Tuesday, February 9, 2010

वाह भाई वाह........वाह भाई वाह

कल की बात है........चाँद कुछ डरा सहमा सा दिखाई दे रहा था! हमने पुछा "मामा" मेरे आज कुछ परेशान हो ! चाँद ने कहा की परेशानी की तो बात है न ......जब से यह खबर पढ़ी है तब से कुछ समझ नहीं आ रहा है की क्या करूँ ? और क्या नहीं करूँ ? हमने पुछा क्या खबर तो हमसे कुछ कहने के बजाय अपनी कहानी बताने लगे बोले - यह खबर पढते ही मैंने अपनी bike निकाली और तुरंत भगवान के पास पंहुचा मगर हाय रे मेरी किस्मत उस दिन भगवान भी अपने office में नहीं थे! फिर phone किया तो answering machine से खबर मिली की भगवान भी weekend पर किसी hill station पर गए हुए है ! अब मेरे पास कोई और जरिया नहीं था सिवाय इंतज़ार के फिर जैसे ही सोमवार को भगवान का office खुला मै फिर पंहुचा office में उस समय भगवान अपने किसी भक्त से live chat कर रहे थे ! मुझे देख बोलो - "came moon baby ....came what can i do for you ..........but before that tell me what would you like to drink ?" मैंने कहा - a can of fizzy drink please ! भगवान बोले-o k. after the drink भगवान बोले now you tell me your story तब मैंने भगवान को अपनी problems कही की भगवान तुमने यह धरती बनायीं, सूरज बनाया , तारों संग मुझे बनाया यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड तुमने बनाया इस ब्रह्माण्ड में सारे जीव जंतु , प्राणी, पंचतत्व के निर्माण तुम्हारे ही हाथो हुआ है ! मगर आज ही मैंने खबर पढ़ी है news paper में कि तुम्हारे पुत्र इंसान अब मुझपर भी अपने घर बनाने आ रहा है ! प्रभु .....मुझे बचा लीजिये यह इंसान मुझे भी बर्बाद कर देंगे जैसे धरती को बर्बाद किया है ! भगवान मेरी व्यथा सुन हँसने लगे और मुस्कुरा के बोले - हे सुधाकर ! my sweet little idiot colleague
why are you upset ? come on just chill and cheer up मै हूँ ना !!!! remember that "Rome was not built in a day" इंसान चाहे कुछ भी कर ले लेकिन सच यह ही है कि वो कभी भी तुमपर अपना घर नहीं बना सकता आने वाले हज़ार वर्षो तक तो बिल्कुल भी नहीं क्योकि तुम्हारा वातावरण इंसानों के लिए अनुकूल नहीं है ! अगर मै तुमको अमेरिका का उदहारण दूँ कि तीन दशक पहले..... मैंने भगवान कि बात काटते हुए कहा - हे भगवान ! मुझे और किसी country से डर नहीं है .. सिवाय हिन्दुस्तान के ....मैंने सुना है कि वो लोग मुझपर आने का plan बना रहे है और as you know that everything is possible for Indians हे प्रभु .........मुझे बचा लीजिये इन हिन्दुस्तानियों से जो लोग मुझे मामा .....मामा .....कहकर पूजा करते है आज वो ही इस मामा का हाल भी ठीक वैसा ही करेंगे जैसा धरती को माँ .....माँ .....कहकर कर दिया है ! पहले मेरी बहन को बर्बाद किया अब बहन के भाई चाँद को बर्बाद करंगे ! और अगर गलती से हिन्दुस्तानी राजनेता , और पोलिस सेवा भी आ गए तो प्रभु आप भी उनका कुछ नहीं कर सकेंगे ! इसलिए उनको यहाँ आने से रोकिये अन्यथा मैं तो बर्बाद हो ही जाऊंगा पर मुझे अपने सिर कि जो शोभा आपने बनाया है वह आने वाले समय में शोभा नहीं रहेगी ! यह सुन भगवान ने कुछ सोचते हुए कहा - हे चंद्रू .... my last Gyaan "God helps those who helps themselves" and I am very sorry I can't do it because I am also afraid them. तभी भगवान ने अपनी घड़ी देखि और बोले - O.K Mr. sudhakar today I am getting late because I am going on a Brhmmand yaatra with my family forever. its your problem face it...best of luck for Indians people.......
इतना सुन मैं विनय पाण्डेय बरबस ही कह पड़ा कि "वाह भाई वाह.....वाह भाई वाह "
जय हिंद !!!!!!!
विनय पाण्डेय

