफों ! मैं जानता था तुम लोग बड़े स्वार्थी हो ! बस इसीलिए मैंने बड़े ताले वाला खाली संदूक अपने साथ रखा था ! अब इस संदूक को अपने माथे पर रख कर ज़िन्दगी भर नाचो और हो सके तो आज से ही तुम लोग भी एक संदूक रख लो ताला लगा कर ताकि कल तुम्हारे बच्चे तुमको भी अपने सिर आँखों पर बैठा कर रखे !

तुम्हारा स्वर्गवासी बाप !

तो बंधुओ ....हम तो यही कहेंगे कि अपने माता पिता कि सेवा आज से ही शुरू कर दीजिये और फिर देखिये पत्थर कि मूरत भी फीकी लगने लगेगी !

अच्छा तो चलते है खीर पूड़ी के न्यौते पर आमंत्रित करना ना भूले ! सोच क्या रहे है ...? जल्दी कीजिये !

Wednesday, April 28, 2010

'विनय' से बचो ........

'विनय' से बचो ........

( विनय भाई रसिक भाई मेहता) से हमारी मुलाकात नवरात्रि के दौरान खेले जाने वाले डांडिया समारोह में हुई थी !

हम अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेल रहे थे कि अचानक

सिल्क का कुर्ता-पायजामा पहने एक अर्ध गंजे पुरुष डंडे बजाते हुए हमारे बीच में कूद पड़े और हमे एक तरफ कर के हमारी उपस्थिति में ही हमारी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेलने लगे !

हम अपना कलेजा जलाते हुए एक तरफ खड़े रहे कसम से अगर उस दिन हमारे हाथ में डांडिया के बजाय खुरपा होता तो उनके बचे खुचे बाल भी छील देते !

खेल ख़त्म होने पर हमारी गर्लफ्रेंड ही उन्हें हमारे पास लायी और

बोली - देखो विनय ...यही है विनय भाई रसिक भाई मेहता !
V.M Boutique के मालिक जिनसे मैं अपने ड्रेस लेती हूँ !

विनय भाई को देखते ही हम समझ गए कि यह पैदाइश ही रसिक है !

बहरहाल , उस दिन से हमारी विनय भाई रसिक भाई मेहता से मित्रता हो गयी ! वही विनय भाई अभी दो दिन पहले हमारे घर आये और

बोले - मैं अपना नाम बदल रहा हूँ ! हमने चौंक कर कहा क्या कहते हो विनय भाई ? आपका नाम तो इतना चोखा है ! इतना झकाश है ! इतना सोलिड है ! बिलकुल हमारे नाम से मिलता जुलता !

वे बोले - यही तो रोना है ...कि हमारा नाम बिलकुल आपके नाम जैसा है कल तक जब हम आपको नहीं जानते थे तब तक तो ठीक था किन्तु अब तो दाल रोटी के भी वांदे पड़ गए है !

जो लोग बुटिक पर आते है हमारा नाम पूछ कर ऐसे भाग जाते है जैसे हमने अपना नाम नहीं कोई विस्फोटक सामग्री का नाम ले दिया है ....

पूछताछ करने पर पता चला कि यह वही विनय है ना जो ब्लॉग जगत में लोगो को झेलाता है ! और तो और हमने सुना है विनय नाम के दो ठग भी पकडे गये है पिछले दिनों .....

विनय भाई कि बात सुनकर हम भी चक्कर में पड़ गए क्या सचमुच विनय नाम का इतना खौफ है ?

अचानक हमे विनय भाई से डर लगने लगा ! अपनी घबराहट को छिपाते हुए हम

बोले - विनय भाई ! नाम में क्या रखा है ? यह तो संयोग मात्र है ! अब देखो हमारे नाम कि विडंबना भी ऐसी ही है ! कानपुर में हमारा नामकरण हुआ बड़े प्यार से हमारी मौसी मधु पाण्डेय जी ने नाम रखा विनय पाण्डेय बड़े हुए तो हमारी कक्षा में विनय नाम के तीन छात्र थे ! दुष्कर्म वो करते थे और मरम्मत हमारी हो जाती थी !

और बड़े हुए तो विनय नाम का हमारे मोहल्ले में एक लड़का और भी था लड़कियां वो छेड़ता था फिर उस लड़की के भाई हमको लात मुक्को से छेड़ जाते थे !

पर जनाब हमने कभी बुरा नहीं माना क्योकि कभी कभी फायदा भी हो जाता था इस नाम का, हम भी सीटियाँ बजा लेते थे और फिर बज दुसरे विनय कि जाती थी !

परीक्षा में परचा खाली हम छोड़ देते थे और उसी पर्चे में हमको सबसे ज्यादा अंक भी मिल जाते थे !

और जब से ब्लॉग लिखना शुरू किया तो हमसे पहले ही यहाँ विनय नाम के दो तीन दिग्गज बुद्धिजीव मौजूद थे ! और हमारे भोले भाले पाठक आज तक Confusion में उनका नाम पढ़कर हमे पढ़ जाते है !

तो बोलिए जनाब विनय नाम के फायदे है कि नहीं , बहरहाल विनय भाई तो चले गए पर जाते जाते एक विचारणीय प्रश्न दे गए कि क्या वाकई विनय से बचो ?

अब यह तो आप जानो हमारा तो खैर नाम है ही विनय पाण्डेय किन्तु कुछ अति बुद्धिमान हमको भूत अथवा ना जाने क्या क्या समझते है !

जय राम जी कि ......

Wednesday, April 21, 2010

मंगल + पाण्डेय

मंगल + पाण्डेय

^^ घरवाली आँगन में गावे
मंगल भवन अमंगल हारी
देश के लूटा बारी-बारी
जियो बहादुर खद्दरधारी .........^^
जनाब यह मेरी सोच नहीं है , आप तो ख्वामखा नाराज़ हो रहे है ! यह तो मैंने कभी हास्य कवि सम्मेलन में सुना भर था और चिपका यहाँ भर दिया !

हुआ यूँ कि आज मैंने निर्णय लिया कि मैं मंगल कि बजाऊं.........
तो जाहिर सी बात है कि मंगल का जिक्र भी होगा !

क्या कहा ? मैं मंगल पाण्डेय कि बात करूँ !

अजी रहने दीजिये किसी फ्लॉप फिल्म कि क्या बजाए जिसकी जनता जनार्दन ने पहले ही बजा दी !

