Thursday, September 20, 2012

आलाकमान वाया लालाकमान :-




आलाकमान वाया लालाकमान :-

कल सुबह चचा योगी कूदते कूदते हमारे पास पहुंचे ! हमने चचा का उत्साह देखते हुए कहा :- क्यों जी !!!

कुबेर का खज़ाना हाथ लग गया है क्या, जो स्प्रिंग लगे गुड्डे कि तरह फुदक रहे हो ! अब ज्यादा कूदना फांदना बंद करो, वरना कहीं पाँव में मोच आ गयी तो दस दिन तक गाँव कि कहारिनो के गोद में ही रहोगे !!!

चचा योगी हमारा ताना सुन अनसुना करते हुए बोले :- भतीजे यह देखो निमंत्रण पत्र ! राजधानी कि बड़ी हवेली से आया है,अपनी "आलाकमान" और "लालाकमान" रिटेल सेक्टर में  

एफ डी आई (FDI ) का उद्घाटन कर रही है !!! तुम्हारे चचा को भी बुलाया है !!!

चचा कि बात सुन कर हमने कहा :- कौन सा FDI ? क्या बात कर रहे हो ? "पीने को नहीं है पानी और नहाने चली है बहुरानी " !!! हमारे कुछ समझ नहीं आ रहा है जरा खुल कर बताओ ?

चचा मुस्कुरा कर बोले :- देखो भतीजे ! अपनी "आलाकमान वाया लालाकमान" कि तरफ से फरमान आया है कि हमारे देश में FDI अर्थात Foreign Direct Investment होगा इसका मतलब है कि अब हमारे देश में विदेशी कम्पनियों का आगमन होगा जिससे हमारी आर्थिक स्थति मजबूत होगी !!! 

किसानो को लाभ पहुंचेगा !!! 

यह विदेशी कम्पनियाँ दाल - दलिये, धनिया , मिर्च, आलू  प्याज, टमाटर बेचेगी और यह सब किसी मण्डी कि चिलचिलाती गर्मी में नहीं बल्कि एक भव्य भवन के ठन्डे ठन्डे वातानुकूलित कक्ष में !

ज़रा सोचो शहर के बीचो बीच एक भव्य भवन होगा जिसमे रंगीन लट्टू जलेंगे और अपने प्रत्येक राज्यों के "तोता मैना" उस भवन में हाथों में हाथ डाल कर शोपिंग का लुत्फ़ लेंगे !!!

एकांत होते ही चौंच से चौंच लड़ायेंगे ! एक दूजे के नैनों कि भाषा पढेंगे ! समझेंगे ! प्रेमशास्त्र  में निपुण होंगे ! 

हम भी कभी कभी वहाँ जायेंगे जो काम बचपने और जवानी में नहीं कर पाए, अब करेंगे !!!

हमने लाख चाहा कि तुम्हारी चाची के संग कभी किसी ऐसे भव्य भवन में जाए हाथ में हाथ डाले लेकिन कम्बख्त "चौथमल किराना" वाला हमको छोड़ता ही नहीं है वहीँ से तेल , नून , लकड़ी खरीदते खरीदते उमरियाँ बीत गयी !!! 

एकाध बार मौका भी मिला शहर में तो तुम्हारी चाची ने यह कह कर हमको झिड़क दिया कि यह चौंचलेबाज़ी हमको पसंद नहीं है ! कुछ लोग इन रंगीन लट्टुओं का विरोध भी कर रहे है !

अब तुम बताओं भतीजे क्या रंगीन लट्टुओं में खरीदारी करना कौनो चौंचलेबाज़ी है ???

हम क्रोधित मुद्रा में चिल्लाये :-  हाँ !!!  यह चौंचलेबाज़ी नहीं तो और क्या है ? अरे आपके आला अफसरों को और कुछ सूझता है या नहीं ?

बेचारी देश कि जनता डीजल , गैस , कोयला , अगला प्रधानमंत्री कौन ? अगली असुर सेना कौन ?

जैसे सवालों में उलझी हुई है ऐसे में यह नया "आलाकमान वाया लालाकमान" का फरमान कहाँ तक तर्क संगत लगता है ? शहर के तोता मैना के लिए कृत्रिम फव्वारे लगवाइए भला यह कौन बात हुई कि FDI को निमंत्रण दे दिया !!!

