Wednesday, April 28, 2010

'विनय' से बचो ........

'विनय' से बचो ........

( विनय भाई रसिक भाई मेहता) से हमारी मुलाकात नवरात्रि के दौरान खेले जाने वाले डांडिया समारोह में हुई थी !

हम अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेल रहे थे कि अचानक

सिल्क का कुर्ता-पायजामा पहने एक अर्ध गंजे पुरुष डंडे बजाते हुए हमारे बीच में कूद पड़े और हमे एक तरफ कर के हमारी उपस्थिति में ही हमारी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेलने लगे !

हम अपना कलेजा जलाते हुए एक तरफ खड़े रहे कसम से अगर उस दिन हमारे हाथ में डांडिया के बजाय खुरपा होता तो उनके बचे खुचे बाल भी छील देते !

खेल ख़त्म होने पर हमारी गर्लफ्रेंड ही उन्हें हमारे पास लायी और

बोली - देखो विनय ...यही है विनय भाई रसिक भाई मेहता !
V.M Boutique के मालिक जिनसे मैं अपने ड्रेस लेती हूँ !

विनय भाई को देखते ही हम समझ गए कि यह पैदाइश ही रसिक है !

बहरहाल , उस दिन से हमारी विनय भाई रसिक भाई मेहता से मित्रता हो गयी ! वही विनय भाई अभी दो दिन पहले हमारे घर आये और

बोले - मैं अपना नाम बदल रहा हूँ ! हमने चौंक कर कहा क्या कहते हो विनय भाई ? आपका नाम तो इतना चोखा है ! इतना झकाश है ! इतना सोलिड है ! बिलकुल हमारे नाम से मिलता जुलता !

वे बोले - यही तो रोना है ...कि हमारा नाम बिलकुल आपके नाम जैसा है कल तक जब हम आपको नहीं जानते थे तब तक तो ठीक था किन्तु अब तो दाल रोटी के भी वांदे पड़ गए है !

जो लोग बुटिक पर आते है हमारा नाम पूछ कर ऐसे भाग जाते है जैसे हमने अपना नाम नहीं कोई विस्फोटक सामग्री का नाम ले दिया है ....

पूछताछ करने पर पता चला कि यह वही विनय है ना जो ब्लॉग जगत में लोगो को झेलाता है ! और तो और हमने सुना है विनय नाम के दो ठग भी पकडे गये है पिछले दिनों .....

विनय भाई कि बात सुनकर हम भी चक्कर में पड़ गए क्या सचमुच विनय नाम का इतना खौफ है ?

अचानक हमे विनय भाई से डर लगने लगा ! अपनी घबराहट को छिपाते हुए हम

बोले - विनय भाई ! नाम में क्या रखा है ? यह तो संयोग मात्र है ! अब देखो हमारे नाम कि विडंबना भी ऐसी ही है ! कानपुर में हमारा नामकरण हुआ बड़े प्यार से हमारी मौसी मधु पाण्डेय जी ने नाम रखा विनय पाण्डेय बड़े हुए तो हमारी कक्षा में विनय नाम के तीन छात्र थे ! दुष्कर्म वो करते थे और मरम्मत हमारी हो जाती थी !

और बड़े हुए तो विनय नाम का हमारे मोहल्ले में एक लड़का और भी था लड़कियां वो छेड़ता था फिर उस लड़की के भाई हमको लात मुक्को से छेड़ जाते थे !

पर जनाब हमने कभी बुरा नहीं माना क्योकि कभी कभी फायदा भी हो जाता था इस नाम का, हम भी सीटियाँ बजा लेते थे और फिर बज दुसरे विनय कि जाती थी !

परीक्षा में परचा खाली हम छोड़ देते थे और उसी पर्चे में हमको सबसे ज्यादा अंक भी मिल जाते थे !