क्या ? क्या ? आप फिल्म कि नहीं उस वीर क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय कि बात कर रहे है जिन्होंने 1857 कि क्रांति का सूत्रपात किया था !

अजी साहब उनके बारे में कुछ कहना मेरे कलम के बस कि बात नहीं है वो तो महान थे और मैं ठहरा छोटा सा जीव...

मैं बेचारे मंगल ग्रह कि बात कर रहा हूँ !
क्या पूछा आपने ? कि मंगल पर जीवन है कि नहीं ?

कमाल करते है आप भी मेरा नाम गूगल पाण्डेय नहीं विनय पाण्डेय है ! अगर मंगल पर जीवन तलाशना है तो जाइए गूगल में सर्च मारिये ...सारी जानकारी फ़ोकट में मिलेगी !

हाँ जी अब सही समझा आपने वही मंगल जिसका शादी ब्याह में उतना ही महत्व होता है जितना पंडित , मौलवी और पादरी का !

मंगल का खेल भी बहुत ऊँचा होता है ! किसी कि कुंडली में नीच का मंगल तो किसी कि कुंडली में ऊँच का मंगल !

मांगलिक कन्या के लिए मांगलिक वर ही देखा जाता है ! अगर मंगल ग्रह वधू का भारी तो वर के कैरियर कि समझो लग गयी....................... वाट !

क्षमा करे ! हमारे इस तरह के वक्तव्यों से आप यह ना समझे कि हम आजकल ब्राह्मणगिरी अथवा ज्योतिष शास्त्र का अध्यन कर रहे है !

ना जी ना ..... हमारी कुंडली में तो पहले ही शनि वक्री चल रहा है राहू घर कि तलाश में बैठा है और केतु ना जाने कब से हिचकोले ले रहा है ! हम तो बस यूँ ही मंगल के साथ दंगल कर रहे थे !

अपने देश को तो हम पहले भी कह चुके है कि हम घोंचुओ का देश मानते है ! अब घोंचू का अर्थ आपको भी बता चुके है !
लीजिये अभी पिछले वर्ष कि बात याद आ गयी हमारे मोहल्ले में एक सज्जन कि बेटी कि शादी तय हुई , कुंडली मिलान भी हुआ पता चला कि लड़की का मंगल भारी है और यह भारीपन लड़के के कैरिएर पर भारी रहेगा और इस वजह से शादी तोड़ दी गयी थी !

बहरहाल , कर्म से तो नहीं किन्तु जन्म से तो हम भी ब्राह्मण है और इतना दावे के साथ उस वक़्त हम कह चुके थे कि यह मंगल भारी तो पड़ेगा ही किन्तु वर-वधू के जीवन पर नहीं वरन समाज के दकियानूसी रिवाजो पर, कुंडली मिलाने वाले पर , भविष्य बताने वाले पर और उनके मात पिता पर जिन्होंने महज इस वजह से दो प्रेमियों को अलग कर दिया क्योकि मंगल भारी था !

और फिर हुआ भी यह ही ( वर -वधू ) दोनों ने अदालती शादी कर ली वह भी घर से भाग कर और जज साहेब को वजह बताया कि मंगल भारी था !

अब आप खुद बताइए मंगल किसपर भारी हुआ ?

यकीन नहीं मानेंगे पर बात एकदम पुख्ता है मंगल उनपर ही भारी हुआ जिनपर हमने अंदाज़ा लगाया था !

आज एक साल बाद दोनों मियाँ बीवी घर लौटे वो भी खुश साथ में एक आनेवाली खुशखबरी के .....

इसका मतलब फिर से फ़ोकट का खाना मिलेगा इस दरिद्र को !

तो भैया ...यह जो दो पैर का जंतु है ना ...इंसान यह बड़ी शातिर चीज़ है अपने कर्मो का फल ग्रहों पर डाल देता है !

अजी मंगलमुखी सदा सुखी ! मंगल तो कभी किसी का अमंगल करता ही नहीं बस यह इंसान ही है जो मंगल से दंगल करता है और नाम बेचारे मंगल का लगा देता है !

अगर मंगल को कोई आपत्ति होती तो भला नासा के लोग जो उसके पीछे हाथ धो कर पड़े है वो उनपर भारी होकर उनको सबक नहीं सिखा देता !

चलिए आप लोगों से बात करने का मूड था और कोई मुद्दा भी नहीं था तो एक मुद्दा मिला और यह ही हमारे लिए मंगल की घड़ी बन गयी !

पर अब यह नहीं पता की यह लेख हमारे लिए मंगल होगा या अमंगल और इसी चिंता में हम यहाँ दुबलाए जा रहे है !इसलिए आपलोगों से विनती है कि अपनी राय फटाफट लिख मारिये जैसी भी हो ....
देख क्या रहे हो ? सोच क्या रहे हो ?
जल्दी बताओ जी ......

Wednesday, April 14, 2010

बधाई हो .....

पन्द्रह आलू नान, तीस प्लेट शाही पनीर , अठ्ठारह गुलाब जामुन , दो प्लेट बूंदी रायता और तीन कोन आइसक्रीम ! फिर मुट्ठी भर सौंफ का मज़ा लेकर कुछ भी कहो बंधुओ मज़ा अगया !

कल रात खूब चांप कर मुफत का खाना खाए है हम ! अब तो आप भी समझ ही गए होंगे कि मैं केवल नाम का ही नहीं काम का भी ब्राह्मण है !
आप लोग सोच रहे होंगे कि किस गरीब का "बठ्ठा" बैठा होगा जिसने मुझ जैसे दरिद्र ब्राह्मण पर अपनी दयादृष्टि दिखलाई !

तो जनाब .....परसों कि बात है रात में हम सत्तू फांक कर सो ही रहे थे !

( हम जब अपने घर में खाना खाते है तो केवल सत्तू ही फांकते है क्योकि और कुछ होता नहीं है ब्राह्मण के घर में सिवाय सत्तू के ! )

तभी अचानक थाली के बजने कि आवाज सुनाई दी हम तुरंत भांप गए कि पड़ोस में राधा भाभी ने खुश खबरी दे दी !

"अब तो कल का भोजन पक्का समझो ...."