Thursday, February 4, 2010

धीरे-धीरे बोल कोई सुन न ले.........

सुना है !!! किसी से कहना मत..... हिन्दुस्तान में केवल 1,411 टाईगर ही रह गए........ताज्ज़ुब है ! अब टाईगर भी बचाना होगा पहले तो सिर्फ वृक्ष , पानी , धरती ,कागज़, बिजली ही बचाना होता था! अब टाईगर भी बचाना होगा ! बरसो से सिर्फ देख ही रहा हूँ ! कभी यह बचाओ, कभी वो बचाओ!!! एक नन्ही सी जान और क्या क्या बचाए और क्या क्या गवाए ....... वो अलग बात है कि जिस टाईगर को बचाने कि कोशिश कि जा रही है ! उस ही टाईगर के जबड़े में फसें हुए इंसान को बचाने कोई नहीं आता! खैर रहने दीजिये जनाब हम क्यों लिखे इंसानों के इस दरियादिली के विषय में किसी को बुरी लग जाये तो टाईगर बाद में इंसान पहले खा जायेगा ! चलो टाईगर के विषय में लिखते है कम से कम वो पढ़ तो नहीं सकेगा और उसको बात बुरी भी नहीं लगेगी ! और मेरा लिखना सार्थक हो जायेगा .........सोचो अगर टाईगर इंसानों कि बस्ती में आ जाये ! जैसा कि कई बार आ भी चुके है ! तो उस वक़्त टाईगर के मन में क्या चलता होगा??? मै बताता हूँ न चिंता क्यों करते हो ? उस वक़्त उस टाईगर के मन में इंसानों से भरी हुई बस्ती , शहर को देखकर, उसके मन में बाद में सबसे पहले तो उसके मुहँ में पानी आ जाता है ....और फिर रही सही कसर उसके मन में कुछ भाव उत्पन्न होते है और आप मानोगे नहीं इंसानों को देखने के बाद उसका भी मन अंग्रेजी में बोल उठता है ! wow !!! there are lot's of yummy and delicious people !!!!! अब बताइए जनाब उसको तो हम इंसान तंदूरी मुर्गे दिखते है! वो भी बिना नमक और मिर्च के खा जायेगा! और तो और हमारा बलिदान तक भी कोई याद नहीं रखेगा खैर , जो काम "वन संरक्षण विभाग" का है उस काम कि भी अपील हमसे कि जा रही है ! एक गरीब आदमी क्या करने जंगल जायेगा और क्या उसकी अवकात जो टाईगर को मार गिराएगा ! ये सब अमीरों के चोंचले है! शिकार करना इत्यादि इधर आम आदमी महंगाई, बेरोज़गारी, और रोज़ी रोटी का खुद शिकार है ! इससे बड़ा न कोई टाईगर है न कोई भूत और अगर अब भी ये लगता है कि मेरा लिखना व्यर्थ है तो ठीक है भाईसाहब !!! माफ़ कीजियेगा पर .....धीरे धीरे बोल कोई सुन न ले..........
जय हिंद !
विनय पाण्डेय