और जब से ब्लॉग लिखना शुरू किया तो हमसे पहले ही यहाँ विनय नाम के दो तीन दिग्गज बुद्धिजीव मौजूद थे ! और हमारे भोले भाले पाठक आज तक Confusion में उनका नाम पढ़कर हमे पढ़ जाते है !

तो बोलिए जनाब विनय नाम के फायदे है कि नहीं , बहरहाल विनय भाई तो चले गए पर जाते जाते एक विचारणीय प्रश्न दे गए कि क्या वाकई विनय से बचो ?

अब यह तो आप जानो हमारा तो खैर नाम है ही विनय पाण्डेय किन्तु कुछ अति बुद्धिमान हमको भूत अथवा ना जाने क्या क्या समझते है !

जय राम जी कि ......

Wednesday, April 21, 2010

मंगल + पाण्डेय

मंगल + पाण्डेय

^^ घरवाली आँगन में गावे
मंगल भवन अमंगल हारी
देश के लूटा बारी-बारी
जियो बहादुर खद्दरधारी .........^^
जनाब यह मेरी सोच नहीं है , आप तो ख्वामखा नाराज़ हो रहे है ! यह तो मैंने कभी हास्य कवि सम्मेलन में सुना भर था और चिपका यहाँ भर दिया !

हुआ यूँ कि आज मैंने निर्णय लिया कि मैं मंगल कि बजाऊं.........
तो जाहिर सी बात है कि मंगल का जिक्र भी होगा !

क्या कहा ? मैं मंगल पाण्डेय कि बात करूँ !

अजी रहने दीजिये किसी फ्लॉप फिल्म कि क्या बजाए जिसकी जनता जनार्दन ने पहले ही बजा दी !

क्या ? क्या ? आप फिल्म कि नहीं उस वीर क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय कि बात कर रहे है जिन्होंने 1857 कि क्रांति का सूत्रपात किया था !

अजी साहब उनके बारे में कुछ कहना मेरे कलम के बस कि बात नहीं है वो तो महान थे और मैं ठहरा छोटा सा जीव...

मैं बेचारे मंगल ग्रह कि बात कर रहा हूँ !
क्या पूछा आपने ? कि मंगल पर जीवन है कि नहीं ?

कमाल करते है आप भी मेरा नाम गूगल पाण्डेय नहीं विनय पाण्डेय है ! अगर मंगल पर जीवन तलाशना है तो जाइए गूगल में सर्च मारिये ...सारी जानकारी फ़ोकट में मिलेगी !

हाँ जी अब सही समझा आपने वही मंगल जिसका शादी ब्याह में उतना ही महत्व होता है जितना पंडित , मौलवी और पादरी का !

मंगल का खेल भी बहुत ऊँचा होता है ! किसी कि कुंडली में नीच का मंगल तो किसी कि कुंडली में ऊँच का मंगल !

मांगलिक कन्या के लिए मांगलिक वर ही देखा जाता है ! अगर मंगल ग्रह वधू का भारी तो वर के कैरियर कि समझो लग गयी....................... वाट !

क्षमा करे ! हमारे इस तरह के वक्तव्यों से आप यह ना समझे कि हम आजकल ब्राह्मणगिरी अथवा ज्योतिष शास्त्र का अध्यन कर रहे है !

ना जी ना ..... हमारी कुंडली में तो पहले ही शनि वक्री चल रहा है राहू घर कि तलाश में बैठा है और केतु ना जाने कब से हिचकोले ले रहा है ! हम तो बस यूँ ही मंगल के साथ दंगल कर रहे थे !

अपने देश को तो हम पहले भी कह चुके है कि हम घोंचुओ का देश मानते है ! अब घोंचू का अर्थ आपको भी बता चुके है !
लीजिये अभी पिछले वर्ष कि बात याद आ गयी हमारे मोहल्ले में एक सज्जन कि बेटी कि शादी तय हुई , कुंडली मिलान भी हुआ पता चला कि लड़की का मंगल भारी है और यह भारीपन लड़के के कैरिएर पर भारी रहेगा और इस वजह से शादी तोड़ दी गयी थी !