इसी उत्सुकता में हमने दरवाजा खोला और खुद भी लगे चिल्लाने अजी बधाई हो ........! लल्ला के जन्म पर बधाई हो ! लल्ली के जन्म पर बधाई हो ! लल्ला लल्ली के जन्म पर आप सबको बधाई हो ! थाली बजाओ बधावे गाओ ......

एक अरब से ज्यादा जनसँख्या वाले देश को बाल बच्चो के अधिक उत्पादन कि जरूरत है !

अजी... आप तो बिना मतलब के गरम हो रहे है ....यूँ ही आजकल पारा पैंतालीस के आस पास चल रहा है ! क्या हुआ जो हमने उत्पादन शब्द का प्रयोग कर दिया ? क्या उत्पादन सिर्फ गेहूँ , मक्का , चावल , मोठ, मटर, अरहर का ही होता है ?

हमारे देश में भोले भाले स्त्री पुरुष मिलजुलकर प्रतिदिन माफ़ करना प्रतिरात संतानोत्पादन कर रहे है ! क्या इसे उत्पादन नहीं कहा जा सकता ?

आप हमसे सहमत हो या ना हो पर हमारे देश कि विडंबना यह ही है कि लोकतंत्र ने मानव को हथियार बना दिया है एक टूल बना दिया है एक उपकरण बना दिया है !

आदमी हथियार है पैसा बनाने का , आदमी उपकरण है पैसा कमाने का ! अब तो यह कहा जा रहा है कि बढ़ी हुई जनसँख्या भी वरदान है देश के लिए और मज़े कि बात यह है कि यही लोग कुछ बरस पहले नसबंदी जैसा राग भी बजाते थे !

अब देखिये चीन में एक परिवार सिर्फ एक ही बच्चा पैदा कर सकता है ! और जापान में सरकार अपने नागरिको से कह रही है कि बच्चे ज्यादा पैदा करो ! और अपने यहाँ धडाधड जनसँख्या बढ़ रही है !

भारत कि जनसँख्या वरदान है इसलिए भी बताया जा रहा है क्योकि यहाँ कि युवा शक्ति दुनिया में सबसे ज्यादा है ! पर

भैया ......जब यह युवा बूढ़े होंगे तब क्या होगा ? पूत के पांव तो पालने में ही दिखते है ! आजकल हमारा समाज बूढ़े लोगो कि कितनी इज्जत करता है यह तो जग जाहिर है !

लोग अपने बूढे मात पिता को को उनके हाल पर छोड़ देते है ! फिर अपनी विदेशी सरकार माफ़ करना NRI सरकार भी पेंशन बंद करने में जुटी है !

इसका मतलब जब तक तू जवान तब तक तू नवाब और बूढा होते ही मर जाकर कहीं भी !

इतनी भारी जनसँख्या के पक्ष में बोलने वालो को अपना आज तो सुरक्षित और खुशहाल लग रहा है ! लेकिन कल कि तरफ वो देख ही नहीं रहे ! अब सरकार कि सरकार जाने हम तो बस इतना ही कहेंगे कि भाई ....जो भी करना है सोच समझ कर करो कहीं ऐसा ना हो कि पानी का घड़ा एक हो और पीने वाले सौ .....प्यासे ही मर जाओगे !

और मेरे पास तो बिल्कुल भी मत आना मैं खुद लोगो के बुलावे पर मुफत में पेट भर कर खाना खाता हूँ और दबा कर पानी भी पीता हूँ !

Saturday, April 10, 2010

काकी जी कहिन

काकी जी कहिन

मेरा नाम विनय पाण्डेय , नाम तो सुना ही होगा............ अब अपने बारे में क्या कहूँ ?
यह तो आपके माथे से टपकता पसीना , कुर्सी पर बैठे आपका यूँ पैर हिलाना, चेहरे पर छोटी सी मुस्कान, आखों में थोडा सा गुस्सा और कुछ लोगो का अपने बालों को नोचना ही बता रहा है कि आप लोग मुझसे और मेरे व्यंग्य से अच्छी तरह से "पक" चुके है ! इसमें कोई दो राय नहीं कि अब आपलोग खुद को "चना" मान रहे होंगे ! जो कि एक दम से "पक" चुके होंगे !
बहरहाल , आज मैं आप लोगों को पकाने के नहीं बल्कि किसी से मिलाने के उद्देश्य से आया हूँ !
काकी .....मेरी काकी ......मेरी जानकी काकी ....नाम तो मुझे भी नहीं पाता बस कभी जानकी माँ, कभी जानकी काकी अब जानकी काकी कौन है ?
यही सवाल हैं ना आपका तो जनाब "योगी जी" मेरे काका तो उनकी धर्मपत्नी मेरी "जानकी काकी" हुई ! तो साहब........
आज उनके द्वारा सुनाई कहानियों में से एक कहानी को आपके साथ बांटना चाहता हूँ ! तो झेलिये मेरा मतलब है सुनिए ....जानकी काकी कि कहानियों में से एक कहानी :-

बखत ........
बख्त बख्त कि बात है प्यारे ....बखत कि बात बखत पर करनी चाहिए ...क्योकि बखत कि बात ! बखत के साथ ! बखत से राजा और बखत से ही रंक ! सही बखत हो तो आदमी कि गड्डी आसमान में हो और बखत ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे बौने आदमी को भी कुत्ता काट ले ....! लेकिन आदमी एक ऐसा जंतु है कि बखत आने पर रावण बन जाता है और बखत जाते ही रोने लग जाता है !
थोथी माला , थोथा ज्ञान बखत बड़ा बलवान नहीं मनुष्य बलवान !
काकी जी कहती है :- वक्त कि हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पर राज !

टेम...टेम कि बात "माफ़ करना" टाइम टाइम कि बात है !

एक राजा था और उसकी थी एक रानी ! राजा रानी के कोई कमी कहाँ !
"अजी आजकल के राजा रानी ही जनता के पैसो पर मज़े करते है"
तो वह तो असल के राजा रानी थे !
पर हुज़ूर .... आदमी के पास कितनी ही संपत्ति हो , हो चाहे कितना भी ज्ञान !
पर दुखी रहते है हर वो मानस जिनके नहीं संतान !
संतान चाहे सुबह उठते और रात सोते लगाय मात -पिता को जूते चार पर मात -पिता का कभी ना कम होता उनके लिए दुलार !

