Monday, March 29, 2010

लात मुक्का पीठ मध्य

"लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय "

ना ना ..घबराओ मत... यह कोई सूत्र नहीं है , ना ही कोई पहेली यह तो एक रहस्य है ! जिसपर से आज हम पर्दा उठा रहे है ! जिसको हमने कभी किसी को नहीं बताया इसलिए नहीं कि हमको किसी किस्म का डर था वरन हमारी खिल्ली उडती जनाब !

पर अब जब हम खुद ही अपनी खिल्ली उड़ा रहे है तो कोई डर ही नहीं रहा ! अपने बचपने में हमको भी एक विषय से बहुत डर लगता था !

"गणित" mathematics आज भी लगता है , और हमारे डर का आलम तो यह था कि हमारे कभी 100 में से 02 अंक तो कभी
ज्यादा से ज्यादा 100 में से 05 अंक आते और फिर वही जो सबके साथ होता है हमारे साथ भी होता था !

"लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय" इसका अर्थ यह होता है कि हमको लात मुक्का पीठ के मध्य में पड़ते थे जहां रीढ़ होती है और इतने तमाचे पड़ते थे जिससे हमारे काले - काले जो गाल है सुर्ख बैंगनी हो जाते थे !

बहरहाल यह था हमारी जिन्दगी का कडवा सच !

किन्तु .....गणित के सिद्धांत भी अजीब होते है ! इसमें एक और एक तीन हो सकते है तो दो और दो भी तीन हो सकते है !
यह सब हल करने वालों पर निर्भर करता है ! गणित को हिसाब भी कहते है और आम आदमी हिसाब में बड़ा ही कमजोर होता है ! हिसाब करना तो व्यापारी ही जानते है !

लेकिन .....डेमोक्रेसी में नेतागण भी हिसाब में पक्के होते है ! बेचारी जनता हिसाब में पहले ही कमजोर है ! बहरहाल , इसमें कोई संदेह नहीं है कि गणित पढना अच्छे अच्छों के बस कि बात नहीं ! पर साहब रो धोकर आदमी जितनी भी गणित पढता है वह जिंदगी भर उसके काम आती है ! पुराने साहूकार इसलिए ब्याज पर ब्याज चढ़ा देते थे कि बेचारे गरीब "गणित" जानते ही नहीं थे !
गणित के चार मुख्य कायदे होते है - {जमा , तफरीक ,जर्ब और तकसीम }
लगता है आपको समझ नहीं आई ......पहले पहले तो मुझे भी नहीं आई थी ! फिर गूगल में सर्च मार कर सब सीख गया !

इसका मतलब है -
जमा का अर्थ है = जोड़ना ,plus
तफरीक का अर्थ है = घटाना, minus
जर्ब का अर्थ है = गुणा, multiply
तकसीम का अर्थ है = भाग , divide

आज के जमाने में ज्यादातर लोग जमा अर्थात "जोड़" में यकीन रखते है ! जिसको देख लो वो ही जोड़ में लगा हुआ है!
नेता सरकार बनाने में जुड़े है ! लेखक पाठक जोड़ रहा है ! कवि श्रोता जोड़ रहा है ! अभिनेता अभिनेत्री दर्शक जोड़ रहे है !

तफरीक यानी "घटाना" भी गणित का मुख्य नियम है ! तफरीक का दूसरा अर्थ भेद भी होता है ! इस नियम का सदुपयोग अंग्रजो ने बड़े मज़े से किया था ! हिन्दू और मुस्लिम में तफरीक कायम कि और मज़े से २०० साल बिताये ! जब अँगरेज़ चले गए जूता खा कर तो हमारे अपने ही कुछ युग पुरुषों ने यह नियम सिन्धी -पंजाबी , मद्रासी -बंगाली , और अब बिहारी - मराठी के बीच चला दिया ! लोग आपस में लड़ कट कर मरते है और जनसँख्या कम होती है ! और वोट बैंक सुरक्षित होता है !

जर्ब यानी "गुणा" के अपने ही मज़े है ! लोग ज़मीन जायदाद का धंधा करते है और अपनी संपत्ति में कई गुणा इजाफा करते है ! यूँ तो धरती को माँ कहते है - पर आज कल जो जिस तेज़ी से इसकी खरीद फरोख्त करता है वो उतनी ही जल्दी करोडपति बनता है !

चौथा और आखरी नियम तकसीम यानी "भाग" बड़ा ही too much है ! भाग का अर्थ है बांटना ! जैसे चार को दो भागों में बांटने से दो रह जाता है ! इसका सफल उदाहरण हमारे प्यारे प्यारे नेतागण देते रहते है ! और तो और एक सर्वेक्षण से पता चला है कि इसका इस्तेमाल आधुनिक बहुएं भी करती है ! ऐसा इंडियन सासों का मानना है ! सास का कहना है कि बहू आते ही उनके और बेटे के प्यार को बाँट देती है ! यूँ तो प्रचार में दिखाते है बाँट कर खाना चाहिए !
तो भई ...........यह था गणित का झोलझाल.... हम तो पहले भी कह चुके है कि हम गणित में फिसड्डी है वरना और भी गणित का ऑपरेशन करते और आपको कायदे , नियम सूत्र बता देते !

झकाश ज्ञान घुट्टी :- आप सभी से अनुरोध है कि लड़का-लड़की में किसी तरह का भेद ना करे ! दोनों को पढने का उतना ही हक है ! जितना दोनों को जीने का हक है ! और जो ऐसा नहीं करेगा उसके लिए तो है ही "लात मुक्का पीठ मध्य चटकनम मुख भंजतेय " और हाँ 'गणित" जरूर पढाना वरना समाज के भेडियें उनको नोच कर खा जायेंगे !

Saturday, March 27, 2010

सीधी बात नो बकवास !

सीधी बात नो बकवास !

अब इसे आधुनिक जीवन कि विडम्बना कहें या मजें , आजकल हमारे देश में नए-नए रोग पैदा हो रहे है !
अब आप बताइए क्या तीस बरस पहले आपने एड्स का नाम सुना था ! हो सकता है आपने सुना हो, पर हम अनपढ़ गंवारों ने कभी इसका नाम भी नहीं सुना था !

हम "एनासिन -एस्प्रो" से ज्यादा दवाओं के नाम नहीं जानते थे ! हारी -बीमारी में हरड ,आंवला ,पीपल, जायफल , कायफल इत्यादि से दवा बनाकर दादी नानी खिला देती थी ! लेकिन अब तो बिमारियों कि पूछो मत ! मधुमेह और रक्तचाप का तो यह हाल है जैसे घरों में छिपकली ! हर तीसरा आदमी मधुमेह और रक्तचाप के चक्कर में खान पान छोड़ कर दरिद्रो जैसी जिन्दगी जी रहा है !

बिमारियों के चक्कर में इंसान अपनी प्राकृतिक कलाएं भूलकर सुबह शाम अनुलोम विलोम करता अपनी छाती को गाडिया लौहारों कि धौंकनी कि तरह फुलाता -पिचकाता रहता है !

शारीरिक बिमारियों कि बात को छोड़ो आजकल भाँती भाँती के मानसिक रोग भी चल पड़े है ! किसी को "क्रिकेटिया" हो जाता है ! ससुर दिन रात "क्रिकट" माफ़ कीजियेगा क्रिकेट के फंडे में ही पड़ा रहता है ! तेंदुलकर, द्रविड़ , गांगुली और कुंबले से ज्यादा कुछ नहीं सोचता ! सहवाग का छक्का उसका उसकी रोटी और युवराज का चौक्का उसकी दाल हो जाती है ! ऐसे लोगो का इलाज साक्षात भगवान् धन्वन्तरी भी नहीं कर सकते !