बहरहाल , कर्म से तो नहीं किन्तु जन्म से तो हम भी ब्राह्मण है और इतना दावे के साथ उस वक़्त हम कह चुके थे कि यह मंगल भारी तो पड़ेगा ही किन्तु वर-वधू के जीवन पर नहीं वरन समाज के दकियानूसी रिवाजो पर, कुंडली मिलाने वाले पर , भविष्य बताने वाले पर और उनके मात पिता पर जिन्होंने महज इस वजह से दो प्रेमियों को अलग कर दिया क्योकि मंगल भारी था !

और फिर हुआ भी यह ही ( वर -वधू ) दोनों ने अदालती शादी कर ली वह भी घर से भाग कर और जज साहेब को वजह बताया कि मंगल भारी था !

अब आप खुद बताइए मंगल किसपर भारी हुआ ?

यकीन नहीं मानेंगे पर बात एकदम पुख्ता है मंगल उनपर ही भारी हुआ जिनपर हमने अंदाज़ा लगाया था !

आज एक साल बाद दोनों मियाँ बीवी घर लौटे वो भी खुश साथ में एक आनेवाली खुशखबरी के .....

इसका मतलब फिर से फ़ोकट का खाना मिलेगा इस दरिद्र को !

तो भैया ...यह जो दो पैर का जंतु है ना ...इंसान यह बड़ी शातिर चीज़ है अपने कर्मो का फल ग्रहों पर डाल देता है !

अजी मंगलमुखी सदा सुखी ! मंगल तो कभी किसी का अमंगल करता ही नहीं बस यह इंसान ही है जो मंगल से दंगल करता है और नाम बेचारे मंगल का लगा देता है !

अगर मंगल को कोई आपत्ति होती तो भला नासा के लोग जो उसके पीछे हाथ धो कर पड़े है वो उनपर भारी होकर उनको सबक नहीं सिखा देता !

चलिए आप लोगों से बात करने का मूड था और कोई मुद्दा भी नहीं था तो एक मुद्दा मिला और यह ही हमारे लिए मंगल की घड़ी बन गयी !

पर अब यह नहीं पता की यह लेख हमारे लिए मंगल होगा या अमंगल और इसी चिंता में हम यहाँ दुबलाए जा रहे है !इसलिए आपलोगों से विनती है कि अपनी राय फटाफट लिख मारिये जैसी भी हो ....
देख क्या रहे हो ? सोच क्या रहे हो ?
जल्दी बताओ जी ......

Wednesday, April 14, 2010

बधाई हो .....

पन्द्रह आलू नान, तीस प्लेट शाही पनीर , अठ्ठारह गुलाब जामुन , दो प्लेट बूंदी रायता और तीन कोन आइसक्रीम ! फिर मुट्ठी भर सौंफ का मज़ा लेकर कुछ भी कहो बंधुओ मज़ा अगया !

कल रात खूब चांप कर मुफत का खाना खाए है हम ! अब तो आप भी समझ ही गए होंगे कि मैं केवल नाम का ही नहीं काम का भी ब्राह्मण है !
आप लोग सोच रहे होंगे कि किस गरीब का "बठ्ठा" बैठा होगा जिसने मुझ जैसे दरिद्र ब्राह्मण पर अपनी दयादृष्टि दिखलाई !

तो जनाब .....परसों कि बात है रात में हम सत्तू फांक कर सो ही रहे थे !

( हम जब अपने घर में खाना खाते है तो केवल सत्तू ही फांकते है क्योकि और कुछ होता नहीं है ब्राह्मण के घर में सिवाय सत्तू के ! )

तभी अचानक थाली के बजने कि आवाज सुनाई दी हम तुरंत भांप गए कि पड़ोस में राधा भाभी ने खुश खबरी दे दी !

"अब तो कल का भोजन पक्का समझो ...."