बेऔलाद बेचारा मन ही मन दुःख पाता है ! यही हाल था राजा और रानी का ! चाहने को संतान राजा ने क्या क्या ना किया पूजन किया , मंदिर बनवाये ,मज़ार पूजी ,बलि चढ़ाई और किया अनुष्ठान ....
किन्तु कुछ नहीं मिला ....वरदान !
फिर एक दिन .....एक पंडित आया और दिया राजा को दुर्लभ ज्ञान :- चाहिए अगर तुमको संतान तो बनवाओ चित्र चार ! लगवाओ उसको महल पर !

चित्र किसके ? राजा दशरथ , माता कौशल्या ,बालक राम और रावण का !
पहले तीन चित्र तो हर कोई बना दे पर रावण का चित्र बनाने को नहीं हुआ कोई तैयार ! राज रानी बड़े दुखी ........!

आखिर एक चित्रकार ने कहा मैं बनाऊंगा चारो चित्र ! पर तब जब होगा मेरा मन !
राजा-रानी राजी !
चित्रकार ने तीन चित्र तो बना दिए पर नहीं मिला उसे रावण जैसा कोई किरदार !
एक दिन हो बेजार राजा ने हुक्म सुनाया :- नहीं बनाएगा अगर तू चित्र तो काट दूंगा तेरे बेटे का गला !
हम निसंतान मरेंगे पर नहीं रहने देंगे तेरी भी कोई संतान !

आखिर चित्रकार ने खोजा एक दुष्ट ! वो था बड़ा क्रूर , जालिम , हत्यारा ! चित्रकार ने दिया लालच और ले आया अपने घर !
उसे बिठा कर बनाने लगा रावण का चित्र !
जैसे जैसे चित्र हुआ तैयार वो हत्यारा रोने लगा जार जार......!
चित्रकार हैरान पूछा क्यों रो रहे हो भाई ?
क्या इसलिए कि मैंने तुमको रावण मान कर चित्र बनाया ?
वह हत्यारा बोला :- नहीं ....नहीं महोदय चित्रकार !

मैं तो हूँ ही क्रूर ! पर जानते हो आज से सत्रह साल पहले जब मैं बच्चा था तब तुमने ही मुझे बिठाकर राम का चित्र बनाया था !
तब मैं "राम" था और आज "रावण" हूँ !

यही बखत कि बात है भैया !
काकी कि कहानी ख़तम और पैसा हज़म !
पर साहब , आदमी वो जो कहानी से कुछ सीख ले ! अब आपकी आप जानो ! हमने जो बात कहनी थी कह दी ! "राम" में "रावण" ढूँढना और "रावण" में "राम" ढूँढना आपका काम है !

अपुन तो चला .....आज काकी खीर पूड़ी बनायीं है और मुझे बुलाई है !
जानकी काकी.............. तैयार है खीर पूड़ी ,
काका से बचा कर रखना मैं अभी आया........

ओके जी ....बाय है जी ..........

Tuesday, April 6, 2010

मैं अक्ल का कोल्हू हूँ ,घोंचू हूँ , उल्लू हूँ !

मैं अक्ल का कोल्हू हूँ ,घोंचू हूँ , उल्लू हूँ !
मेरे एक मित्र है श्रीमान खोपडकर ........क्या कहा ?
यह नाम कुछ समझ नहीं आया !
कमाल करते है आप लोग..........
क्या कहा ? कुछ अजीब सा लग रहा है !
अरे छोडिये साहब ... जहां आप लोग "नकुशा" जैसा नाम पचा सकते है तो इस नाम में क्या खराबी है ? अभी अगर मैं यहाँ तेंदुलकर , गावस्कर , पाटेकर , पालेकर इत्यादि कुछ लिख मारता तो आप लोग ही कहते कि चल झूठा .......कहाँ यह लोग और कहाँ तू ......... कलम घसीट ....

पर साहब अपना मानना है कि जिसके नाम के आगे "कर" लगा हो उससे फ़ौरन दोस्ती कर लेनी चाहिए क्योकि इतिहास गवाह है जिसके नाम में 'कर' जुड़ा है उसने इस जीवन में कुछ कर के ही दिखाया है !
और अपने साथ अपने से जुड़े लोगो का भी भला किया है !

जरा ध्यान देंगे तो हर नाम कुछ कहता है बहरहाल , नामो का विश्लेषण कभी और करेंगे !

तो जनाब मिस्टर खोपडकर मुझे हर बात के लिए , हर काम के लिए और हमेशा बस एक ही संज्ञा देते है और कहते है :-

" यार विनय तुम बड़े ही उल्लू चीज़ हो , एक दम घोंचू टाइप के लगते हो "

अब भला बताइए हम कहाँ से आपको उल्लू चीज़ लगते है ? कैसे हम घोंचू टाइप के हुए ?

एक दिन हमने उनसे पूछ ही लिया कि आप हमको उल्लू चीज़ और घोंचू टाइप कि संज्ञा क्यों देते हो ?

तो बोले :- यार....विनय, तुम जो ऐसी वैसी , उल जुलूल और मूर्खतापूर्ण क्रियाकलाप अथवा हरकते करते हो ऐसी हरकत करने वाले को हम घोंचू और उल्लू चीज़ ही कहते है !

तब हमको ख्याल आया कि वर्तमान राजनीति में भी तो मेरे जैसे लोगो कि कमी नहीं है तो इसका मतलब सारे नेता और नेती भी उल्लू चीज़ और घोंचू हुए !
खैर ......फिर से मन में प्रश्न उठा कि आखिर इस घोंचू शब्द कि उत्पत्ति कैसे हुई ?

तो हमने फिर से मिस्टर खोपडकर को पूछा ? तो उनका जवाब यह था :- कि यार विनय, तुम खुद इतने बड़े घोंचू हो कि इसका जवाब तुम स्वयं ज्यादा बेहतर दे सकते हो तो तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो ?

हाँ ! सही बात है घोंचू तो मै ही हूँ ! जब मुझे आजतक
' कमीने ' शब्द का अर्थ नहीं पता चला तो घोंचू का अर्थ कैसे पता चलेगा ?

You are a GHONCHU..

G-reat
H-ot
O-ne in million
N-aughty
C-ute
H-umble
U-nique

ज्यादा खुश मत हो,है तो तू घोंचू ही …

याद आया ऐसा एक सन्देश हमको हमारे दोस्त ने किया था ! तब हम बहुत हँसे थे ! बहरहाल, घोंचू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ? यह तो नहीं पता पर मुहं में यह शब्द आया तो लिख मारा !