याद है ना "ईस्ट इण्डिया कंपनी" वह भी व्यापार करने आई थी उसको भेजने में दो सौ बरस लग गए थे !!! 

हमारे देश में भी कई रिटेल सेक्टर है जब उनसे कुछ नहीं हुआ तो क्या यह FDI आपकी "चर्रम चू खटिया" जैसी चरमरायी हमारी अर्थव्यवस्था में सुधार ला सकेगी ?

इस देश का मुखिया प्रकांड अर्थशास्त्री होते हुए भी अर्थव्यवस्था नहीं संभाल सका तो क्या बिदेशिया बाबू संभाल लेंगे ???

इसलिए प्यारे चचा इन सरकारी निमंत्रणों पर फुदकना छोड़ दो ! आज आपके पास आया है , तो कल मेरे पास भी आ जायेगा !!!

कुछ कम धाक नहीं रखते है हम भी , आपके ही भतीजे है !!!


Friday, July 23, 2010

विशेषणवादी विनय !!!

विशेषणवादी विनय !!!

सर्वप्रथम विशेषण की परिभाषा :- जिस शब्द से किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता अथवा गुण का बोध हो उसको विशेषण कहते है !!!

जनाब ......आप लोग तो जानते है ही की हम खुद को "कलम घसीट" विनय पाण्डेय नाम से जानते है !
और आप को भी यही सलाह देते है की हमको आप कलम घसीट नाम से ही जाने पर कभी सोचा है आपने की आखिर यह कलम घसीट है क्या ?

नहीं सोचा ! तो कोई बात नहीं हम बैठे है न आपको समझा देंगे आप बस इत्मीनान से पढ़ते रहा कीजिये मुझ कलम घसीट को !!!

पहली बात तो हम चाइल्डहुड से ही काफी विशेषणवादी रहे है !

बगैर विशेषण के तो हमें रोटी तक हज़म नहीं होती ! अगर दिन भर में १० -२० विशेषण न लगा दे लोगो के नाम के आगे तो हमको नींद तक नहीं आती ऐसा इसलिए की हमारी दृढ मान्यता है की जिस इंसान के नाम के आगे विशेषण न लगा हो उसका समाज में कोई महत्व नहीं होता !

उदाहरण के लिए हमारे समाज में जिनके पास धन है , उन्हें विशेषण लगाने की खुजली चलने लगती है और सबसे सहज विशेषण है समाजसेवी !!!

एक बार हमने एक सांस्कृतिक संध्या आयोजित की अब आप तो जानते ही है अपने समाज में कोई भी काम बगैर खर्च के सफल नहीं माना जाता ! जिस काम में एक पैसा भी खर्च न हो , उसे हीन काम समझा जाता है !

उस संध्या के लिए हमे एक ऐसे धनिक की तलाश थी , जो खर्चे के लिए पैसे दे सके ! हमने मित्रों से चर्चा की हमारा एक बेवडा मित्र हमे एक दारु के ठेकेदार के पास ले गया !

हमने कहा - क्या यह ठीक होगा की एक नेक काम के लिए इन महाशय से धन लिया जाये ?

मित्र बोला - धन तो आखिर धन है !

बहरहाल , समस्या तो यह थी की धन प्राप्ति के पश्चात संबोधन हेतु इन महाशय के नाम के आगे विशेषण क्या लगाये अब दारु विक्रेता श्रीमान फेफड़ा चंद तो लिख नहीं सकते थे !

तभी हमारे मस्तिष्क में एक विचार आया हालाँकि इस बात की सम्भावना बहुत ही कम होती है की हमारे मस्तिष्क में कोई विचार आये किन्तु उस दिन सौभाग्य से आ गया !

और हमने भी तुरंत बिना देर किये कह दिया जुझारू प्रख्यात विख्यात संघर्षशील कर्मठ व्यक्तित्व फेफड़ा चंद और उसी दिन से दारु विक्रेता फेफड़ा चंद हमारे द्वारा दिए गए विशेषण से जगप्रसिद्द हो गए !

अब इसका यह मतलब कतई न निकाले की हम इसके एवज में उनके यहाँ फ़ोकट में दारु पीते है !

न ....भैया .....न !!!