शेर दहाड़े या दिन दहाड़े

हम तो समझते थे कि केवल शेर दहाड़ते है अब तो दिन भी दहाड़ने लगे ! मजाक नहीं कर रह हूँ वास्तव में अब दिन भी दहाड़ने लगे है ! अब देखिये न साहब..... दिन दहाड़े चोरी हो रही है , दिन दहाड़े माँ - बहनों कि गले से चेन लूटी जा रही है ! दिन दहाड़े हत्याएं हो रही है! दिन दहाड़े सड़कों पर हिंसा का तांडव हो रहा है ! या मेरे मौला......हाय मेरे अल्लाह !! ये सब चल रहा है दिन दहाड़े ! जैसे शेर के दहाड़ने से आदमी का कलेजा हिलने लगता है वैसे ही अब दिन दहाड़ता है तो हमारी ऊपर कि सांस ऊपर नीचे कि सांस नीचे रह जाती है ! हम घबरा जाते है और फिर घबराहट में उल जुलूल लिखने लग जाते है ! पुराने ज़माने में और नए ज़माने में ये ही फर्क था ! पहले जब अँधेरा होता था, आधी रात के बाद कोई चोर निकलता था, सूनी - सूनी सडको पर.....लेकिन आजकल तो जो काम रात के लिए बने थे वो सब दिन दहाड़े होते है वो भी सूरज चाचू कि और खाखी वर्दी वाले मामू कि निगरानी में........... इस दिन दहाड़े के पीछे कौन है ? जरा गौर फरमाएं , मेरे सरकार ........देखिये भ्रष्टाचार , अपराध तो इस धरती पर हमेशा से रहे है ! लोग पाप भी करते रहे है लेकिन पहले यह सभी काम परदे के पीछे होते थे आदमी चोर कहलाना पसंद नहीं करता था जिसके माथे पर चोरी का तिलक लग जाता था उसकी सात पीढियां केवल शर्म से मर जाती थी ! लेकिन साहब आज तो इज्जत ही उसकी है जिसके पास माल है अब ये माल आया कैसे? ये सोचने का किसके पास वक़्त है ! हर कोई मेरी तरह तो खाली नहीं बैठा सामाजिक नैतिकता के ठेकेदार भी चुप रहते है ! समाज से अन्याय , आतंक और विषमता के खिलाफ लड़ने का दम भरने वाले भी अपने जलसों के लिए चोरबाजारियों के पास चंदा लेने जाते है ! दारु के ठेकेदार को स्वगात्ध्यक्ष बनाते है! पुराने अपराधी से भोजन प्रायोजित करवाते है और ये सारा काम दिन दहाड़े होता है! पहले तो हमे भी रात के सन्नाटे से डर लगता था पर अब तो दिन दहाड़े डर लग रहा है ! न जाने कब हम दिन में सैर सपाटे के लिए घर से निकले और पीछे से हमारा सारा सामान साफ़.........चोरी, हत्या आदि तो खैर छोड़िए...इसे अब मेरा खुदा ही रोक सकता है धरती पर शायद ही किसी में दम हो.......अब तो प्रेम भी दिन दहाड़े होने लगा है अभी कल कि ही बात है हम एक पार्क में जाकर बैठे ही थे और थोडा सुस्ताने कि कोशिश कर ही रहे थे कि पेड़ों के पीछे से विचित्र आवाजे आने लगी जब नज़रें घुमा कर देखे तो बहुत ही अजीब नज़ारा था कई प्रेमी युगल वहां पेड़ कि आड़ में अपनी ही दुनिया में लीन थे! यह सब देख मैंने फिर अपने मौला को याद किया और फिर से पुछा ? हे मेरे मौला तू ही बता "शेर दहाड़े या दिन दहाड़े "
जय हिंद
विनय पाण्डेय

Wednesday, February 3, 2010

आई वांट टू बिकम अ बाबा .....

