Tuesday, June 15, 2010

मनमौजी के आंसू !!!
गली गली मैं तुझे ढूंढ रहा !!! नाम पता तेरा पूछ रहा !!! किस नम्बर पर करूँ टेलीफून !!! दिल में तलाश तेरी सिर पर जूनून !!! अफला....अफला.......अफला तून अफलातून............ मैं हूँ अफलातून !!!
पिछले महीने हमे वो एक दावत में मिले थे !!!
उनकी काया कि विशाल गोलाई देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि देश में खाने पीने कि चीजों कि महंगाई में इजाफा क्यों होता जा रहा है !!!
उन्हें हम बरसो से जानते है !!!
वे कहते है कि फकीर कि गाली , औरत के थप्पड़ और विदूषक के मजाक का कभी बुरा नहीं मानना चाहिए और परायी दावत में तो खूब दबा कर खाना चाहिए !!!
लेकिन अब उन्हें देख कर हम हैरत में पड़ गए !!!
पहले तो हम उनको पहचान ही नहीं पाए !!!
आप एक विशाल चट्टान को एक मरियल से टीले के रूप में देख कर कैसे पहचान सकते है ?
अगर उन्होंने हमारा हाथ न थामा होता, तो हम उनके पास से ही गुज़र जाते !!!
आश्चर्य से हमारा मुहँ खुला का खुला रह गया !!!
माफ़ करना हम आपको उनका नाम तो बताना ही भूल गये जनाब मनमौजी साहब !!!
आज हम उनको ही खदेड़ रहे है !!!
ओह हो !!!
माफ़ करना कृपया आप हमारे इस स्लिप ऑफ़ फिंगर को नज़रंदाज़ करे !!!

हमारे कहना का आशय यह था की आज हम उनके ही दर्द से आपको रूबरू करवा रहे है !!!
वे फीकी मुस्कराहट के संग बोले :- अफलातून !!! सब इस चटोरी जुबान कि वजह से हुआ है !!!
उस दावत में जिसमे हम और तुम मिले थे वह हमारी आखरी दावत थी !!!
दरअसल उस पार्टी में खाना इतना लजीज बना था कि हम अपने पर काबू नहीं रख पाए !!!
खाते रहे !!! खाते रहे और इतना खाया कि घर पहुँचते ही पेट ने विद्रोह कर दिया !!!
परेशान घरवाले हमें एक L P Truck में डालकर दवाखाने ले गये !!!
हमे ठीक से याद नहीं पर शायद उस दिन मिनी ट्रक हड़ताल पर थे !!! और कोई फायदा भी नहीं होता क्योकि हम उसमे आते भी नहीं !!!
उसी वक़्त हमे देख !!!
डॉक्टर ने ढोल बजाकर यह घोषणा कर दी कि अगर आज के बाद आलू ,चावल , अचार , पापड़ , मावा , मिष्ठान , पूड़ी , परांठे , मिर्च के कोफ्ते , समोसा , कचौड़ी , कलाकंद जैसा कुछ खाया तो हमारी आत्मा काया का पिंजड़ा छोड़ कर तुरंत गायब हो जाएगी !!!
फिर क्या था ? घरवाली ने सब बंद कर दिया !!!
बस अब थोडा सा घास फूस खाने को मिलता है !!!
चार महीने में ही सूख कर काँटा हो गए है !!!
हमने कहा :- भाभी जी ने जो कुछ भी किया वह आपकी सेहत के लिए किया अथवा आपकी भलाई के लिए ही किया है !!!
यह सुनते ही उनकी आँखों में आंसू छल छला आये !!!

बोले :- यार अफलातून !!!
वह तो ठीक है , पर ऐसा जीना भी क्या जीना !!!
एक जमाने में, मैं मनमौजी शहर का नामी चटोरा था !!! यूँ ही मेरा नाम मनमौजी नहीं पड़ा !!!
मैं आज भी बता सकता हूँ कि शहर कि किस गली में

गरमागरम जलेबियाँ किस वक़्त मिलती है !!!
टमाटर के कोफ्ते कहाँ बनते है ?
कौन सा हलवाई बाल्टी भर मिर्च के पकोड़े बनाता है जो दो घंटे में साफ़ हो जाते है !!!
किस चौराहे पर पपड़ी और आलू का साग मिलता है , जहां शहर वाले भुखमरो कि तरह टूट पड़ते है !!!

नारियल की !!! काजू की !!! खोये की बर्फी कहाँ बनती है ? और रबड़ी के लच्छो का तो कहना ही क्या ?
कौन सा हलवाई है जो मावे को मंदी आंच पर भूनकर ऐसी सुनहरी बर्फी बनाता है जिसे खाकर स्वर्गीय आनंद प्राप्त होता है !!!
मुझे यह भी पता है की किस गली में कितने नम्बर की दूकान पर खस्ता गोलगप्पे चाट मिलते है !!!
और किस मंदिर के सामने भेल पूड़ी और पावभाजी का ठेला लगता है !!!
पराठे वाली गली में कब ? कितने बजे ? आलू का पराठा बनता है !!! कब गोभी का पराठा बनता है !!! कब मेथी का परांठा बनता है !!! और कितने बजे आलू नान , बटर नान बनता है ?
लेकिन हाय !!! अब सब कुछ हवा हो गया !!! घरवाली दावतों में जाने नहीं देती !!! फ्रिज पर ताला लगाय रखती है !!! सब छूट गया !!! लेकिन इस पापी जुबान का क्या करूँ ? इतना कह कर वो रो पड़े !!!
हम समझ नहीं पा रहे थे की इस शहर में हम मनमौजी के आंसू को कैसे रोके ?
दरअसल उनकी बात सुनकर हमारी भी जुबान लपलपाने लगी थी !!!
विशेष अनुरोध :- यदि आप लोग अपने घर में कभी कोई उत्सव !!! शादी विवाह !!! पार्टी इत्यादि का गठन करे तो दो न्योते जरूर भेजे मनमौजी और अफलातून को !!! एक बार सेवा का मौका अवश्य दे !!!
हम है रही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते.....धन्यवाद !!!