ऐसा हो ही नहीं सकता क्योकि दारु पीने से लीवर खराब होता है !!!

पर यह तो फ़िल्मी डायलोग है !!!

इसलिए कभी कभार बैठ जाते है पर उसमे भी हम अपनी शर्तो पर ही बैठते है !

पानी का इस्तेमाल निषेध मानते है क्योकि एक जमाने में हम NIIT के विद्यार्थी थे !!! इसलिए नीट में बिलीव करते है !!! बहरहाल ,

विशेषण बड़े काम की चीज़ है !

हमारे एक युवा लेखक मित्र की रचनाओं को कोई गंभीरता से नहीं लेता था !

वे तुरंत केश सज्जाघर गए और अपने काले बालों को सफ़ेद करवा आये !

हमने कहा - यार अभी तो तुम चालीस के ही हो अभी से यह सफेदी !

वे बोले - रचनाओं से नहीं तो कम से कम सफेदी से ही लोग वरिष्ठ लेखक मानना तो शुरू करेंगे !

उस दिन हमने एक विशेषण उनको भी चिपका दिया महाकवि और आज तक वो इसी महाकवि विशेषण के साथ लिख रहे है और बदस्तूर जारी भी है !!!

अभी पिछले दिनों एक भ्रष्ट अफसर के घर छापा पड़ा !!! नाम था सेनानी मूलचंद !!!
जनाब हद तो तब हो गयी जब उनके घर के दीवार पर बच्चो ने उनके नाम के आगे एक विशेषण लगा दिया !

"स्वतंत्रता" सेनानी मूलचंद !

बाद में पता चला की न वो सेनानी था न वो बलिदानी बल्कि आजादी के समय फौजदारी मामले में दो दिन जेल में बंद था !

बहरहाल , जरा कलाकारों का अभिनन्दन पत्र बांच ले , तो विशेषणों की भरमार से आपको गश आ सकता है !

एक नुक्कड़ कवि को सरस्वती पुत्र , ज्ञानमर्मज्ञ , साहित्य का पुरोधा , कवि कुल शिरोमणि , शब्द शिल्पी , ज्ञानदूत , प्रखर व्यक्तित्व न जाने क्या क्या लिख दिया जाता है !

बेचारा सच्चा लेखक तो यह विशेषण सुनकर चाहने लगता है की जमीन फट जाये और वो माँ जानकी की तरह उसमे समा जाये !!!

पिछले दिनों एक संयोजक महोदय मंच पर बैठी एक भद्र महिला के नाम के आगे विशेषण लगाने में इतने मस्त हो गए की उन्हें ज्ञानेश्वरी के साथ साथ हृदयेश्वरी और चुम्मेश्वरी तक कह गए !!!

फिर क्या था ?

उस भद्र महिला ने अपना रौद्र रूप धारण कर लिया और उस संयोजक महोदय के नाम के आगे विशेषण ही नहीं बल्कि वास्तविक विशेषण लगा दिया " जूतम पैजार " !!!

सन्देश :- हे गुणिजनों , ज्ञानधाराओं, अतुल्य , अग्रिणी , अद्वितीय ,अद्भुत , श्रेष्ठ , आदरणीय लेखको आप लोग अपने ज्ञानेश्वरी , चुम्मेश्वरी ब्लॉग लिखते रहिये !!!

ताकि मुझ जैसे दरिद्र ब्राह्मण सतुवा पान पर जीवित कलम घसीट के विशेषण देने की भूख बरकरार रहे ! और कृपया कर मेरे द्वारा दिए गए विशेषणों को व्यंग्य न समझे वह वास्तविक होते है !!!

आफ्टर आल इट्स माय चाइल्डहुड प्रॉब्लम !!!

नमस्कार !!!

आपका अपना

सतुवा पान पर जीवित कलम घसीट विनय पाण्डेय !!!

अब आप लोग विशेषण लगा सकते है मेरे नाम के आगे !!!

Sunday, July 4, 2010

पान खाए सैयां हमारो !!!

पान खाए सैयां हमारो !!!

पान खाए सैयां हमारो !!! सावली सुरतिया होठ लाल लाल !!! हाय हाय मलमल का कुर्ता !!! मलमल के कुर्ते पर छींट लाल लाल !!! पान खाए सैयां हमारो..............