दूसरी तरह के बीमारों को "फिल्मोनिया" नाम कि बीमारी है ! उनकी माँ भले ही पेट दर्द से कराह रही हो , पर प्रीती जिंटा के दांत का दर्द जीवन मरण का सवाल बन जाता है ! यह लोग जॉन अब्राहम कि तरह बाइक चलाते है ! और उसी कि तरह पैर तुडवा कर फ्रेक्चर करा बैठते है ! बेटा चाहे किताब कॉपी के लिए तड़प रहा हो, पर अमिताभ के बेटे कि फिल्म को हिट कराने के लिए वे दस बार पिक्चर देख डालते है ! बहरहाल , आज कल एक नया रोग आया है - ग्लैमरिया ! जिस तरह आदमी के रतौंधी हो जाती है उस ही तरह इस रोग में भी लड़का -लड़की दोनों आँख होते हुए भी अंधे हो जाते है ! इन्हें अपनी आँखों से सब दिखलाई भी देता है और नहीं भी !

क्रिकेटिया और फिल्मोनिया से ग्रसित लोगो का इलाज तो संभव है -

उपाय :- क्रिकेटिया रोगी को wicket कि राख तीन बार शहद में चटाई जाये तो सात दिनों में यह रोग जड़ से समाप्त हो जाता है !

उपाय :- फिल्मोनिया के रोगी का सर मुंडा कर उसके कपाल पर दिन में तीन बार जुत्तमपैजार कि जाए तो उसका भी इलाज शर्तियाँ तीन सप्ताह में हो सकता है !

किन्तु ग्लेमरिया रोग का इलाज अभी तक संभव नहीं हो सका है हमारे वैध दिन रात इस पर शोध कर रहे है ! आमतौर पर यह रोग लड़के लड़कियों को होता है ! इसके वायरस कहीं से भी आ सकते है ! एड्स कि ही तरह इसका भी उपचार दुर्भाग्य से बचाओ ही है !

कुछ ज्ञानोपयोगी material :- कृपया व्यंग्य में व्यंग्य देखे ! कभी भी भूल कर माता पिता , गुरु, परम पूजनीय ईश्वर पर व्यंग्य नहीं करना चाहिए वरन पतलून पर चड्ढी पहनने वालो पर करना चाहिए !
सन्देश से संतुष्ट है ना आप ...................

Monday, March 22, 2010

हंसी तो फंसी ..................

यह जुमला तो आपने भी कभी ना कभी,कहीं ना कहीं तो जरुर सुना होगा ! कभी सडको पर, कभी गली में, कभी नुक्कड़ों पर और तो और कुछ ऐसे भी लोग होंगे जिन्होंने यह जुमला कभी ना कभी किसी ना किसी पर कसा भी होगा!

हालांकि बड़ा ही घातक है यह जुमला .... कभी कभी तो इसके परिणाम भी कभी "जूतारू" होते है ! हमको याद है वो मनहूस दिन जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के विद्या+अर्थी होते थे ! हमको देखकर एक सुन्दर कन्या मुस्कुरा क्या दी हमने अपनी अगली चाल चल दी और बिना सोचे समझे उनको प्रेम का प्रस्ताव दे दिया ! जनाब बदले में उनके boyfriend ने हमारी जो गत कि वो तो देखने लायक थी ! बाद में पता चला कि वो हंसमुखी थी जिनकी सूरत ही मुस्कुराती हुई थी !

बहरहाल ......जैसे साल में एक दिन औरतों का, एक दिन बच्चो का, एक दिन रोग का, एक दिन भोग का,एक दिन पेड़ों का , एक दिन धरती का आता है ,उसी तरह एक दिन हंसने का भी आता है ! जो आज आ गया है ! हंस लो .....जी भर कर हंस लो....इस दिन लोग अपने साथियों के साथ एक पार्क में जाते है और ठहाके मार मार कर हंसते है ! मज़े कि बात यह है कि इस दिन बिन बुलाये कोई हज़ार पांच सौ लोग उस सरकारी पैसो से बने राजकीय उद्यान में अपने आप इक्कठे हो जाते है !

खोजबीन करने पर हमने पाया कि यहाँ अक्सर वे लोग आते है जो घर पर नहीं हंस पाते ! अब घरों में ना हंस पाने के कई कारण भी होते है ! अब देखिये गृहस्थी कि गाडी में दो पहियें होते है पति और पत्नी ! ये दोनों पहिये दुरुस्त हो तो गाडी भी मज़े से चलती है और जीवन भी पर कई बार ईश्वर भी तगड़ा मजाक कर देता है ! गृहस्थी कि गाडी में एक पहिया ट्रेक्टर और एक पहिया साइकिल का लगा देता है ! बताइए ऐसे में कोई गाडी कैसे सुचारू रूप से चल सकती है ? खुदा का शुक्र है मेरी अब तक शादी नहीं हुई ! और इसी विरोधाभास के चलते लोग हंस नहीं पाते !
अब चाहे आप कुछ भी कहे जनाब ...हम तो यह मानते है कि अगर इस दुनिया में विदूषक ना हो तो ससुर यह दुनिया आलू कि बासी तरकारी कि तरह होगी , जो देखने में तो बड़ी खूबसूरत लगती पर खाते ही तबियत नासाज़ हो जाती ! हमारी समझ में इस सकल सृष्टि में सबसे बड़ा मसखरा , विदूषक ईश्वर -अल्लाह है जो आदमी से ऐसी ऐसी ठिठोली करवाता है कि गर्व के नशे में चूर इंसान पल भर में हक्का बक्का रह जाता है ! जब कोई आदमी मसखरापन दिखलाए तो उससे नाराज़ हुआ जा सकता है , पर ईश्वर के आगे किसकी चलती है !
हँसना जरुरी है हालांकि कुछ लोग भ्रम फैला रहे है कि "डरना जरूरी है" अजी हरी का नाम लीजिये डरे हमारे दुश्मन के दुश्मन ! डरना नहीं हँसना जरूरी है !हंसी के कारण ही आदमी मालामाल होता है !

हमारी समझ से "हंसी तो फंसी" आज के मैनेजमेंट गुरुओ को अपना लेना चाहिए अगर आप अपने ग्राहक को हंसाने में सफल हो गये तो समझिये आप उसको फंसाने में भी सफल हो गए !लेकिन जो हंसी फंसाने के लिए हंसी जाए वो नकली होती है ! एक बात और कहे आपसे - दूसरो पर हँसना जितना आसान है खुद पर हँसना उतना ही मुश्किल ! इसलिए यदि आप सच मुच हंसमुख इंसान बनना चाहते है तो अच्छे से खुद पर हँसना शुरू कर दीजिये ! मज़ा आ जायेगा ......

इस तरह हंसने के लिए किसी दिन, किसी तारीख और किसी जगह को मत तलाशिये अपनी रसोई घर में जाकर बस बर्तनों को देखिये हंसी खुद ब खुद आएगी ! कि कैसे हमारे घर का बेशर्म कुकर हमारी काली कढाई को और बीवी को देखकर सिटी बजाता है !

एक चेतावनी : अगर आपकी बीवी व गर्लफ्रेंड बारूद कि ढेरी हो तो कृपया उसपर कभी ना हँसे ! ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि आप पड़ोसन के संग खूब हंस ले और जब पडोसी संग आपकी बीवी व गर्लफ्रेंड हँसे तो आप आग बबूला हो जाये ! आप चाहे तो अभी हंस ले हंसी किसी कि गुलाम है क्या ?

Saturday, March 20, 2010

अमरबेल

वल्लाह .....कल तो कमाल हो गया ! अब आप लोग सोच रहे होंगे कि भई......अब क्या कमाल हो गया? "सुख" कि तलाश ख़त्म हुई तो अब यह नया ड्रामा क्या है ? तो हुजुर थोडा सा सब्र कीजिये सब सामने आ रहा है ! अभी कल कि ही बात है सुबह सुबह हम अपने बागीचे में As a Amitaabh "बागबान" हम घूम रहे थे ! ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि मै आप को बतला देना चाहता हूँ कि 'ग्लोबल वार्मिंग' को हम भी बहुत मानते है !