इसी उत्सुकता में हमने दरवाजा खोला और खुद भी लगे चिल्लाने अजी बधाई हो ........! लल्ला के जन्म पर बधाई हो ! लल्ली के जन्म पर बधाई हो ! लल्ला लल्ली के जन्म पर आप सबको बधाई हो ! थाली बजाओ बधावे गाओ ......

एक अरब से ज्यादा जनसँख्या वाले देश को बाल बच्चो के अधिक उत्पादन कि जरूरत है !

अजी... आप तो बिना मतलब के गरम हो रहे है ....यूँ ही आजकल पारा पैंतालीस के आस पास चल रहा है ! क्या हुआ जो हमने उत्पादन शब्द का प्रयोग कर दिया ? क्या उत्पादन सिर्फ गेहूँ , मक्का , चावल , मोठ, मटर, अरहर का ही होता है ?

हमारे देश में भोले भाले स्त्री पुरुष मिलजुलकर प्रतिदिन माफ़ करना प्रतिरात संतानोत्पादन कर रहे है ! क्या इसे उत्पादन नहीं कहा जा सकता ?

आप हमसे सहमत हो या ना हो पर हमारे देश कि विडंबना यह ही है कि लोकतंत्र ने मानव को हथियार बना दिया है एक टूल बना दिया है एक उपकरण बना दिया है !

आदमी हथियार है पैसा बनाने का , आदमी उपकरण है पैसा कमाने का ! अब तो यह कहा जा रहा है कि बढ़ी हुई जनसँख्या भी वरदान है देश के लिए और मज़े कि बात यह है कि यही लोग कुछ बरस पहले नसबंदी जैसा राग भी बजाते थे !

अब देखिये चीन में एक परिवार सिर्फ एक ही बच्चा पैदा कर सकता है ! और जापान में सरकार अपने नागरिको से कह रही है कि बच्चे ज्यादा पैदा करो ! और अपने यहाँ धडाधड जनसँख्या बढ़ रही है !

भारत कि जनसँख्या वरदान है इसलिए भी बताया जा रहा है क्योकि यहाँ कि युवा शक्ति दुनिया में सबसे ज्यादा है ! पर

भैया ......जब यह युवा बूढ़े होंगे तब क्या होगा ? पूत के पांव तो पालने में ही दिखते है ! आजकल हमारा समाज बूढ़े लोगो कि कितनी इज्जत करता है यह तो जग जाहिर है !

लोग अपने बूढे मात पिता को को उनके हाल पर छोड़ देते है ! फिर अपनी विदेशी सरकार माफ़ करना NRI सरकार भी पेंशन बंद करने में जुटी है !

इसका मतलब जब तक तू जवान तब तक तू नवाब और बूढा होते ही मर जाकर कहीं भी !

इतनी भारी जनसँख्या के पक्ष में बोलने वालो को अपना आज तो सुरक्षित और खुशहाल लग रहा है ! लेकिन कल कि तरफ वो देख ही नहीं रहे ! अब सरकार कि सरकार जाने हम तो बस इतना ही कहेंगे कि भाई ....जो भी करना है सोच समझ कर करो कहीं ऐसा ना हो कि पानी का घड़ा एक हो और पीने वाले सौ .....प्यासे ही मर जाओगे !

और मेरे पास तो बिल्कुल भी मत आना मैं खुद लोगो के बुलावे पर मुफत में पेट भर कर खाना खाता हूँ और दबा कर पानी भी पीता हूँ !