चली आना तू पान दूकान पे !!! साढ़े हुम...
साढ़े हुम.... साढ़े तीन बजे !!! औ रस्ता देखूंगा मैं पान कि दूकान पे !!! साढ़े तीन बजे !!!

हालाँकि , पान हम शौकिया कभी कभार खा लेते है !!! वो तब जब कि हमारे सामने वाला हमको खिला रहा हो !!! वरना अपने पैसे से तो हम जहर भी नहीं खरीद सकते !!! पर पान का सामाजिक , आर्थिक , और राजनैतिक महत्त्व उस दिन पता चला , जब रज्जू पान वाले के इनकम टैक्स का छापा पड़ा !!! शहर के अखबार में उस दिन यह बैनर न्यूज़ थी !!!
खबर पढ़ते ही आधा शहर सुन्न हो गया !!!
छापे का मतलब यह सिद्ध हो जाना कि रज्जू पैसे वाला है !!!
हमारे शहर में कई व्यापारी चाहते है कि कभी उनके यहाँ भी छापा पड़े !!! कम से कम जात बिरादरी वाले यह तो जानेंगे कि उनके पास भी माल है !!!
छापे के बाद जैसे ही हम रज्जू कि दूकान पर पहुंचे उसे हमेशा कि तरह चहकता हुआ पाया ! दरअसल , रज्जू और हम एक साथ स्कूल में पढ़े थे !!! दसवी करने के बाद उसने पान कि दूकान संभाल ली और हमने कलम !!!
शुरू शुरू में हम रज्जू को हेय दृष्टि से देखते थे , लेकिन एक दिन उसने एक दोहा पढ़कर हमारी सारी हेकड़ी उतार दी !!!
उस दिन हमने पान खा कर रज्जू से कहा :- रज्जू यार यह भी कोई काम है ???
उत्तर में रज्जू ने मुस्कुरा कर देखा और कहा :-
गुलामी कि जंजीरों से स्वतंत्रता कि शान अच्छी है ,
हज़ार रूपए कि नौकरी से तो पान कि दूकान अच्छी है !!!
कसम बनारसी पान कि !!! यह सुनते ही हमारे ऊपर मानो सौ घड़े पानी पड़ गया और हमने पान के बारे में सोचना शुरू कर दिया !!!
हमको लगा कि किसी भी शहर कि धड़कन उसके चौराहे है !!! और चौराहे कि शान पान कि दूकान है !!! पान कि दूकान किसी भी चौराहे पर ऐसी सजी होती है जैसे किसी सुंदरी के नाक में मोती !!! पान कि दूकान पर शहर के अधिकतर लोग आते है !!! गपियाते है !!! क्या आप जानते है इन दुकानों का राजनीती में बड़ा ही महत्व है !!!
नेताओ कि कारगुजारियों पर भी यहाँ खूब चर्चा होती है !!! पान कि दूकान का महत्व इसलिए भी है कि हमारे यहाँ कोई भी पवित्र काम हो , पान का हरा पत्ता जरूर चाहिए !!! शादी तो बिना पान के हो ही नहीं सकती !!! दूल्हा घोड़ी पर तब बैठता है जब उसे पान का बीड़ा खिला दिया जाता है !!! और असली रसिक व्यक्ति वह माना जाता है गर्मियों कि रात में मलमल का कुर्ता पहना हुआ हो और उसपर पान के छीटे पड़े हो !!! पान खाए सैयां हमारो , मलमल के कुर्ते पर छीट लाल लाल !!!
रही पान के सामाजिक महत्व कि बात तो जो आदमी प्रतिदिन शाम को घंटे - आध घंटे पान कि दूकान पर खड़ा होता है !!! तो दोस्ती भी हो ही जाती है !!! इसलिए जनाब पान कि दूकान को कम मत आंकिये !!! चलता हूँ आज रज्जू स्पेशल पान खिलाने वाला है !!! फिर मिलेंगे !!!
नमस्कार !!!