तो हमने देखा कि लम्पट एक 'अमरबेल' हमारे बागीचे में स्वयं उत्पन्न हो गयी ! यह देख हम आनन् फानन में दौडे कुछ गुणीजनों के पास इस अमरबेल का राज़ जानने कि भला यह क्या मुसीबत है ? जो रक्तबीज दानव कि तरह जहाँ मन करे वहां उग जाती है !

तो जनाब.... सबसे पहले हम पहुंचे "योगेश्वर दुबे जी" के पास जो काफी तल्लीनता से व्यंग्य कि तलाश कर रहे थे ! एक हाथ में नारद मुनि और और दूसरे हाथ में अमेरिका कि तस्वीर लिए..... ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि आप लोग उनका यह लेख पढना जरुर.....बहरहाल , मैंने उनसे जब पूछा कि बताइए भला यह अमरबेल क्या है ? तो वो बोले - बेटा.......अमरबेल वो लम्पट चीज़ है जो जिस पेड़ से चिपक जाती है वह थोडे ही दिन में अल्लाह को प्यारा हो जाता है ! अब अल्लाह को प्यारा और खुदा का दुलारा तो तुम समझते ही हो अमरबेल जब साथ होती है तो धीरे धीरे सारा सत्व सोख लेती है ! और तो और बेटा तुम ताज्जुब करोगे कि अमरबेल से हमको डरने कि जरुरत नहीं है ! हमारे देश में तो लाखो अमरबेल आदमी का रूप धर के देश को चूसने लगी है ! ऐसे लोगो के लिए देश बर्फ चुस्की और गन्ने कि गनेरी है ! जिन्हें चूसो और फेंक दो !

बातों का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि वहां "आभा मित्तल जी" भी आ गयी अपनी एक नयी सुन्दर सी रचना को लेकर उनकी भी रचना को पढना जरूर बहुत उम्दा लेख लिखती है ! वह बात को आगे बढ़ते हुए बोली - बेटा विनय , अभी पिछले दिनों भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने कुछ अफसरों के घर छपे मारे ! ये सब दूसरी तीसरी श्रेणी के अधिकारी थे ! लेकिन जब इनके छापे पड़े तो पता चला कि इनके पास लाखो कि नकदी है , कई किलो सोना चांदी है ! एक अफसर ने तो अपने ड्राईवर के नाम पर ही पेट्रोल पम्प ले रखा था ! किसी के पास दस दस भूखंड निकले ! किसी के पास कॉलेज था ! अब इनसे पूछो कि भैया तुम्हारे पास इतना माल कहाँ से आया ? क्या धन कुबेर से कोई रिश्तेदारी निकाल आई है ? जी नहीं , यह सारा माल जनता का है और जनता रुपी वृक्ष से इन भ्रष्टाचारी अमरबेल रुपी अफसरों ने सोख लिया है !

इतने में ही वहां एक और धनुर्धर व्यंग्य बाणों के पहुँच गए "महेंदर करुणेश जी" , उन्होंने भी लगे हाथो कुछ बाण चलाये अपने अंदाज़ में बोले - हे अल्प आयु के जीव विनय सुनो - अफसरों कि क्या बात करे ? अपने नेताओं को ही ले लो ! अधिकाँश नेता ऐश के साथ रहते है ! हमने कहा - क्यों मजाक कर रहे हो ऐश के साथ तो अभिषेक रहता है ! बोले - अरे मेरे छोटे से बुलबुले - ऐश नहीं ऐशो आराम के साथ रहते है ! ये क्या कारोबार करते है ? क्या व्यवसाय करते है ? कितना टेक्स देते है ? सब कुछ इतना पर्दे में रहता है कि पता ही नहीं चल पाता ! चालिए आप सब आपको एक और बुद्धिजीवी से मिलवाता हूँ !

"गुरमीत मोक्ष" शायद उन्ही के हाथो इस अमरबेल को मोक्ष मिले - आभाजी , योगेश्वर जी , महेंदर जी संग मै भी चल पड़ा महेंदर जी के बैल गाडी में .........(आपको बता दूँ कि बैल गाडी प्रदुषण रहित यातायात का साधन है इसलिए इसका इस्तेमाल वर्तमान में लाजमी है )
गुरमीत जी एक नयी ग़ज़ल को लिख रहे थे देखते ही अपनी ग़ज़ल छुपा लिए क्योकि मै पहले भी उनकी एक ग़ज़ल को चुराने कि नाकाम कोशिश कर चूका हूँ ! बहरहाल, अमरबेल के विषय में उन्होंने कहा -अपने यहाँ अमरबेल दो तरह कि मिलती है - एक तो प्रत्यक्ष और दूसरी अप्रत्यक्ष ! प्रत्यक्ष तो सामने दिखती है इन्हें बड़ी आसानी से हटाया जा सकता है ! अमरबेल को हटाने का सबसे उत्तम उपाय है उसकी गर्भनाल को ही काट दिया जाये लेकिन उन अमरबेल का क्या किया जाये जो दिखाई ही नहीं देती ! छिपी रहती है और रस चूसती रहती है !

इतने में ही "वनिता" , "संध्या जी", "सोनिया जी", "संजय अवस्थी जी" , "वेद प्रकाश जी" सब के सब वहीँ आ गये और एक स्वर बोले - अरे कोल्हू के बैल विनय, तुम बस गोल गोल ही घूमते रहोगे कभी 'सुख' के पीछे कभी 'अमरबेल' के पीछे अरे.... कभी तो अपना स्तर बढाओ और जाते जाते यह दुर्लभ ज्ञान ले जाओ "अमरबेल हर जगह मिलती है ! जरा ध्यान से से देखो तो दफ्तर , घर, समाज सभी स्थलों पर अमरबेल फैली पड़ी है ! सरकार से वेतन लेकर मज़े करने वाले भी अमरबेल के वंशज है ! घर में भी अमरबेल मिल जाएगी ! एक भाई जी तोड़ मेहनत करता है ! दिन रात खटता है ! दूसरा आनंद उठाता है क्योकि वह माँ का दुलारा है , बाप का प्यारा है ! "

इस दुर्लभ ज्ञान को पाने के बाद मै सिर्फ इतना ही कहूँगा - "भाइयों और भाभियों ! अमरबेल से होशियार रहो इसे पनपने ना दो ! तुरंत काट कर फेंक दीजिये ! अगर अमरबेल कि तरफ आप लापरवाह रहे तो आपका हाल भी मेरी तरह और हमारे लोकतंत्र जैसा हो जायेगा ! हमे तो गुणीजनों का साथ मिल गया शायद आपको ना मिल सके !

विनय पाण्डेय

Friday, March 19, 2010

सुख कहाँ है ?

एक बड़ा ही सीधा सा, सच्चा सा किन्तु एक गंभीर प्रश्न कि "सुख कहाँ है" ? इस सवाल का जवाब जानने के लिए सारी दुनिया में जहाँ बवाल मचा हुआ है ! वहीँ तमाम लोगो के अपने अपने जवाब, अपने अपने नज़रिए कुछ philosophical , कुछ रटे-रटाये , कुछ सुने-सुनाये पेश किये !

तब मैंने सोचा...... क्यों ना ? कुछ नया तलाशा जाए.........तो चल पड़ा सर्वेक्षण करने और जो जवाब मिले वो वाकई चौंका देने वाले थे ! तो अब आप लोग भी चौंकते रहिये और पढते रहिये !