Saturday, April 10, 2010

काकी जी कहिन

काकी जी कहिन

मेरा नाम विनय पाण्डेय , नाम तो सुना ही होगा............ अब अपने बारे में क्या कहूँ ?
यह तो आपके माथे से टपकता पसीना , कुर्सी पर बैठे आपका यूँ पैर हिलाना, चेहरे पर छोटी सी मुस्कान, आखों में थोडा सा गुस्सा और कुछ लोगो का अपने बालों को नोचना ही बता रहा है कि आप लोग मुझसे और मेरे व्यंग्य से अच्छी तरह से "पक" चुके है ! इसमें कोई दो राय नहीं कि अब आपलोग खुद को "चना" मान रहे होंगे ! जो कि एक दम से "पक" चुके होंगे !
बहरहाल , आज मैं आप लोगों को पकाने के नहीं बल्कि किसी से मिलाने के उद्देश्य से आया हूँ !
काकी .....मेरी काकी ......मेरी जानकी काकी ....नाम तो मुझे भी नहीं पाता बस कभी जानकी माँ, कभी जानकी काकी अब जानकी काकी कौन है ?
यही सवाल हैं ना आपका तो जनाब "योगी जी" मेरे काका तो उनकी धर्मपत्नी मेरी "जानकी काकी" हुई ! तो साहब........
आज उनके द्वारा सुनाई कहानियों में से एक कहानी को आपके साथ बांटना चाहता हूँ ! तो झेलिये मेरा मतलब है सुनिए ....जानकी काकी कि कहानियों में से एक कहानी :-

बखत ........
बख्त बख्त कि बात है प्यारे ....बखत कि बात बखत पर करनी चाहिए ...क्योकि बखत कि बात ! बखत के साथ ! बखत से राजा और बखत से ही रंक ! सही बखत हो तो आदमी कि गड्डी आसमान में हो और बखत ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे बौने आदमी को भी कुत्ता काट ले ....! लेकिन आदमी एक ऐसा जंतु है कि बखत आने पर रावण बन जाता है और बखत जाते ही रोने लग जाता है !
थोथी माला , थोथा ज्ञान बखत बड़ा बलवान नहीं मनुष्य बलवान !
काकी जी कहती है :- वक्त कि हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पर राज !

टेम...टेम कि बात "माफ़ करना" टाइम टाइम कि बात है !

एक राजा था और उसकी थी एक रानी ! राजा रानी के कोई कमी कहाँ !
"अजी आजकल के राजा रानी ही जनता के पैसो पर मज़े करते है"
तो वह तो असल के राजा रानी थे !
पर हुज़ूर .... आदमी के पास कितनी ही संपत्ति हो , हो चाहे कितना भी ज्ञान !
पर दुखी रहते है हर वो मानस जिनके नहीं संतान !
संतान चाहे सुबह उठते और रात सोते लगाय मात -पिता को जूते चार पर मात -पिता का कभी ना कम होता उनके लिए दुलार !

बेऔलाद बेचारा मन ही मन दुःख पाता है ! यही हाल था राजा और रानी का ! चाहने को संतान राजा ने क्या क्या ना किया पूजन किया , मंदिर बनवाये ,मज़ार पूजी ,बलि चढ़ाई और किया अनुष्ठान ....
किन्तु कुछ नहीं मिला ....वरदान !
फिर एक दिन .....एक पंडित आया और दिया राजा को दुर्लभ ज्ञान :- चाहिए अगर तुमको संतान तो बनवाओ चित्र चार ! लगवाओ उसको महल पर !

चित्र किसके ? राजा दशरथ , माता कौशल्या ,बालक राम और रावण का !
पहले तीन चित्र तो हर कोई बना दे पर रावण का चित्र बनाने को नहीं हुआ कोई तैयार ! राज रानी बड़े दुखी ........!

आखिर एक चित्रकार ने कहा मैं बनाऊंगा चारो चित्र ! पर तब जब होगा मेरा मन !
राजा-रानी राजी !
चित्रकार ने तीन चित्र तो बना दिए पर नहीं मिला उसे रावण जैसा कोई किरदार !
एक दिन हो बेजार राजा ने हुक्म सुनाया :- नहीं बनाएगा अगर तू चित्र तो काट दूंगा तेरे बेटे का गला !
हम निसंतान मरेंगे पर नहीं रहने देंगे तेरी भी कोई संतान !