Tuesday, June 15, 2010

मनमौजी के आंसू !!!
गली गली मैं तुझे ढूंढ रहा !!! नाम पता तेरा पूछ रहा !!! किस नम्बर पर करूँ टेलीफून !!! दिल में तलाश तेरी सिर पर जूनून !!! अफला....अफला.......अफला तून अफलातून............ मैं हूँ अफलातून !!!
पिछले महीने हमे वो एक दावत में मिले थे !!!
उनकी काया कि विशाल गोलाई देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि देश में खाने पीने कि चीजों कि महंगाई में इजाफा क्यों होता जा रहा है !!!
उन्हें हम बरसो से जानते है !!!
वे कहते है कि फकीर कि गाली , औरत के थप्पड़ और विदूषक के मजाक का कभी बुरा नहीं मानना चाहिए और परायी दावत में तो खूब दबा कर खाना चाहिए !!!
लेकिन अब उन्हें देख कर हम हैरत में पड़ गए !!!
पहले तो हम उनको पहचान ही नहीं पाए !!!
आप एक विशाल चट्टान को एक मरियल से टीले के रूप में देख कर कैसे पहचान सकते है ?
अगर उन्होंने हमारा हाथ न थामा होता, तो हम उनके पास से ही गुज़र जाते !!!
आश्चर्य से हमारा मुहँ खुला का खुला रह गया !!!
माफ़ करना हम आपको उनका नाम तो बताना ही भूल गये जनाब मनमौजी साहब !!!
आज हम उनको ही खदेड़ रहे है !!!
ओह हो !!!
माफ़ करना कृपया आप हमारे इस स्लिप ऑफ़ फिंगर को नज़रंदाज़ करे !!!

हमारे कहना का आशय यह था की आज हम उनके ही दर्द से आपको रूबरू करवा रहे है !!!
वे फीकी मुस्कराहट के संग बोले :- अफलातून !!! सब इस चटोरी जुबान कि वजह से हुआ है !!!
उस दावत में जिसमे हम और तुम मिले थे वह हमारी आखरी दावत थी !!!
दरअसल उस पार्टी में खाना इतना लजीज बना था कि हम अपने पर काबू नहीं रख पाए !!!
खाते रहे !!! खाते रहे और इतना खाया कि घर पहुँचते ही पेट ने विद्रोह कर दिया !!!
परेशान घरवाले हमें एक L P Truck में डालकर दवाखाने ले गये !!!
हमे ठीक से याद नहीं पर शायद उस दिन मिनी ट्रक हड़ताल पर थे !!! और कोई फायदा भी नहीं होता क्योकि हम उसमे आते भी नहीं !!!
उसी वक़्त हमे देख !!!
डॉक्टर ने ढोल बजाकर यह घोषणा कर दी कि अगर आज के बाद आलू ,चावल , अचार , पापड़ , मावा , मिष्ठान , पूड़ी , परांठे , मिर्च के कोफ्ते , समोसा , कचौड़ी , कलाकंद जैसा कुछ खाया तो हमारी आत्मा काया का पिंजड़ा छोड़ कर तुरंत गायब हो जाएगी !!!
फिर क्या था ? घरवाली ने सब बंद कर दिया !!!
बस अब थोडा सा घास फूस खाने को मिलता है !!!
चार महीने में ही सूख कर काँटा हो गए है !!!
हमने कहा :- भाभी जी ने जो कुछ भी किया वह आपकी सेहत के लिए किया अथवा आपकी भलाई के लिए ही किया है !!!
यह सुनते ही उनकी आँखों में आंसू छल छला आये !!!

बोले :- यार अफलातून !!!
वह तो ठीक है , पर ऐसा जीना भी क्या जीना !!!
एक जमाने में, मैं मनमौजी शहर का नामी चटोरा था !!! यूँ ही मेरा नाम मनमौजी नहीं पड़ा !!!
मैं आज भी बता सकता हूँ कि शहर कि किस गली में

गरमागरम जलेबियाँ किस वक़्त मिलती है !!!
टमाटर के कोफ्ते कहाँ बनते है ?
कौन सा हलवाई बाल्टी भर मिर्च के पकोड़े बनाता है जो दो घंटे में साफ़ हो जाते है !!!
किस चौराहे पर पपड़ी और आलू का साग मिलता है , जहां शहर वाले भुखमरो कि तरह टूट पड़ते है !!!