सर्वेक्षण सुख का ....सर्वेक्षण सुख का ......सर्वेक्षण सुख का .....सर्वेक्षण सुख का

पहला दिन :- "आभा मित्तल जी" से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है" ?

जवाब मिला :- सुख हासिल करने के लिए भांति भांति के धर्म बने ! सुख का पल कोई मंदिर में तलाशता है ! कोई मस्जिद में और कोई गुरुद्वारे में तलाशता है ! कोई गिरिजाघर में जाकर सुख कि discovery करता है ! लेकिन यह सुख कमबख्त मनुष्य कि तरह एक जगह पर नहीं टिकता पल भर में यहाँ तो पल भर में वहां होता है ! परन्तु ऐसा भी नहीं है कि सुख मनुष्य के जीवन में आता ही नहीं है ! पर वह इतना अल्प होता है पूछो ही मत !

दूसरा दिन :- सोनिया जी से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है "?

जवाब मिला :- ट्रेन में बिना ticket बैठ जाइए ! पूरे रास्ते भर हुकड़-टुकड़ लगी रहेगी ! डिब्बे में चढ़ने वाला हर आदमी टीटीई नज़र आएगा ! निर्धारित स्टेशन पर उतरिये और ticket collector कि आँख बचाकर गेट से बाहर निकाल जाइए ! वहीँ सुख होगा !

तीसरा दिन :- वनिता से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है "?

जवाब मिला :- आप थके हारे घर पहुंचते है ! हाथ -पांव दर्द कर रहे है ! दिल में चाय पीने कि तम्मना है ! घरवाली घर में नहीं है झुंझलाहट हो रही हो तभी घरवाली आ कर कहे कि पडोसी मीठा लाल कि लड़की "मीठी" ने भाग कर ब्याह कर लिया ! यह खबर आपके लिए सुख कि खबर लेकर आएगी !

चौथा दिन:- संजय अवस्थी जी से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है"?

जवाब मिला :- आप ऑफिस पहुचे है ! वहाँ मातम छाया हुआ है ! चपरासी चुप , बड़े बाबू चुप अन्दर बॉस चीख रहा है!आप समझ नहीं पाते कि क्या हुआ है ? तभी आपका सहकर्मी आकर कहे कि बॉस का बेटा फ़ैल हो गया ! यहाँ आपके लिए सुख होगा !

पांचवा दिन :- महेंदर कुर्नेश जी से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है "?

जवाब मिला :- आपका मित्र बरसो बाद आपको मिले ! कुछ पुरानी बाते हो ! मित्र हंस हंस कर आपको उस लड़की कि याद दिलाये जिसे आप दिलो जान से चाहते थे , पर उस लड़की कि शादी किसी कोयले के ठेकेदार से हो गयी थी ! तभी आपका मित्र आपको एक खबर दे कि उस ठेकेदार ने उस लड़की को तलाक दे कर दूसरी शादी कर ली है ! यहाँ सुख जरुर होगा !

छठा दिन :- योगेश्वर दुबे जी से मैंने सवाल पूछा "सुख कहाँ है "?

जवाब मिला :- इस युग में सुख कि अनुभूति ईमानदारी और भक्ति से नहीं बल्कि परपीड़ा से होती है ! हम तो निमित्त मात्र है ! भगवान् तक को दूसरे का सुख नहीं दिखता ! जब देवर्षि नारद ने एक सुन्दर राजकुमारी के स्वयंबर में शामिल होने के लिए ईश्वर से उनका रूप उधार माँगा तो भगवान् ने उन्हें बन्दर का मुहं दे दिया ! और बेचारे रह गए वो आज तक कुंवारे के कुंवारे इसलिए मेरे प्यारे दोस्तों सुख वहां मत तलाशों जहाँ आज के बाबा , पीर-फकीर, उपदेशक कहते है ! वहां तलाशों जहाँ मै कह रहा हूँ ! और बावजूद इसके सुख ना मिले तो आपकी जुत्ती और आपके ही दुश्मन का सिर ! किसी रिश्तेदार के लड़के द्वारा बाप को पीटने कि खबर जितना सुख देती है , उतना तो लाख रूपए चौराहे पर मिल जाये तो नहीं आता !

सभी का नजरिया और जवाब वाकई चौंका देने वाले थे ........बहरहाल, यह मुहीम अभी समाप्त नहीं हुई है ! जारी रहेगी....... शायद कहीं तो सुख मिलेगा !

ऊपर लिखित सभी गुणीजनों के नाम वास्तविक है किन्तु उनके कथन अथवा जवाब पूर्णरूप से काल्पनिक है ! यह महज व्यंग्य उत्पन्न करने के लिए नाम का सहारा लिया गया है ! किसी को आहत पहुंचे तो कृपया क्षमा कर दे ! यदि नाम के इस्तेमाल पर आपत्ति हो तो कमेन्ट करे सुधार कर दिया जायेगा !

Wednesday, March 17, 2010

मन + २ = मन्टू !!

मन + २ = मन्टू !!

जी हाँ जनाब ! यह वह सच है जिसपर से आज मै पर्दा उठा रहा हूँ ! मन्टू !

ना ....ना ....ना ....यह कोई चरित्र नहीं है और ना ही गणित का कोई मुश्किल समीकरण ! बल्कि यह तो चरित्रहीन है ! इस समाज का सबसे अधिक मनोविकृत चीज़ है !

"मन्टू" ना जाने मेरे खानदान वालो को क्या सूझा जो मेरे बचपने में मेरा घरेलु अथवा Pet Name जिसे हिंदी में 'पालतू नाम' कहे ! "मन्टू" रख दिया !

मै उस दिन को आज तक कोस रहा हूँ ! चलिए आज इसी का नाम का 'पोस्टमार्टम' करते है ! इस नाम के कई अर्थ है - पहला जिसके पास दो 'मन' हो - जो कि मेरे पास है ही नहीं यहाँ एक के ही लाले पड़े हुए है दूसरा कहाँ से लाये ! दूसरा जिसका वजन कम से कम दो (Quintal) हिंदी में 'दो - मन' का हो!

पर हाय रे ........भाग्य कि भारी विडंबना............ ऊपर वाले ने ना जाने मुझसे किस जन्म कि बैर निकला कि इस देह में बोटी घुसाना ही भूल गया और वजन रखा महज पाव भर का !

बहरहाल ......बड़े बड़े योगी भोगी एक सवाल पूछते है कि इस सकल सृष्टी में सर्वाधिक गति किसकी है ? तो जवाब सिर्फ इतना ही मिलता है कि ध्वनी और प्रकाश ! प्रकाश के सामने तो ध्वनि भी एक बच्ची जैसी लगती है ! प्रकाश एक सैकंड में लगभग एक लाख किलोमीटर का फासला तय करता है ! लेकिन यह प्रकाश भी बच्चा नज़र आता है जब "मन"कि गति कि बात आती है !

किसी ने खूब कहा है - मन लाभी मन लालची मन चंचल मन चोर !
मन के मति मति चालिए पलक पलक में ओर !!

यह मन ही तो है जो कभी चंद्रमा , कभी सूर्य , कभी अमेरिका , कभी रूस तक ले जाता है वो भी बिना उड़े, बिना चले इसे ना कभी किसी पासपोर्ट कि जरुरत थी ना वीजा कि और ना ही किसी सिक्यूरिटी कि शायद इसीलिए मन को कभी चंचल कभी पापी कहा जाता है ! दूसरे के मन कि बात को जानना आसान नहीं ! हालाँकि कुछ लोग दावा जरुर करते है कि हम मन को पढ़ लेते है ! अरे सरकार दूसरे कि मन को छोड़ो आदमी खुद के मन को भी नहीं पढ़ सकता क्योकि ना जाने इस "मन" में कितने परदे होते है !