घोंचू नामक संज्ञा का हक़दार हर वो इंसान है जो मूर्खता पूर्ण अपना मतदान करता है ! किसी प्रलोभन किसी जाति किसी सम्प्रदाय इत्यादि को पैमाना बनाकर !

घोंचू वो भी है जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगो को गुमराह कर रहा है जैसे नेता व नेती और बाबा व बाबी !

घोंचू हर वो लेखक भी है जो मौलिकता , नैतिकता और ज्ञान के नाम पर सेक्स का व्यापार कर रहा है ! अथवा कर रही है !
घोंचू हर वो पाठक भी है जो उल जुलूल व सेक्स जैसे लेखो कि तारीफ़ कर रहा है और बचाओ पक्ष भी तैयार कर रहा है !
घोंचू महंगाई के नीचे दबा हुआ वो इंसान है जिसने महंगाई भी खुद कराई है सिर्फ अपनी घोंचूपने कि वजह से !

घोंचू वो भी है जो इस मतलब परस्त दुनिया में गैरमतलबी बनकर निस्वार्थ सेवा कर रहा है !

घोंचू हर वो इंसान है जो हँसना भूल गया है !

घोंचू वो भी है जो दुखी आत्मा को हंसा रहा है !

सबसे बड़ा घोंचू तो ऊपर वाला है जिसने मनुष्य जैसी मूरत बनाकर धरती पर भेजा और कहा जाओ स्वर्ग का आनंद भोगो और हमने उस धरती पर लकीरे खींच कर नरक बना दिया ! विनाश और विकास में अंतर ही खो दिया !

बहरहाल , घोंचू शब्द काफी जटिल है यह सही है या गलत यह समझने वाले और मानने वाले पर निर्भर करता है ! घोंचू का अर्थ मुझे तो पता चल गया कि क्यों मिस्टर खोपडकर मुझे हर बात पर घोंचू कहते है ? कुछ लोग मुझे संत कहते है, कुछ लोग मसखरा, कुछ के लिए विदूषक हूँ, कुछ के लिए हास्य महारथी, कुछ लोग आलोचक मानते है पर सही और सटीक मेरे चरित्र का चित्रण मिस्टर खोपडकर ने ही किया है

कि मैं घोंचू हूँ !

क्योकि घोंचू अनर्गल बाते नहीं लिखता, घोंचू व्यंग्य कटाक्ष के माध्यम से सेक्स नहीं बेचता , घोंचू आलोचना भी करता है और घोंचू तारीफ़ भी करता है ! इसलिए मै अक्ल का कोल्हू हूँ , घोंचू हूँ ,उल्लू हूँ ......!

और आप ?

Monday, March 29, 2010

लात मुक्का पीठ मध्य

"लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय "

ना ना ..घबराओ मत... यह कोई सूत्र नहीं है , ना ही कोई पहेली यह तो एक रहस्य है ! जिसपर से आज हम पर्दा उठा रहे है ! जिसको हमने कभी किसी को नहीं बताया इसलिए नहीं कि हमको किसी किस्म का डर था वरन हमारी खिल्ली उडती जनाब !

पर अब जब हम खुद ही अपनी खिल्ली उड़ा रहे है तो कोई डर ही नहीं रहा ! अपने बचपने में हमको भी एक विषय से बहुत डर लगता था !

"गणित" mathematics आज भी लगता है , और हमारे डर का आलम तो यह था कि हमारे कभी 100 में से 02 अंक तो कभी
ज्यादा से ज्यादा 100 में से 05 अंक आते और फिर वही जो सबके साथ होता है हमारे साथ भी होता था !

"लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय" इसका अर्थ यह होता है कि हमको लात मुक्का पीठ के मध्य में पड़ते थे जहां रीढ़ होती है और इतने तमाचे पड़ते थे जिससे हमारे काले - काले जो गाल है सुर्ख बैंगनी हो जाते थे !

बहरहाल यह था हमारी जिन्दगी का कडवा सच !

किन्तु .....गणित के सिद्धांत भी अजीब होते है ! इसमें एक और एक तीन हो सकते है तो दो और दो भी तीन हो सकते है !
यह सब हल करने वालों पर निर्भर करता है ! गणित को हिसाब भी कहते है और आम आदमी हिसाब में बड़ा ही कमजोर होता है ! हिसाब करना तो व्यापारी ही जानते है !

लेकिन .....डेमोक्रेसी में नेतागण भी हिसाब में पक्के होते है ! बेचारी जनता हिसाब में पहले ही कमजोर है ! बहरहाल , इसमें कोई संदेह नहीं है कि गणित पढना अच्छे अच्छों के बस कि बात नहीं ! पर साहब रो धोकर आदमी जितनी भी गणित पढता है वह जिंदगी भर उसके काम आती है ! पुराने साहूकार इसलिए ब्याज पर ब्याज चढ़ा देते थे कि बेचारे गरीब "गणित" जानते ही नहीं थे !
गणित के चार मुख्य कायदे होते है - {जमा , तफरीक ,जर्ब और तकसीम }
लगता है आपको समझ नहीं आई ......पहले पहले तो मुझे भी नहीं आई थी ! फिर गूगल में सर्च मार कर सब सीख गया !

इसका मतलब है -
जमा का अर्थ है = जोड़ना ,plus
तफरीक का अर्थ है = घटाना, minus
जर्ब का अर्थ है = गुणा, multiply
तकसीम का अर्थ है = भाग , divide

आज के जमाने में ज्यादातर लोग जमा अर्थात "जोड़" में यकीन रखते है ! जिसको देख लो वो ही जोड़ में लगा हुआ है!
नेता सरकार बनाने में जुड़े है ! लेखक पाठक जोड़ रहा है ! कवि श्रोता जोड़ रहा है ! अभिनेता अभिनेत्री दर्शक जोड़ रहे है !