नारियल की !!! काजू की !!! खोये की बर्फी कहाँ बनती है ? और रबड़ी के लच्छो का तो कहना ही क्या ?
कौन सा हलवाई है जो मावे को मंदी आंच पर भूनकर ऐसी सुनहरी बर्फी बनाता है जिसे खाकर स्वर्गीय आनंद प्राप्त होता है !!!
मुझे यह भी पता है की किस गली में कितने नम्बर की दूकान पर खस्ता गोलगप्पे चाट मिलते है !!!
और किस मंदिर के सामने भेल पूड़ी और पावभाजी का ठेला लगता है !!!
पराठे वाली गली में कब ? कितने बजे ? आलू का पराठा बनता है !!! कब गोभी का पराठा बनता है !!! कब मेथी का परांठा बनता है !!! और कितने बजे आलू नान , बटर नान बनता है ?
लेकिन हाय !!! अब सब कुछ हवा हो गया !!! घरवाली दावतों में जाने नहीं देती !!! फ्रिज पर ताला लगाय रखती है !!! सब छूट गया !!! लेकिन इस पापी जुबान का क्या करूँ ? इतना कह कर वो रो पड़े !!!
हम समझ नहीं पा रहे थे की इस शहर में हम मनमौजी के आंसू को कैसे रोके ?
दरअसल उनकी बात सुनकर हमारी भी जुबान लपलपाने लगी थी !!!
विशेष अनुरोध :- यदि आप लोग अपने घर में कभी कोई उत्सव !!! शादी विवाह !!! पार्टी इत्यादि का गठन करे तो दो न्योते जरूर भेजे मनमौजी और अफलातून को !!! एक बार सेवा का मौका अवश्य दे !!!
हम है रही प्यार के फिर मिलेंगे चलते चलते.....धन्यवाद !!!

Wednesday, May 19, 2010

देहाती ज्ञान !! दे हाथी ज्ञान !!

अरे............... ऐ रामअवध ....ऐ रामदुलारी !!!

अरे ....................औ.. भौजाई कहाँ हो ? अकेल अकेल कहाँ जात बाणु .....तनी रउवा संग बतिया ला शहरिया से आये है ...!!!

मिश्र जी ....का मर्दवा तुहू जौन हउवा ना.... लावा तनी चुनौटी - वुनौटी दा ढेर दिन हो गईल बानी शुर्तियाँ खाए !!!

अरे ऐ............ संग्ठा ले आवा ऐहरे ले आवा आपन घटियवा तनी बैठल जाई..और पिंकिया कि अम्मा से तनी कह दा कि दुई चार लोटा गुड का रस बना ले आजले मिल बैठकर सब लोगन गुड का रस पियल जाई ! कहो कैसा पिलान है ?

रामअवध :- कहो भैया पाणे चाय वाला ! का बात है ? आज बड़े ही खुश दिख रहे हो ? कौनो बिशेष बात भैय्ल का !

पाण्डेय चाय वाला : अरे हाँ भैया ! आज हम देहाती ज्ञान देंगे तुमका !

रामअवध :- ऐसा क्या ? ता फैकिये पाणे भैया ! हम तुम्हरे साथ है और पूरा गाँव तुम्हरे साथ है !
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लीजिये साब ...."देहाती ज्ञान" ! अब इसको यह मत कहना की "दे हाथी ज्ञान" !

आप हमारी तस्वीर देखकर अंदाज़ा लगा सकते है की हम कैसे हाथी है ?

गलती से छींक भी मार दोगे तो पतंग जैसे गंगन विहार करने लगेंगे हम !

भला इस "विकास दर" के माहौल में हाथी भी पचास किलो का रह गया है अब तो कुछ करो ! बहरहाल ,

विकासदर
हम डॉ मनमोहन सिंह , प्रणब मुखर्जी , और मोंटेक सिंह आहलुवालिया जैसे अर्थशास्त्री तो है नहीं , हम तो भारत देश में रहने वाले सामान्य नागरिक है !

अभी तक तो हमारा प्रवेश "इंडिया" तक में नहीं हुआ है ! अब देहाती क्या जाने अंग्रेजी ?

लुटियन के टीले पर रहने वाले मानव रत्नों के बारे में तो हम सात जन्मो तक नहीं पहुँच सकते ! अलबत्ता हम भी इसी देश के सभ्य नागरिक है , संविधान की मोटी पुस्तक में वर्णित अधिकार हमारे पास भी है !