लेकिन यह खबर जब से हमने सुनी है कि अब ऐसे कंप्यूटर इजात होने वाले है जो मन कि बाते पढ़ सकेंगे तब से हमारी ऊपर कि सांस ऊपर नीचे कि नीचे रह गयी है ! राम कसम हम तो शर्म से ही गड़े जा रहे है ! कि हम भीतर से क्या है और किसके बारे में क्या क्या सोचते है यह अगर कंप्यूटर को पता चल जायेगा तो हम तो गए ना बारह के भाव में !

मसलन एक पति अपनी पत्नी के विषय में कितने शुद्ध और पवित्र विचार रखता है यह तो उस पति के अलावा कोई नहीं जानता ! कभी- कभी ऐसा भी होता है कि आप ऊपर से तो किसी मित्र कि तारीफ़ के पुल बांधते है पर अन्दर ही अन्दर उसके प्रति कितना अगाध प्रेम है यह अगर कंप्यूटर बता दिया तो ? ऐसे में सड़क पर पाए जाने वाले प्रेमियों कि जरुर चांदी हो जाएगी वो सिर्फ उस ही लड़की से इजहार - ए- मोहाब्बत करेंगे जिस लड़की के ह्रदय में उनके लिए कुछ - कुछ होता हो ताकि करन जौहर का भी भला हो सके!

अजी...... आग लगे ऐसी मशीन को यह दुनिया परदे कि आड़ में ही ताड़ रही है ! ताड़ने दीजिये क्यों किसी को बे पर्दा करना ? वैसे तो हमारा भी "मन" कुछ - एक खुशकिस्मत लोगो को लात , मुक्का , जूते मारने का करता है पर वो सब हमसे तगड़े - तगडे है कहीं पता चल गया तो ख्वामखा मेरे नाम के आगे "था" शब्द लग जायेगा ! और इसी डर से हम आज तक उन खुशकिस्मत लोगो कि खुशामद करते रहते है ! और क्या क्या परिणाम होंगे वो सब लिखने कि जरुरत नहीं है आप लोग तो है ही समझदार !

एक फार्मूला - यदि जीवन में खुश रहना है तो अपने मन के किवाड़ को किसी के सामने मत खोलना ! जो भी खरे- खोटे करम करो उन्हें दिल की कोठडी में ही छिपाए रखना ! क्योकि जिस तरह दिल तो बच्चा है जी तो उस ही तरह वो बच्चा नंगा भी है जी !

विनय पाण्डेय

Tuesday, March 16, 2010

यह लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा

अल्लाह कि मार पड़े तुमपर , जिन्दगी नरक हो जाये तुम्हारी जाहिल , गंवार तुम लोग हज़ारों साल जीयो, क़यामत का दिन देखो, तुम्हारे घर बिजली का बिल लाखो में आये, नल खोलो तो एक एक बूँद पानी निकले, मेहमान तुम्हारे घर आये ठीक उस ही समय तुम्हारे यहाँ गैस खत्म हो जाये, अरहर कि दाल लेने जाओ और मूंग कि दाल ले आओ, आटे के बजाय गेहूं कि रोटी खाने को मिले ..........

अरे.......अरे .......आप मत डरिये यह सब आप को नहीं बोल रहा था ! यह तो कुछ लोगो को कह रहा था !
आज मै गुस्से में लाल हुए जा रहा हूँ और आप लोग इसमें भी 'व्यंग्य' तलाश रहे है ! कभी तो मुझे भी seriously लिया करो ! आज कोई व्यंग्य करने का मूड नहीं है !

आज आपबीती लिख रहा हूँ ! अभी रविवार कि बात है...... मै 'सोमवती अमावस्या' के सिलसिले में 'हरिद्वार' 'हर कि पौड़ी' में स्नान हेतु गया था ! अब जाहिर सी बात है कि बहुत भीड़ भी होनी थी वहां , जो हुई भी....... रास्ते भर सड़कों पर इतना जाम लगा हुआ था मानो मै कोई 'हर कि पौड़ी' नहीं 'बहन जी' के जलसे में गया था!

हर तरफ लोगो का हुजूम चला आ रहा था और एक साथ सब का स्वर गूँज रहा था "हर हर महादेव" !

तभी एक प्रशन मन में उठा कि इस देश में जीवन धन्य किसका है ? सवाल जितना कठिन है जवाब उतना ही सरल है ! इस देश में जीवन धन्य उसका ही है जो "लाल बत्ती" कि कार में चलता है ! लाल बत्ती वाली कार का कोई कुछ नहीं बिगड़ सकता ! अभी परसों कि ही बात है हम भी सपरिवार सहित हरिद्वार गए थे बस फर्क इतना था कि हम अपने घिसे पिटे पुराने मॉडल कि चार पहिये वाली गाडी से गए थे !

ऐसा मै इसलिए भी लिख रहा हूँ क्योकि मै आपको बता सकूँ कि मेरे पास भी एक अदद गाड़ी है!

तो उस दिन हम गलती से जेब्रा लाइन पार कर गए ! ट्रेफिक के हवालदार ने हमे रोक लिया और जुर्माना ठोक दिया ! तभी हमने देखा कि एक लाल बत्ती वाली कार लाल लाइट होने के बावजूद भी दनदनाती हुई निकल गयी ! उस कार को देख हवलदार मुठ्ठियाँ तान खड़ा हो गया ! कार निकलने के बाद हम बोले भैया ......हमने तो जरा सी भूल कि पर उसने तो ट्रेफिक नियमो को ही चकनाचूर कर दिया ! हमारी बात सुन हवालदार हंसा और बोला - तू देख नहीं रहा है वह लाल बत्ती वाली कार थी ! जिस कार पर लाल बत्ती होती है वह कहीं नहीं रूकती !

हाय रे ........लाल बत्ती कि महिमा देख हमे आभास हुआ कि पिछले दिनों हमारे नेता गण अपनी अपनी कार में लाल बत्ती लगवाने के लिए इतने लालायित क्यों होते थे ?

लाल बत्ती का अर्थ होता है "रुको "! जिस कार पर लाल बत्ती लगी होती है वह सामने वाले को सन्देश देती है कि "रुक जाओ वरना परिंदे कि भाँती उड़ा दिए जाओगे" लालबत्ती देख हम सडक छोड़कर फुटपाथ पर चढ़ जाते है ! सम्मान के कारण नहीं वरन भय के कारण !

अगर लाल बत्ती कि कार ने एक झपट मार दी तो लेने के देने पड़ जायेंगे ! चाहे गलती सामने वाले कि हो पर गुनहगार आप ही कहलाओगे !

कुछ ज्ञान : लाल बत्ती का अंग्रेजी अनुवाद red light होता है ! और जहाँ लाल बत्ती वाली गाड़ी खड़ी होती है वह कहलाता है red light area ! हम तो उस क्षेत्र में जाने से भी थरथराते है ! ना जाने कब क्या अनहोनी हो जाये !

मित्रों .........लालबत्ती कि महिमा अपरम्पार है ! अगर ईश्वर साक्षात् हमारे सामने खड़े होकर कहे कि पुत्र ........! मांगो ! कोई वरदान धन ,संपत्ति ,भोग,ऐश्वर्य...........क्या चाहिए तो हम कहेंगे - हे परम पिता परमात्मा देना हो तो हमे लाल बत्ती वाली कार दे दो बाकी तो उसके साथ मिल ही जायेगा !

यह है रेड लाइट कि महिमा ...................
और इसीलिए मै भी गुस्से में लाल हो चूका हूँ !

"यह लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा "

Monday, March 15, 2010

एक उदासी !!!

आज लिखने का मन नहीं कर रहा है क्योकि आज मुझमे "एक उदासी" है ! आज मेरी ज़िन्दगी में ऐसा पल आया जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं कि थी ! और इसलिए मै उदास हूँ !