आखिर चित्रकार ने खोजा एक दुष्ट ! वो था बड़ा क्रूर , जालिम , हत्यारा ! चित्रकार ने दिया लालच और ले आया अपने घर !
उसे बिठा कर बनाने लगा रावण का चित्र !
जैसे जैसे चित्र हुआ तैयार वो हत्यारा रोने लगा जार जार......!
चित्रकार हैरान पूछा क्यों रो रहे हो भाई ?
क्या इसलिए कि मैंने तुमको रावण मान कर चित्र बनाया ?
वह हत्यारा बोला :- नहीं ....नहीं महोदय चित्रकार !

मैं तो हूँ ही क्रूर ! पर जानते हो आज से सत्रह साल पहले जब मैं बच्चा था तब तुमने ही मुझे बिठाकर राम का चित्र बनाया था !
तब मैं "राम" था और आज "रावण" हूँ !

यही बखत कि बात है भैया !
काकी कि कहानी ख़तम और पैसा हज़म !
पर साहब , आदमी वो जो कहानी से कुछ सीख ले ! अब आपकी आप जानो ! हमने जो बात कहनी थी कह दी ! "राम" में "रावण" ढूँढना और "रावण" में "राम" ढूँढना आपका काम है !

अपुन तो चला .....आज काकी खीर पूड़ी बनायीं है और मुझे बुलाई है !
जानकी काकी.............. तैयार है खीर पूड़ी ,
काका से बचा कर रखना मैं अभी आया........

ओके जी ....बाय है जी ..........

Tuesday, April 6, 2010

मैं अक्ल का कोल्हू हूँ ,घोंचू हूँ , उल्लू हूँ !

मैं अक्ल का कोल्हू हूँ ,घोंचू हूँ , उल्लू हूँ !
मेरे एक मित्र है श्रीमान खोपडकर ........क्या कहा ?
यह नाम कुछ समझ नहीं आया !
कमाल करते है आप लोग..........
क्या कहा ? कुछ अजीब सा लग रहा है !
अरे छोडिये साहब ... जहां आप लोग "नकुशा" जैसा नाम पचा सकते है तो इस नाम में क्या खराबी है ? अभी अगर मैं यहाँ तेंदुलकर , गावस्कर , पाटेकर , पालेकर इत्यादि कुछ लिख मारता तो आप लोग ही कहते कि चल झूठा .......कहाँ यह लोग और कहाँ तू ......... कलम घसीट ....

पर साहब अपना मानना है कि जिसके नाम के आगे "कर" लगा हो उससे फ़ौरन दोस्ती कर लेनी चाहिए क्योकि इतिहास गवाह है जिसके नाम में 'कर' जुड़ा है उसने इस जीवन में कुछ कर के ही दिखाया है !
और अपने साथ अपने से जुड़े लोगो का भी भला किया है !

जरा ध्यान देंगे तो हर नाम कुछ कहता है बहरहाल , नामो का विश्लेषण कभी और करेंगे !

तो जनाब मिस्टर खोपडकर मुझे हर बात के लिए , हर काम के लिए और हमेशा बस एक ही संज्ञा देते है और कहते है :-

" यार विनय तुम बड़े ही उल्लू चीज़ हो , एक दम घोंचू टाइप के लगते हो "

अब भला बताइए हम कहाँ से आपको उल्लू चीज़ लगते है ? कैसे हम घोंचू टाइप के हुए ?

एक दिन हमने उनसे पूछ ही लिया कि आप हमको उल्लू चीज़ और घोंचू टाइप कि संज्ञा क्यों देते हो ?

तो बोले :- यार....विनय, तुम जो ऐसी वैसी , उल जुलूल और मूर्खतापूर्ण क्रियाकलाप अथवा हरकते करते हो ऐसी हरकत करने वाले को हम घोंचू और उल्लू चीज़ ही कहते है !