बाबा सोवे ' या ' घर में, टांग पसारे ' वा ' घर में ! यह एक पुरानी पहेली है ! जो पुराने लोग पुराने बच्चो से पूछते थे ! बच्चे भी चक्कर में पड़ जाते थे की यह कैसे हो सकता है! क्या किसी आदमी की टांग इतनी लम्बी हो सकती है जो इस घर से उस घर तक फैली पसरी हो ! पर भाईसाहब आजकल के बाबा ऐसे हो गए है! इस युग को बाबाओ का युग कहा जाता है ऐसा नहीं है की बाबा इस देश के लिए कोई नयी बात है पुरातन काल में भी बाबा नाम की ज्योति जलती रही है कुछ सच्चे कुछ फर्जी पर बाबा की आंधी इस देश में बदस्तूर बहती रही है ! और बह रही है ......अब प्रशन यह उठता है की हमारे समाज में अचानक बाबा का उत्पादन कैसे बढ़ा? इसके लिए एक नज़र अपने समाज पर डालनी होगी ! जैसे जैसे आदमी के पास ज्यादा माल आता है वैसे वैसे ही उसका डर बढ़ता जाता है ! एक पुरानी कहावत है " नंग बड़ा परमेश्वर से " अर्थात जिसके पास कुछ भी नहीं उसका तो परमेश्वर भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता! और शायद इसलिए ही फकीर ज्यादा मस्त रहते है ! आजकल के बाबाओ को देखो कई बार तो लगता है की वे बाबा नहीं कोई फैक्ट्री है ! प्रवचन से लेकर दातुन , चन्दन , औषिधयां इत्यादि तक बेचते है ! मजे की बात कि अमिताभ, शाहरुख़ , प्रियंका जैसे ब्रांड एम्बेसेडर बने हुए है वैसे ही बाबा भी ब्रांड एम्बेसेडर बनते जा रहे है ! अभी कल कि ही बात है हमसे हमारे बुजुर्गों ने पुछा "बेटा सिर्फ लिखते ही रहोगे या कुछ निर्णय लिया है अपने भविष्य के बारे में तुमने कहा ' काम्पिटर ' कि पढाई करोगे तो हमने बिलकुल मना नहीं किया! " अब कैसे बताऊ उनको कि पहले तो 'कंप्यूटर' होता है ' काम्पिटर' नहीं! और दूसरा कि हम कंप्यूटर लिटरेट बाबा बनना चाहते है! जब ज्यादा चिलाम्चिल्ली बढ़ गयी तो हमने ताबड़ तोड़ कह दिया कि " आई वांट टू बिकम अ बाबा " इतना सुनते ही जो इक्का दुक्का अंग्रेजी जानते है उन्होंने ट्रांसलेट कर दिया हिंदी में! अब क्या था हमारी खैर .......सभी बुगुर्गों ने एक साथ कोरस में कहा " बेटा अभी तो तुम बाप भी नहीं बने, तुम्हरी शादी भी नहीं हुई पहले बाप बनो फिर बाबा बनोगे भला यह कैसी जिद्द हुई " तब मैंने समझाया मै वो बाबा, नाना नहीं बनना चाहता जो आप लोग है ! मै तो परम पूजनीय बाबा बनना चाहता हूँ ! हमारी बात कोई नहीं समझा सिवाय हमारी छोटी छोटी बहिन " पाली " के उसने हमसे कहा - " भाई ,आजकल इस फील्ड में जबरदस्त स्कोप है ! आप सब भी सुन ले कई बाबा योग के बाबा है , अपने घर का चिराग तो भोग का बाबा बनेगा ! यानी वह आदमी को योग के रास्ते नहीं वरन भोग के रास्ते सीधा बैकुंठ जाने का रास्ता बताएगा !" अब आप मुझे भविष्यवक्ता समझ ले या फिर कुछ और पर आने वाले वक़्त में इसी भारतवर्ष में ' बाबा बनाओ इंस्टिट्यूट ' खुलेंगे और माता पिता ख़ुशी ख़ुशी अपने बच्चो को बाबा बनायेगे और जब जब इस भारत में कोई उनसे पूछेगा कि क्या बनोगे? तो जवाब यह ही आएगा कि "आई वांट टू बिकम अ बाबा "
जय हिंद
विनय पाण्डेय