बस .............आप लोगो कि यह ही आदत मुझे अच्छी नहीं लगती कि आप लोग मुझपर विश्वास नहीं करते !

क्यों.......................?

मै उदास नहीं सकता मै क्या कोई अलग ग्रह का वासी हूँ ! यह तो पूछना चाहीए ना.......कि क्यों उदास हो क्या बात है ? आप लोगो को मेरी उदासी में भी 'व्यंग्य' दिखता है ! जानते हो आज क्या हुआ ?
मेरे एक परम दोस्त "कुलभूषण " ने दूसरी शादी कर ली....वो भी अदालती शादी क्या होगा उसकी पहली पत्नी का ? कौन सोचेगा उसके बारे में ..........?

यह माना कि इतिहास भरा हुआ है इन सबसे अब "राजा दशरथ" को ही लीजिये उनकी पटरानी भले ही "कौशल्या" थी, लेकिन चलती सिर्फ नयी रानी "कैकई" कि थी ! "कृष्ण" पर भी "रुक्मणी" से ज्यादा "सत्यभामा" का प्रभाव था बस "राम" ही समझदार थे इसलिए एक ही विवाह किया ! "द्रोपदी" को भी जीवन भर ये ही मलाल रहा कि उसका पति "अर्जुन" उससे ज्यादा "सुभद्रा" कि लल्लो चप्पो करता था !

अजी ........जनाब फ़िल्मी दुनिया में तो पति और पत्नी ऐसे बदले जाते है जैसे अधोवस्त्र ! किसी भी शादी शुदा कि बीवी बनना फ़िल्मी जगत में कोई बड़ी बात नहीं है ! फिर चाहे वो "हेमा" हो या "श्रीदेवी"! हैरानी कि बात तो यह है कि इन दूसरी बीवियों के इस कृत्य को निजी जीवन कि घटना कहकर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है ! ये दूसरी बीवियां सांसद तक बन जाती है !

अब आप जरा सर्वेक्षण करे तो आपको इस समाज में इतने सारे लोग नज़र आयेंगे, जिन्होंने एक पत्नी के रहते दूसरा ब्याह रचा रखा है ! पुराने ज़माने में गावों में बच्चो का जल्दी ब्याह हो जाता था ! यह ग्रामीण बच्चे जब बड़े होकर शहर में बड़े अफसर बन जाते थे तो सबसे पहले दूसरी शादी का बंदोबस्त करते थे ! एक गाँव वाली, एक शहर वाली
"राजा दुष्यंत" तक ने भी यह ही किया था ! उन्होंने वन में जाकर "शकुंतला" को गर्भवती किया और खुद नगर में भाग आया ! वो तो भला हो "कण्व ऋषि" का जो "शकुंतला" को लेकर भरे दरबार में ही पहुँच गए !

मै तो भैया .......सबसे पहले नंबर वन बीवियों से कहना चाहता हूँ ! " अरे .......बहनाओ ! जागो ! अपने हाथ में बेलन उठाओ और अपने पतियों से भिड जाओ! अपने अधिकारों को समझो ! अपने हक के लिए लड़ो ! अपने शोहरों को मुआवजा और भत्ता देने के लिए मजबूर कर दो ! भला चोर के कितने पाँव ?

कम्बख्त.......सारी छकड़ी ना भूल जाये तो मै अपना नाम बदल लूँगा ! सावधान मूंछधारी ! जैसे तुम दो पत्नियाँ रखते हो अब पत्नी भी दो दो पति रखेगी ऐसे में तुम्हारा क्या होगा? अगर ता ता थैया नाचने ना लगे तो मै भी विनय नहीं ! अरे भाई....... मेरे हमारे पूर्वज जरुर बन्दर थे पर उन बंदरों ने ही इंसान बनकर विवाह का आविष्कार किया था ! शादी आदमी को इज्जत बख्शती है! फिर आज के ज़माने में जहाँ दाल ६० रुपये किलो बिकती है वहां दो दो बीवी का रिस्क क्यों लेना !
हाय रे मूर्ख मानव ! तू कब समझेगा मुसीबत जितनी कम हो उतना ज्यादा अच्छा होता है !
अब आप ही बताये मैंने कोई व्यंग्य किया ! नहीं......... क्योकि आज मेरा लिखने का मन ही नहीं था क्योकि आज "एक उदासी" है मेरे मन में !
विनय पाण्डेय

हम तो डूबेंगे सनम तुम्हे साथ लेकर

"हम तो डूबेंगे सनम तुम्हे साथ लेकर "

लोग कहते है मरता हुआ आदमी कभी झूठ नहीं बोलता ! इसलिए पुलिस और अदालत भी मृत्यु से पहले दिए बयान पर बड़ा यकीन करती है ! पर कुछ लोग ऐसे "घाघ" होते है जो मरणोपरांत भी परेशान करते है ! मेरे गाँव का एक किस्सा लिखता हूँ - मेरे गाँव में एक चोर रहता था हालाँकि कभी गिनती नहीं कि थी मैंने कि कितने चोर थे बस ऐसे ही लिख दिया और अब तो आप लोगो कि भी मजबूरी बन गयी है कि इसको पढे क्योकि

" एक बार जो मैंने write कर दिया तो फिर मै अपने आप भी उसको delete नहीं सकता"

बहरहाल, चोरो के भी अपने सिद्धांत होते है प्राय: वो अपनी बस्ती में चोरी चकारी नहीं करते ! किन्तु वो मेरे गाँव का चोर तो अपने ही आस पड़ोस में हाथ साफ़ कर लेता था ! उससे गाँव वाले बड़े परेशान थे ! जब चोर बूढ़ा हुआ तो एक दिन उसने सभी गाँव वालो को अपने पास बुलाया और कहा - भाइयों ! आप लोगो के दिल में मेरे लिए बेहद नाराज़गी है! क्रोध है ! मेरे जीते जी तो आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सके किन्तु आज जब मै मरने वाला हूँ तो आप लोग अपनी सारी भड़ास मुझपर निकाल लेना और मेरी लाश को डंडे से पीटना , मेरे कलेजे में चाक़ू भोंक देना , जिससे आप लोगों के दिलो में जल रही प्रतिशोध कि ज्वाला शांत हो जाये ! और वैसे भी यह देह तो मिट्टी कि है जो कि मरने के बाद मिट्टी में ही मिल जाएगी ! बेचारे गाँव वालो ने उस चोर कि आखरी ख्वाइश और अपनी भड़ास निकलने के लिए वैसा ही किया उसकी लाश को खूब पीटा और जब वे यह कर रहे थे ठीक उस ही समय पुलिस आ गयी ! पुलिस ने आरोप लगाया कि गाँव वालो ने उसका क़त्ल किया है ! असल में उस "घाघ" चोर ने एक दिन पहले ही पुलिस को चिट्ठी लिख दी थी ! "कि मेरी जान को खतरा है " बेचारे भोले भले लोग फंस गए ! तो साहब, कई बार आदमी मरते मरते भी झोलझाल कर देता है !

मरते समय भी आदमी कि जान मोह माया में अटकी रहती है !
हमारी सोसाइटी के ही जाने माने हलवाई दादा कि जब अंतिम घड़ी आई तो उन्होंने अपनी पत्नी को अपने पास बुलाया और कहा - मेरे मरने के बाद तुम मेरी दूकान बड़े बेटे "कल्लू " को दे देना पत्नी ने कहा - अजी "कल्लू" तो अच्छा है क्यों ना हम दूकान "बल्लू" को दें दें ? हलवाई दादा अपनी पत्नी कि बात मान गए ! वे आगे बोले - अच्छा जितने भी जेवर है वो बेटी "पद्मा" को दे देना इसपर पत्नी बोली -अजी........ पद्मा का कन्यादान तो हो गया है क्यों ना वो जेवर हम बिट्टू कि बहु को दें दें ? यह सुनते ही हलवाई दादा चीखे - अरे............ मुझे एक बात बता कि मर मै रहा हूँ या तू.........!