तफरीक यानी "घटाना" भी गणित का मुख्य नियम है ! तफरीक का दूसरा अर्थ भेद भी होता है ! इस नियम का सदुपयोग अंग्रजो ने बड़े मज़े से किया था ! हिन्दू और मुस्लिम में तफरीक कायम कि और मज़े से २०० साल बिताये ! जब अँगरेज़ चले गए जूता खा कर तो हमारे अपने ही कुछ युग पुरुषों ने यह नियम सिन्धी -पंजाबी , मद्रासी -बंगाली , और अब बिहारी - मराठी के बीच चला दिया ! लोग आपस में लड़ कट कर मरते है और जनसँख्या कम होती है ! और वोट बैंक सुरक्षित होता है !

जर्ब यानी "गुणा" के अपने ही मज़े है ! लोग ज़मीन जायदाद का धंधा करते है और अपनी संपत्ति में कई गुणा इजाफा करते है ! यूँ तो धरती को माँ कहते है - पर आज कल जो जिस तेज़ी से इसकी खरीद फरोख्त करता है वो उतनी ही जल्दी करोडपति बनता है !

चौथा और आखरी नियम तकसीम यानी "भाग" बड़ा ही too much है ! भाग का अर्थ है बांटना ! जैसे चार को दो भागों में बांटने से दो रह जाता है ! इसका सफल उदाहरण हमारे प्यारे प्यारे नेतागण देते रहते है ! और तो और एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इसका इस्तेमाल आधुनिक बहुएं भी करती है ! ऐसा इंडियन सासों का मानना है ! सास का कहना है कि बहू आते ही उनके और बेटे के प्यार को बाँट देती है ! यूँ तो प्रचार में दिखाते है बाँट कर खाना चाहिए !
तो भई ...........यह था गणित का झोलझाल.... हम तो पहले भी कह चुके है कि हम गणित में फिसड्डी है वरना और भी गणित का ऑपरेशन करते और आपको कायदे , नियम सूत्र बता देते !

झकाश ज्ञान घुट्टी :- आप सभी से अनुरोध है कि लड़का-लड़की में किसी तरह का भेद ना करे ! दोनों को पढने का उतना ही हक है ! जितना दोनों को जीने का हक है ! और जो ऐसा नहीं करेगा उसके लिए तो है ही "लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय " और हाँ 'गणित" जरूर पढाना वरना समाज के भेडियें उनको नोच कर खा जायेंगे !

Saturday, March 27, 2010

सीधी बात नो बकवास !

सीधी बात नो बकवास !

अब इसे आधुनिक जीवन कि विडम्बना कहें या मजें , आजकल हमारे देश में नए-नए रोग पैदा हो रहे है !
अब आप बताइए क्या तीस बरस पहले आपने एड्स का नाम सुना था ! हो सकता है आपने सुना हो, पर हम अनपढ़ गंवारों ने कभी इसका नाम भी नहीं सुना था !

हम "एनासिन -एस्प्रो" से ज्यादा दवाओं के नाम नहीं जानते थे ! हारी -बीमारी में हरड ,आंवला ,पीपल, जायफल , कायफल इत्यादि से दवा बनाकर दादी नानी खिला देती थी ! लेकिन अब तो बिमारियों कि पूछो मत ! मधुमेह और रक्तचाप का तो यह हाल है जैसे घरों में छिपकली ! हर तीसरा आदमी मधुमेह और रक्तचाप के चक्कर में खान पान छोड़ कर दरिद्रो जैसी जिन्दगी जी रहा है !

बिमारियों के चक्कर में इंसान अपनी प्राकृतिक कलाएं भूलकर सुबह शाम अनुलोम विलोम करता अपनी छाती को गाडिया लौहारों कि धौंकनी कि तरह फुलाता -पिचकाता रहता है !

शारीरिक बिमारियों कि बात को छोड़ो आजकल भाँती भाँती के मानसिक रोग भी चल पड़े है ! किसी को "क्रिकेटिया" हो जाता है ! ससुर दिन रात "क्रिकट" माफ़ कीजियेगा क्रिकेट के फंडे में ही पड़ा रहता है ! तेंदुलकर, द्रविड़ , गांगुली और कुंबले से ज्यादा कुछ नहीं सोचता ! सहवाग का छक्का उसका उसकी रोटी और युवराज का चौक्का उसकी दाल हो जाती है ! ऐसे लोगो का इलाज साक्षात भगवान् धन्वन्तरी भी नहीं कर सकते !

दूसरी तरह के बीमारों को "फिल्मोनिया" नाम कि बीमारी है ! उनकी माँ भले ही पेट दर्द से कराह रही हो , पर प्रीती जिंटा के दांत का दर्द जीवन मरण का सवाल बन जाता है ! यह लोग जॉन अब्राहम कि तरह बाइक चलाते है ! और उसी कि तरह पैर तुडवा कर फ्रेक्चर करा बैठते है ! बेटा चाहे किताब कॉपी के लिए तड़प रहा हो, पर अमिताभ के बेटे कि फिल्म को हिट कराने के लिए वे दस बार पिक्चर देख डालते है ! बहरहाल , आज कल एक नया रोग आया है - ग्लैमरिया ! जिस तरह आदमी के रतौंधी हो जाती है उस ही तरह इस रोग में भी लड़का -लड़की दोनों आँख होते हुए भी अंधे हो जाते है ! इन्हें अपनी आँखों से सब दिखलाई भी देता है और नहीं भी !

क्रिकेटिया और फिल्मोनिया से ग्रसित लोगो का इलाज तो संभव है -

उपाय :- क्रिकेटिया रोगी को wicket कि राख तीन बार शहद में चटाई जाये तो सात दिनों में यह रोग जड़ से समाप्त हो जाता है !

उपाय :- फिल्मोनिया के रोगी का सर मुंडा कर उसके कपाल पर दिन में तीन बार जुत्तमपैजार कि जाए तो उसका भी इलाज शर्तियाँ तीन सप्ताह में हो सकता है !

किन्तु ग्लेमरिया रोग का इलाज अभी तक संभव नहीं हो सका है हमारे वैध दिन रात इस पर शोध कर रहे है ! आमतौर पर यह रोग लड़के लड़कियों को होता है ! इसके वायरस कहीं से भी आ सकते है ! एड्स कि ही तरह इसका भी उपचार दुर्भाग्य से बचाओ ही है !

कुछ ज्ञानोपयोगी material :- कृपया व्यंग्य में व्यंग्य देखे ! कभी भी भूल कर माता पिता , गुरु, परम पूजनीय ईश्वर पर व्यंग्य नहीं करना चाहिए वरन पतलून पर चड्ढी पहनने वालो पर करना चाहिए !
सन्देश से संतुष्ट है ना आप ...................