बाल मजदूरी या बाल मजबूरी

बाल मजदूरी या बाल मजबूरी यह काफी सवेंदनशील प्रशन है ! भारतीय समाज इसको किस रूप में स्वीकार करता है इसमें काफी मतभेद लगता है ! एक तरफ तो भारतीय समाज इसको पाप, घृणित कार्य इत्यादि के उपनाम से पुकारता है ! वही दूसरी तरफ इसको बढ़ावा भी देता है ! कुछ हिंदी फिल्मो की तर्ज़ पर हमारा भारतीय समाज चल रहा है ! कहता कुछ है, करता कुछ है, दिखता कुछ है, दिखाता कुछ है !!! एक तरफ तो बाल मजदूरी को बंद करने की बात करता है और दूसरी तरफ उसी बाल मजदूरी को कुछ रियालिटी शो के माध्यम से दिखाता भी है ! जरा सा गौर करने की बात है अगर ध्यान देंगे तो खुद ब खुद सब कुछ दिख जायेगा भारतीय सविंधान के एक विचित्र क़ानून के तहत १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चो को रोज़गार इत्यादि की मनाही है ! इस उम्र में बच्चो का ध्यान सिर्फ पढाई की तरफ होना चाहिए ताकि भारतवर्ष की उन्नति, विकास आने वाले भविष्य में हो सके! ऐसे तमाम होर्डिंग हम सबने सडको के किनारे पढे है ! कई पान-बीडी की दुकानों पर लिखा हुआ मिल जायेगा की " अट्ठारह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चो का तम्बाकू खरीदना अथवा बेचना दंडनीय अपराध है " किन्तु क्या सही मायने में ऐसा होता है ? नहीं, यह सिर्फ दिखावा है! वास्तविकता तो यह है की अट्ठारह वर्ष से कम उम्र के गरीब ,निर्धन बच्चो का भीख मांगना, रोज़गार करना सिर्फ यह ही पाप है, वही किसी संगीत रियलटी शो में अट्ठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चो का सगीत, हास्य इत्यादि शो में प्रतिस्पधा में जीत कर लाखो कमाना बहुत बड़ा काम है, नेकी है ! गरीब का पेट, पेट नहीं हड्डियों का ढांचा है और अच्छे परिवार के बच्चो के बैंक खातो में लाखो है, गरीब के माता पिता परिवार, परिवार नहीं शिक्षा देने का मंच है और लाखो कमाने वाले बच्चे अपने देश का गौरव है! इसी से पता चलता है की हमारा भारतीय समाज कितना संकुचित है उसका कितना छोटा दायरा है जिसके दो दो चेहरे है एक तरफ तो बाल मजदूरी को पाप कहता है वहीँ दूसरी तरफ उसको किन्ही रियलिटी शो के माध्यम से गौरव का नाम दे देता है ! एक कवि की पंक्ति याद आ गयी......"भूख हर दर्शन के घूँघट को उघाड़ देती है ...और रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपडे उतार देती है !" या तो क़ानून को ठोस बनाओ की अट्ठारह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चो का किसी भी तरह के शो किसी भी तरह की पैसो के खेल में हिस्सा नहीं मिलेगा और किसी भी तरीके की इनामी राशी न उसके परिवार को न उस बच्चे को मिलेगी न किसी सीरियल में वह काम कर सकेगा उसका ध्यान सिर्फ पढाई में ही होना चाहिए जब तक वह उन्नीस वर्ष का नहीं हो जाता! और अगर ऐसा क़ानून बनाने में इस बहुमुखी भारतीय समाज की प्रतिष्ठा पर प्रशनवाचक चिन्ह लगता है तो बे वजह गरीब को शिक्षा की शिक्षा न दी जाये सबको समानता का अधिकार दो ! अन्यथा जैसे राम भरोशे हिन्दुस्तान चल रहा है चलने दो!
और अपनी अपनी रोटी सेकों गरीब बच्चो की लाचारी की भट्टी पर और कहते रहो हिन्दुस्तानी समाज जिंदाबाद !!!!
जय हिंद
विनय पाण्डेय

हिन्दी, हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी !!!