एक और बात ........ ना जाने क्यों अपने यहाँ आदमी के मरते ही उसके सात खून माफ़ हो जाते है ? एक प्रोपर्टी डीलर ने लोगो को सैकड़ों फर्जी प्लाट बेचे ! एक ज़मीन का टुकड़ा नौ लोगो को बेच दिया ! करोड़ों का घोटाला कर के मर गया ! उसके मरते ही वो "स्वर्गवासी" हो गया पर जिनका पैसा खा कर मरा वे लोग आज भी रो रहे है ! मज़े कि बात तो यह है कि उस प्रोपर्टी डीलर के घर वालों ने तीन दिन तक थूक के आंसू लगाये और बाद में "लड्डू" "पेडे" उडाये और जिन्होंने उससे ज़मीने खरीदी वो लोग आज तक सच्चे आंसू बहा रहे है !
और शायद ऐसे ही लोगो को ध्यान में रख कर ही यह कहा गया कि "हम तो डूबेंगे सनम तुम्हे साथ लेकर"

विनय पाण्डेय

Friday, March 12, 2010

आप क्यों लिखते हो ?

आप क्यों लिखते हो ?

हमारी एक शुभचिंतिका को हमारे ब्लॉग से कुछ ज्यादा ही परहेज है ! वो समय समय पर सिर्फ एक ही प्रशन ही पूछा करती है कि "आप क्यों लिखते है ? " "आप को लिखने के लिए विषय कहाँ से मिलते है ? " कसम अपने computer कि और key board कि उसके सवाल रावलपिंडी के तेज़ गेंदबाज़ 'शोएब अख्तर' कि गेंदों से भी ज्यादा घातक होते है ! मै लिखता हूँ...... प्रतिदिन लिखता हूँ....... किन्तु कभी इस पर विचार नहीं किया कि मै क्यों लिखता हूँ ? क्यों लिखता हूँ ? क्योकि मैं इस देश का सामान्य व्यक्ति हूँ और जैसे कि एक आम व्यक्ति कि आदत है वो तब तक नहीं सोचता और लिखता जब तक कि बात उस पर ही ना आ पड़े ! ना ही प्रतिक्रिया ही जतलाता है ! अब देखो दाल के भाव अर्धशतक को पार कर रहे है , प्रणब दादा अपनी 'दादागिरी' कर रहे है ,पर आम आदमी चुप .........चीनी ,केरोसिन के दाम बैलों कि तरह उछल रहे है , पर नागरिक नहीं बोल रहे ! शेयर का सांड बिग्डैलों जैसा व्यवहार कर रहा है , पर लोग नहीं बोल रहे है ! पानी के लिए हाहाकार है ! गेहूं का आटा मानो परचून वाले का चांटा बन गया है ! भ्रष्टाचार का आलम यह है कि रोज रिश्वत खोर पकडे जा रहे है ! बावजूद इसके तमाम न्यूज़ चेनल वाले हमको २०१२ का डर दिखा कर डरा रहे है !

लेकिन हुजुर एक लेखक के लिए ये ही सबसे माकूल समय है ! उसे लिखने के लिए जरुरत से ज्यादा खुराख मिल रही है जैसे बरसात में मेंढकों कि चांदी हो जाती है ठीक उसी तर्ज़ पर इन दिनों लेखको कि चांदी हो रही है ! लेकिन फिर सवाल उठता है कि लिखने से क्या होता है ? कुछ बदलता है ! या लिखना भी एक आत्मरति है ! हमारे एक कवी मित्र प्रतिदिन संध्यावंदन कि तरह एक कविता रोज़ लिखते है ! चूँकि उनकी कविता के एक मात्र श्रोता हम ही है इसलिए हमे जब तब पकड़ कर एक कविता जरुर बांच देते है !कविता सुनने के शुल्क में हम उन्हें एक cafe coffee house ले जाते है ! पीते हम है बिल वे चुकाते है ! बेचारे कवि पर दो-दो मार ! कविता लिखते वक़्त अपना खून जलाओ और फिर सुनाने के लिए अपना बटुआ खाली करो ! हुजुर सच कहें........... आज अपने यहाँ क्या हो रहा है ? जो लिख रहा है वही पढ़ भी रहा , जिसके लिए एक कवि अपनी आत्मा को सुलगा कर कविताएँ गढ़ रहा है वह मजदूर तो बीडी के कश लगा रहा है !और अगर श्रृंगार प्रधान है कविता तो नायिका ऑफिस में नया बॉयफ्रेंड तलाश रही है ! ऐसे में कौन सुध लेगा उस कवि और लेखक कि जो उसकी याद में कविता लिख रहा है !

व्यंग्य करने वाला खुद ही अपने व्यंग्यो को पढ़ कर हंस रहा है ! "कटाक्ष" करने वाले पर ज़माने भर का कटाक्ष हो रहा है !एक लेखक प्रतिदिन इस लालच में कि कहीं कोई मेरे लेखों को पढता भी है या नहीं यह जानने के लिए रोज़ इन्टरनेट पर अपने ब्लॉग को खोल कर कमेन्ट देखना चाहता है पर ना उम्मीदी के अलावा और कुछ हासिल भी नहीं कर पाता है और इसी पशोपेश में फिर एक नया ब्लॉग लिखने बैठ जाता है कि शायद इस पर कोई कमेन्ट आ जाये ! मज़े कि बात तो यह है कि यह सब जानने के बावजूद भी लेखक है कि लिखे जा रहा है ! क्यों लिखे जा रहा है ?
पता नहीं ......

"आप क्यों लिखते है ?" हालाँकि यह सवाल मेरे लिए था इसलिए जवाब देना भी मेरे "की बोर्ड" का धर्म है !
उत्तर :- मै विनय इसलिए लिखता हूँ क्योंकि लोगों को आज कल Three Idiots के मूत्र विसर्जन ,स्तन , बलात्कारी और तोहफा क़ुबूल जैसे संवाद पर हंसी आती है ! जब परिवार के साथ बैठ कर इस सिनेमा का आनंद लेते है और इन संवादों पर हम सब ठहाके लगते है !और तो और मज़े कि बात तो यह है कि यह सिनेमा ताबड़ तोड़ व्यवसाय भी करती है ! तो क्या मेरा व्यंग्य कटाक्ष नहीं चलेगा जिसमे समाज कि ही तश्वीर है बस थोडा सा व्यंग्य का चोला पहने हुई है !

अब आप बताये ..............."आप क्यों लिखते है "

विनय पाण्डेय

Wednesday, March 10, 2010

अतुल्य भारत

अतुल्य भारत
आपने कभी ना कभी तो अपने टी.वी सेट पर अतुल्य भारत कि तस्वीर जरुर देखी होगी ! हाँ ! हाँ वही जिसमे एक लड़की अपनी आंखे नचाती है ! याद आया ...... "बन्दर देखा, हाथी देखा
बारहसिंघ और चीतल देखा........"

वाकई बहुत लाजवाब प्रचार है ! मुझे बहुत पसंद है ! तो जाहिर सी बात है आप को भी बहुत पसंद होनी चाहिए तो अब जिसको पसंद है वो इसको पढे ! नहीं, तो भी वह पढे !
अरे ............अरे.........माफ़ करना पता नहीं क्या क्या लिख दिया ? मेरा मकसद आपको डराना नहीं था बस यूँ ही slip of finger हो गया ! अब माफ़ भी कर दो ! अभी कोई लड़की होती तो फट से माफ़ कर देते भले ही उससे slip of tongue हो जाता ! और मुझे माफ़ करने में तकलीफ हो रही है ! पक्षपाती.......................खैर !