Monday, March 22, 2010

हंसी तो फंसी ..................

यह जुमला तो आपने भी कभी ना कभी,कहीं ना कहीं तो जरुर सुना होगा ! कभी सडको पर, कभी गली में, कभी नुक्कड़ों पर और तो और कुछ ऐसे भी लोग होंगे जिन्होंने यह जुमला कभी ना कभी किसी ना किसी पर कसा भी होगा!

हालांकि बड़ा ही घातक है यह जुमला .... कभी कभी तो इसके परिणाम भी कभी "जूतारू" होते है ! हमको याद है वो मनहूस दिन जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के विद्या+अर्थी होते थे ! हमको देखकर एक सुन्दर कन्या मुस्कुरा क्या दी हमने अपनी अगली चाल चल दी और बिना सोचे समझे उनको प्रेम का प्रस्ताव दे दिया ! जनाब बदले में उनके boyfriend ने हमारी जो गत कि वो तो देखने लायक थी ! बाद में पता चला कि वो हंसमुखी थी जिनकी सूरत ही मुस्कुराती हुई थी !

बहरहाल ......जैसे साल में एक दिन औरतों का, एक दिन बच्चो का, एक दिन रोग का, एक दिन भोग का,एक दिन पेड़ों का , एक दिन धरती का आता है ,उसी तरह एक दिन हंसने का भी आता है ! जो आज आ गया है ! हंस लो .....जी भर कर हंस लो....इस दिन लोग अपने साथियों के साथ एक पार्क में जाते है और ठहाके मार मार कर हंसते है ! मज़े कि बात यह है कि इस दिन बिन बुलाये कोई हज़ार पांच सौ लोग उस सरकारी पैसो से बने राजकीय उद्यान में अपने आप इक्कठे हो जाते है !

खोजबीन करने पर हमने पाया कि यहाँ अक्सर वे लोग आते है जो घर पर नहीं हंस पाते ! अब घरों में ना हंस पाने के कई कारण भी होते है ! अब देखिये गृहस्थी कि गाडी में दो पहियें होते है पति और पत्नी ! ये दोनों पहिये दुरुस्त हो तो गाडी भी मज़े से चलती है और जीवन भी पर कई बार ईश्वर भी तगड़ा मजाक कर देता है ! गृहस्थी कि गाडी में एक पहिया ट्रेक्टर और एक पहिया साइकिल का लगा देता है ! बताइए ऐसे में कोई गाडी कैसे सुचारू रूप से चल सकती है ? खुदा का शुक्र है मेरी अब तक शादी नहीं हुई ! और इसी विरोधाभास के चलते लोग हंस नहीं पाते !
अब चाहे आप कुछ भी कहे जनाब ...हम तो यह मानते है कि अगर इस दुनिया में विदूषक ना हो तो ससुर यह दुनिया आलू कि बासी तरकारी कि तरह होगी , जो देखने में तो बड़ी खूबसूरत लगती पर खाते ही तबियत नासाज़ हो जाती ! हमारी समझ में इस सकल सृष्टि में सबसे बड़ा मसखरा , विदूषक ईश्वर -अल्लाह है जो आदमी से ऐसी ऐसी ठिठोली करवाता है कि गर्व के नशे में चूर इंसान पल भर में हक्का बक्का रह जाता है ! जब कोई आदमी मसखरापन दिखलाए तो उससे नाराज़ हुआ जा सकता है , पर ईश्वर के आगे किसकी चलती है !
हँसना जरुरी है हालांकि कुछ लोग भ्रम फैला रहे है कि "डरना जरूरी है" अजी हरी का नाम लीजिये डरे हमारे दुश्मन के दुश्मन ! डरना नहीं हँसना जरूरी है !हंसी के कारण ही आदमी मालामाल होता है !

हमारी समझ से "हंसी तो फंसी" आज के मैनेजमेंट गुरुओ को अपना लेना चाहिए अगर आप अपने ग्राहक को हंसाने में सफल हो गये तो समझिये आप उसको फंसाने में भी सफल हो गए !लेकिन जो हंसी फंसाने के लिए हंसी जाए वो नकली होती है ! एक बात और कहे आपसे - दूसरो पर हँसना जितना आसान है खुद पर हँसना उतना ही मुश्किल ! इसलिए यदि आप सच मुच हंसमुख इंसान बनना चाहते है तो अच्छे से खुद पर हँसना शुरू कर दीजिये ! मज़ा आ जायेगा ......

इस तरह हंसने के लिए किसी दिन, किसी तारीख और किसी जगह को मत तलाशिये अपनी रसोई घर में जाकर बस बर्तनों को देखिये हंसी खुद ब खुद आएगी ! कि कैसे हमारे घर का बेशर्म कुकर हमारी काली कढाई को और बीवी को देखकर सिटी बजाता है !

एक चेतावनी : अगर आपकी बीवी व गर्लफ्रेंड बारूद कि ढेरी हो तो कृपया उसपर कभी ना हँसे ! ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप पड़ोसन के संग खूब हंस ले और जब पडोसी संग आपकी बीवी व गर्लफ्रेंड हँसे तो आप आग बबूला हो जाये ! आप चाहे तो अभी हंस ले हंसी किसी कि गुलाम है क्या ?

Saturday, March 20, 2010

अमरबेल

वल्लाह .....कल तो कमाल हो गया ! अब आप लोग सोच रहे होंगे कि भई......अब क्या कमाल हो गया? "सुख" कि तलाश ख़त्म हुई तो अब यह नया ड्रामा क्या है ? तो हुजुर थोडा सा सब्र कीजिये सब सामने आ रहा है ! अभी कल कि ही बात है सुबह सुबह हम अपने बागीचे में As a Amitaabh "बागबान" हम घूम रहे थे ! ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि मै आप को बतला देना चाहता हूँ कि 'ग्लोबल वार्मिंग' को हम भी बहुत मानते है !

तो हमने देखा कि लम्पट एक 'अमरबेल' हमारे बागीचे में स्वयं उत्पन्न हो गयी ! यह देख हम आनन् फानन में दौडे कुछ गुणीजनों के पास इस अमरबेल का राज़ जानने कि भला यह क्या मुसीबत है ? जो रक्तबीज दानव कि तरह जहाँ मन करे वहां उग जाती है !