२१ वि सदी में हिंदुस्तान क्या वास्तव में हिंदुस्तान है ! यह एक विचारणीय प्रश्न है ? यदि जवाब हाँ है तो यह मेरे मस्तिष्क का खलल मात्र है! यदि नहीं तो यकीन मानिये की हमारे हिंदुस्तान पर पाश्चात्य सभ्यता की मोहर लग चुकी है मेरी बाते थोड़ी बहुत विरोधाभास हो सकती है , थोड़ी क्या है ही विरोधाभास ! क्योकि मै किसी और भाषा की बात कर रहा हूँ और यह हमारे देश की विडंबना है की यहाँ की मूल भाषा का अस्तित्व खंडित होता जा रहा है और सबको कुछ अलग ही चिंताए सता रही है ! आज अंग्रेजी का वर्चस्व इस तरह बढ़ा हुआ है कि हिन्दी में बात करना या हिन्दी का अनुसरण करना हेय माना जाता है ! वास्तविकता यह है कि आज का आधा युवा वर्ग सिर्फ इस अंग्रेजी भाषा को न जानने के कारण ही अच्छे पद और अच्छे रोज़गार के लिए दर दर ठोकर खा रहा है ! क्योकि आज प्रतियेक निजी महेक्में में साक्षात्कार कि मुख्या भाषा अंगेजी राखी गयी है ! हिन्दी में बोलकर हम अंतररास्ट्रीय प्रतिभा का उपहास करेंगे और महज ये ही कारण है कि हिन्दी बोलनेवाला अपने ही देश में बेरोजगार है और अंग्रेजी बोलने वाला ऊंचे पद पर विद्यमान है ! मै यहाँ किसी भाषा को छोटा या बड़ा नहीं सिद्ध करना चाहता बल्कि सिर्फ याद दिलाना चाहता हूँ कि हम हिन्दुस्तानी है यदि हम ही इस भाषा का साथ नहीं देंगे तो कोई बाहर से नहीं आएगा ! भाषा अपने आप में इतनी महान होती है कि कोई उसका मजाक उड़ा नहीं सकता मै यहाँ सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि अगर अंग्रेजी भाषा को इतनी प्रमुखता मिल रही है हमारी हिन्दी के साथ इतनी बेरुखी क्यों ? क्यों ? क्यों? मुझे आज तक अपनी आवाज उठाने का कोई मंच नहीं मिला और आज मै सहृदय धन्यवाद देना चाहता हूँ blogger का google का जिन्होंने मुझे यह मंच दिया भाईसाहब .........मेरी कुंठा यह नहीं है कि यहाँ हिन्दी को सम्मान नहीं मिलता बल्कि मुख्य कुंठा यह है कि अंग्रेजी जानने वाले भले ही योग्यता नहीं रखते किन्तु आज केवल उन्ही का बोलबाला है बजाय इसके कि हिन्दी जानने वाला कितना ही योग्य और गुणी क्यों न हो ? हिन्दुस्तानी होने के नाते हिन्दी का ज्ञान काफी नहीं है कि अंग्रेजी भी बोलना सीखना होगा क्योकि दो वक़्त कि रोटी तभी संभव है ! अब आप ही बताये कि यह मेरे दिमाग का खलल है या वास्तविकता कि २१ वि सदी में यह हिन्दुस्तान आत्महत्या करने जा रहा है ! जय हिंद !!!!!!! विनय पाण्डेय