उस प्रचार में अतुल्य भारत कि तस्वीर तो ठीक थी पर मेरा नजरिया कुछ अलग है ! हालाँकि इस प्रचार कि कॉपी राईट नहीं है मेरे पास पर कुछ बदलाव के साथ अपना नजरिया पेश कर रहा हूँ ! सुर-ताल आप स्वयं लगाये यह मेरा काम नहीं है !

"खादी देखा,खाखी देखा !
बाबाओं का गोरखधंधा देखा !!
दिल्ली के तख्तो ताज पर,
नरपिशाच, नरभक्षी देखा !!
मिलावट, रिश्वत का अजब अजूबा,
इटली में दिल्ली का सूरज डूबा !!
"अफजल गुरु" का संसद,
और आतंकवादियों कि दहाड़ देखा !!
खिलाडियों कि होती पूजा,
फिरोजशाह ने दे दिया गच्चा !!
बी .एस .इ. एस महकमों में भटका,
पी.सी.आर ने दे दिया झटका !!
एन.डी.ए और यू.पी.ए लगे झूलने,
राजद ,सपा ने जैसे ही गठबंधन खींचा!!
"शंघाई" के नाम पर मिली टूटी फूटी सड़के,
ट्रेफिक जाम में खुद के पसीने को सींचा !!
मेट्रो कि छिक छिक छुक छुक सुनकर,
आ पहुंचा मै राष्ट्र मंडल २०१० खेल पर....
झुग्गी वालों के आंसूओ की शांति में,
खुद के अन्दर झाँक कर देखा !!
हिन्दुस्तान का दिल देखा !!
हिन्दुस्तान का दिल देखा!!!!
The Heart of Incredible India. Delhi

"शंघाई" बनाने की तैयारी हो चुकी है ! बस आप की जरा सी जर्रानवाजी और चाहिए ! वो कहते है ना .....खैर छोडिये क्या कहना ? एक शायर का एक कलाम याद आ गया कि
"दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं है !
कुछ दोस्तों कि और मेहरबानी चाहिए !!"
विनय पाण्डेय

Tuesday, March 9, 2010

Beep Beep ...............Baba !!!

"इस दुनिया में भांति-भांति के लोग...
कुछ कम .beep.....beep.........?
कुछ ज्यादा .beep.......beep.............?"

माफ़ करना हुजुर ! सामाजिक मंच है इसलिए अपशब्द नहीं लिख सकता पर इतना मजबूर भी नहीं कि एहसास नहीं करवा सकता! आये दिन समाचार सुन रहा हूँ ! देख रहा हूँ ! कभी किसी गली में, कभी किसी नुक्कड़ पर, कभी पर्वतों पर, कभी नदियों में, कभी आश्रम में, कभी शमशान में, कभी कुम्भ में, कभी घाटों पर हर जगह एक अदद भगवा धारी बाबा का वास है ! जो लम्बी सी दाढ़ी , लम्बे से बाल गले में दुनियां भर के कंठी माला पहने, उम्र के अंतिम पड़ाव पर और भगवा पहने और हाथों में कमंडल लिए इस कलयुग में विचरण कर रहे है ! कोई योग साधना में लीन है ! कोई भोग साधना में लीन है ! कुछ इच्छाधारी तो केवल साधना के साथ लीन है !
अब तो डर लगता है कि ना जाने कब गलती से "संस्कार" कि "आस्था" टूट जाये और प्रात:काल किसी बाबा का सीधा प्रसारण सीधे उनके शयन कक्ष से दिख जाये ! और संवाददाता चिल्लाये - देखिये आप इस वक़्त देख सकते है अपनी टी.वी स्क्रीन पर हमारी यह Exclusive Report जो कि सबसे पहले हमारे न्यूज़ चैनल पर प्रसारित हो रही है ! पहचानिए इस पाखंडी बाबा को जो अपनी एक चेली के साथ सो रहे है ! अब आप देखिये बाबा कैसे पानी पी रहे है ! देख लीजिये गौर से इस बाबा को कि कैसे बाबा लड़की को कमर पर चिमटी काटते है ! कैसे बाबा साड़ी खींच रहे है ! कैसे यह बाबा द्रोपदी का चीर हरण कर रहे है ! क्या आप ऐसे बाबा पर विश्वास करेंगे ? फिर कुछ बेवकूफ इस विषय पर बहस करेंगे ! कुछ पक्ष में कहेंगे, कुछ विपक्ष में रहेंगे ! 1 घंटे ड्रामा होगा फिर सब शांत ..............
अगले दिन फिर एक नए बाबा का उत्पादन होगा और फिर वो राम भजन गायेगा या फिर कृष्ण लीला यह पब्लिक डिमांड पर तय होगा ! लोग हरे रामा........ हरे रामा बोलेंगे.......... या हरे कृष्णा.......... हरे कृष्णा................ यह सब चढ़ावे के बाद तय होगा !
लेकिन असली बात तो यह है कि उस बाबा का क्या होगा जो पकड़ा गया सेक्स रैकेट में ? कुछ नहीं.....
जमानत पर रिहा हो जायेगा आज तक कितने बाबाओ को सजा हुई है ! जो इसको हो जाएगी .......
बलि वाले बाबा आज़ाद है ! योग वाले बाबा आज़ाद है ! भोग वाले बाबा आजाद है ! क्योकि जब तक "आशा" है , तब तक "राम" है और "बापू" का तो देश है ! फिर चाहे कोई "राम" हो "देव" हो या किसी कि कैसी भी "इच्छा" हो सब के सब "इच्छाधारी" है बस श्री श्री करते करते "रवि" दर्शन करो और "शंकर" का स्मरण करो क्योकि मानव स्वाभाव ही "नित्य" "आनंद" करता है !
जरा गौर कीजिये जितने भी बाबा आज के युग में है उनकी गाढ़ी कमाई कितनी होगी ? और वो लोग कितना Income Tex देते होंगे इसका ब्यौरा निकलवाये तो आयकर विभाग हड़ताल कर देगा और जवाब "शून्य" निकलेगा ! किन्तु इनके आश्रम,मठ और सिहांसन को देखे तो मुग़ल बादशाह "शाहजहाँ" भी एक बार फिर से कब्र में ही दम तोड़ देगा ! "किन्नर" जाति का मजाक उड़ाने वाले बाबा भी अब तक नहीं समझ सके कि ऐसे लोग भी उस ही ईश्वर कि कृति है जिनकी वो खुद है कुछ तो शर्म किये होते बाबा तुमसे यह "आशा" नहीं थी कि तुम मुहं में "राम" कहोगे और पीठ पर मजाक उड़ा दोगे और बच्चो कि बलि दोगे वो भी "बापू" के देश में !
काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, माया ! असली बाबा कि चंद निशानी ऐसा नहीं है कि बाबा का उत्पादन पहले नहीं होता था पर पहले १०० % शुद्ध बाबा होते थे ! साईं बाबा , कबीर , गुरु नानक इत्यादि ऐसे नाम है जिनको ना आश्रम कि जरुरत थी, ना चढ़ावे कि, ना भगवे कि, ना भक्तों कि, वो ज्ञानी थे ! आज कल के बाबा ना ज्ञानी है ना अज्ञानी है बस एक ही नाम है उनका ....Beep......Beep.............?
किसी जानवर का नाम लिख कर मै उस जानवर का अपमान नहीं करना चाहता था इसलिए यह नाम सटीक लगता है !
जो बरबस मेरे मुह से फूट पड़ता है किसी बाबा को और उनके भक्तों को देख कर कि
" इस दुनियां में भांति भांति के लोग ...
कुछ कम ..Beep..........Beep..................?
कुछ ज्यादा ..Beep.........Beep............................? "
vinay pandey