तो जनाब.... सबसे पहले हम पहुंचे "योगेश्वर दुबे जी" के पास जो काफी तल्लीनता से व्यंग्य कि तलाश कर रहे थे ! एक हाथ में नारद मुनि और और दूसरे हाथ में अमेरिका कि तस्वीर लिए..... ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि आप लोग उनका यह लेख पढना जरुर.....बहरहाल , मैंने उनसे जब पूछा कि बताइए भला यह अमरबेल क्या है ? तो वो बोले - बेटा.......अमरबेल वो लम्पट चीज़ है जो जिस पेड़ से चिपक जाती है वह थोडे ही दिन में अल्लाह को प्यारा हो जाता है ! अब अल्लाह को प्यारा और खुदा का दुलारा तो तुम समझते ही हो अमरबेल जब साथ होती है तो धीरे धीरे सारा सत्व सोख लेती है ! और तो और बेटा तुम ताज्जुब करोगे कि अमरबेल से हमको डरने कि जरुरत नहीं है ! हमारे देश में तो लाखो अमरबेल आदमी का रूप धर के देश को चूसने लगी है ! ऐसे लोगो के लिए देश बर्फ चुस्की और गन्ने कि गनेरी है ! जिन्हें चूसो और फेंक दो !

बातों का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि वहां "आभा मित्तल जी" भी आ गयी अपनी एक नयी सुन्दर सी रचना को लेकर उनकी भी रचना को पढना जरूर बहुत उम्दा लेख लिखती है ! वह बात को आगे बढ़ते हुए बोली - बेटा विनय , अभी पिछले दिनों भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने कुछ अफसरों के घर छपे मारे ! ये सब दूसरी तीसरी श्रेणी के अधिकारी थे ! लेकिन जब इनके छापे पड़े तो पता चला कि इनके पास लाखो कि नकदी है , कई किलो सोना चांदी है ! एक अफसर ने तो अपने ड्राईवर के नाम पर ही पेट्रोल पम्प ले रखा था ! किसी के पास दस दस भूखंड निकले ! किसी के पास कॉलेज था ! अब इनसे पूछो कि भैया तुम्हारे पास इतना माल कहाँ से आया ? क्या धन कुबेर से कोई रिश्तेदारी निकाल आई है ? जी नहीं , यह सारा माल जनता का है और जनता रुपी वृक्ष से इन भ्रष्टाचारी अमरबेल रुपी अफसरों ने सोख लिया है !

इतने में ही वहां एक और धनुर्धर व्यंग्य बाणों के पहुँच गए "महेंदर करुणेश जी" , उन्होंने भी लगे हाथो कुछ बाण चलाये अपने अंदाज़ में बोले - हे अल्प आयु के जीव विनय सुनो - अफसरों कि क्या बात करे ? अपने नेताओं को ही ले लो ! अधिकाँश नेता ऐश के साथ रहते है ! हमने कहा - क्यों मजाक कर रहे हो ऐश के साथ तो अभिषेक रहता है ! बोले - अरे मेरे छोटे से बुलबुले - ऐश नहीं ऐशो आराम के साथ रहते है ! ये क्या कारोबार करते है ? क्या व्यवसाय करते है ? कितना टेक्स देते है ? सब कुछ इतना पर्दे में रहता है कि पता ही नहीं चल पाता ! चालिए आप सब आपको एक और बुद्धिजीवी से मिलवाता हूँ !

"गुरमीत मोक्ष" शायद उन्ही के हाथो इस अमरबेल को मोक्ष मिले - आभाजी , योगेश्वर जी , महेंदर जी संग मै भी चल पड़ा महेंदर जी के बैल गाडी में .........(आपको बता दूँ कि बैल गाडी प्रदुषण रहित यातायात का साधन है इसलिए इसका इस्तेमाल वर्तमान में लाजमी है )
गुरमीत जी एक नयी ग़ज़ल को लिख रहे थे देखते ही अपनी ग़ज़ल छुपा लिए क्योकि मै पहले भी उनकी एक ग़ज़ल को चुराने कि नाकाम कोशिश कर चूका हूँ ! बहरहाल, अमरबेल के विषय में उन्होंने कहा -अपने यहाँ अमरबेल दो तरह कि मिलती है - एक तो प्रत्यक्ष और दूसरी अप्रत्यक्ष ! प्रत्यक्ष तो सामने दिखती है इन्हें बड़ी आसानी से हटाया जा सकता है ! अमरबेल को हटाने का सबसे उत्तम उपाय है उसकी गर्भनाल को ही काट दिया जाये लेकिन उन अमरबेल का क्या किया जाये जो दिखाई ही नहीं देती ! छिपी रहती है और रस चूसती रहती है !

इतने में ही "वनिता" , "संध्या जी", "सोनिया जी", "संजय अवस्थी जी" , "वेद प्रकाश जी" सब के सब वहीँ आ गये और एक स्वर बोले - अरे कोल्हू के बैल विनय, तुम बस गोल गोल ही घूमते रहोगे कभी 'सुख' के पीछे कभी 'अमरबेल' के पीछे अरे.... कभी तो अपना स्तर बढाओ और जाते जाते यह दुर्लभ ज्ञान ले जाओ "अमरबेल हर जगह मिलती है ! जरा ध्यान से से देखो तो दफ्तर , घर, समाज सभी स्थलों पर अमरबेल फैली पड़ी है ! सरकार से वेतन लेकर मज़े करने वाले भी अमरबेल के वंशज है ! घर में भी अमरबेल मिल जाएगी ! एक भाई जी तोड़ मेहनत करता है ! दिन रात खटता है ! दूसरा आनंद उठाता है क्योकि वह माँ का दुलारा है , बाप का प्यारा है ! "

इस दुर्लभ ज्ञान को पाने के बाद मै सिर्फ इतना ही कहूँगा - "भाइयों और भाभियों ! अमरबेल से होशियार रहो इसे पनपने ना दो ! तुरंत काट कर फेंक दीजिये ! अगर अमरबेल कि तरफ आप लापरवाह रहे तो आपका हाल भी मेरी तरह और हमारे लोकतंत्र जैसा हो जायेगा ! हमे तो गुणीजनों का साथ मिल गया शायद आपको ना मिल सके !

विनय पाण्डेय