तब हमको ख्याल आया कि वर्तमान राजनीति में भी तो मेरे जैसे लोगो कि कमी नहीं है तो इसका मतलब सारे नेता और नेती भी उल्लू चीज़ और घोंचू हुए !
खैर ......फिर से मन में प्रश्न उठा कि आखिर इस घोंचू शब्द कि उत्पत्ति कैसे हुई ?

तो हमने फिर से मिस्टर खोपडकर को पूछा ? तो उनका जवाब यह था :- कि यार विनय, तुम खुद इतने बड़े घोंचू हो कि इसका जवाब तुम स्वयं ज्यादा बेहतर दे सकते हो तो तुम मुझसे क्यों पूछ रहे हो ?

हाँ ! सही बात है घोंचू तो मै ही हूँ ! जब मुझे आजतक
' कमीने ' शब्द का अर्थ नहीं पता चला तो घोंचू का अर्थ कैसे पता चलेगा ?

You are a GHONCHU..

G-reat
H-ot
O-ne in million
N-aughty
C-ute
H-umble
U-nique

ज्यादा खुश मत हो,है तो तू घोंचू ही …

याद आया ऐसा एक सन्देश हमको हमारे दोस्त ने किया था ! तब हम बहुत हँसे थे ! बहरहाल, घोंचू शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है ? यह तो नहीं पता पर मुहं में यह शब्द आया तो लिख मारा !

घोंचू नामक संज्ञा का हक़दार हर वो इंसान है जो मूर्खता पूर्ण अपना मतदान करता है ! किसी प्रलोभन किसी जाति किसी सम्प्रदाय इत्यादि को पैमाना बनाकर !

घोंचू वो भी है जो अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए लोगो को गुमराह कर रहा है जैसे नेता व नेती और बाबा व बाबी !

घोंचू हर वो लेखक भी है जो मौलिकता , नैतिकता और ज्ञान के नाम पर सेक्स का व्यापार कर रहा है ! अथवा कर रही है !
घोंचू हर वो पाठक भी है जो उल जुलूल व सेक्स जैसे लेखो कि तारीफ़ कर रहा है और बचाओ पक्ष भी तैयार कर रहा है !
घोंचू महंगाई के नीचे दबा हुआ वो इंसान है जिसने महंगाई भी खुद कराई है सिर्फ अपनी घोंचूपने कि वजह से !

घोंचू वो भी है जो इस मतलब परस्त दुनिया में गैरमतलबी बनकर निस्वार्थ सेवा कर रहा है !

घोंचू हर वो इंसान है जो हँसना भूल गया है !

घोंचू वो भी है जो दुखी आत्मा को हंसा रहा है !

सबसे बड़ा घोंचू तो ऊपर वाला है जिसने मनुष्य जैसी मूरत बनाकर धरती पर भेजा और कहा जाओ स्वर्ग का आनंद भोगो और हमने उस धरती पर लकीरे खींच कर नरक बना दिया ! विनाश और विकास में अंतर ही खो दिया !

बहरहाल , घोंचू शब्द काफी जटिल है यह सही है या गलत यह समझने वाले और मानने वाले पर निर्भर करता है ! घोंचू का अर्थ मुझे तो पता चल गया कि क्यों मिस्टर खोपडकर मुझे हर बात पर घोंचू कहते है ? कुछ लोग मुझे संत कहते है, कुछ लोग मसखरा, कुछ के लिए विदूषक हूँ, कुछ के लिए हास्य महारथी, कुछ लोग आलोचक मानते है पर सही और सटीक मेरे चरित्र का चित्रण मिस्टर खोपडकर ने ही किया है

कि मैं घोंचू हूँ !

क्योकि घोंचू अनर्गल बाते नहीं लिखता, घोंचू व्यंग्य कटाक्ष के माध्यम से सेक्स नहीं बेचता , घोंचू आलोचना भी करता है और घोंचू तारीफ़ भी करता है ! इसलिए मै अक्ल का कोल्हू हूँ , घोंचू हूँ ,उल्लू हूँ ......!

और आप ?