हम भी चौराहे पर खड़े होकर किसी को भी गरिया सकते है ! किसी के खिलाफ लिख सकते है !

इसके बावजूद हमे "विकास दर" का गणित अभी तक समझ नहीं आया ! पीएम् साब कह रहे है की गरीबी हटाने और युवाओ को रोज़गार देने के लिए दस फीसदी विकास दर की आवश्यकता है !

हम तो मोटी सी बात यह समझते है की इसका अर्थ है इस साल जितनी आपकी आमदनी है , उसमे दस फीसदी इजाफा हो जाये तो आपकी विकास दर दस प्रतिशत हो गयी !

लेकिन साब ऐसा होता है ?
हमारे देश में तो विकास दर की गतियों में भी उतना ही अंतर है ,जितना सिविल लाइंस और गरीबों की कच्ची बस्ती की सड़कों में !

एक तो एकदम फिल्म तारिका के कपोलों की तरह चिकनी और दूसरी किसी उजाड़ बंजर मैदान की तरह खुरदरी !

जहां तक विकासदर की बात है वो भी उतनी ही असंतुलित है की पूछो मत !

अपने चुकंदर मल का बेटा छछूंदर सरकारी आरक्षण पाकर सिविल सर्वेंट बन गया ! दो बर्ष में ही चुकंदर जी के ठाठ हो गये ! टाट के कपडे की जगह मखमल के परदे लग गए ! खुरदरी खादी की जगह बंगाली मखमल के कुर्ते बन गए ! चना - सत्तू की जगह काजू - किशमिश चबाने लग गए ! राम कसम ऐसी विकासदर तो विकासशील देशो की भी नहीं थी !

अगर कोई आदमी थर्ड हैण्ड मोपेड की जगह लक्जरी कार खरीद ले , तो आप उसकी विकास दर की कल्पना कर सकते है ?

ज़मीन - जायदाद का अवैध धंधा करने वालो की विकासदर को देखिये ! कल तक जुगाड़ चलाने वाले को आज "बी एम् डब्लू " में बैठा देख............... हमे गश आ गया !

विकासदर देखनी है तो अपने नेता और जन प्रतिनिधियों को देखिये ! विकास दर का अध्ययन करना हो तो उत्तरप्रदेश की रानी बहन जी का अध्ययन कीजिये ! विकासदर की असीमित गति तो भ्रष्टाचारी अफसरों के घर देखी जा सकती है !

बहरहाल , सुयोग्य पुत्रियों के ईमानदार पिता मनमोहन सिंह एक पढ़े लिखे अर्थशास्त्री की तरह देश के विकासदर की बात करते है ! तो हमे थोड़ी हैरत होती है ...हैरत इसलिए की अब उन्हें इस देश का प्रधानमन्त्री बने काफी अरशा हो गया है ! अब तक तो उन्हें भी इस देश के भ्रष्ट अधिकारियों , बेईमान नेताओ ,और चालबाजो की विकास दर दिखाई देने लगी होगी !

नहीं तो , हम उन्हें उस प्रदर्शनी में लेकर चल सकते है जिसके लिए एक शायर दुष्यंत ने कहा है

" कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए ,हमने पूछा नाम तो बोला :- हिन्दुस्तान ! "

रामअवध :- का कह रहे हो भैया ! ऐसा गज़ब खेला होत है शहरिया में....
ए भैया अब कि बार हमका भी लिवा चलो शहरिया अपने संगे !

पाण्डेय चाय वाला :- हुमम म म म म म !

का बोलते हो आप ले आवे इनको शहरिया ?

Friday, May 14, 2010

पाण्डेय चाय वाला !!!

लीजिये हुज़ूर संभालिये ! एक दम पुराना और बासी प्रोडक्ट लेकर आया हूँ ! अब ताज़े कि उम्मीद तो मुझसे कीजियेगा नहीं क्योकि अपने धंधे का एक ही उसूल है "बासी माल टिकाना ताज़ा माल छिपाना"

हाँ ! तो साब और मेमसाब कौन सी चाय पियेंगे रामदुलारी चाय , राम बिसारी चाय , रामकली चाय , लाची वली चाय , बिना लाची वाली चाय, स्पेसल चाय !

समोसा , कचौड़ी , पकौड़ी , गरमा गरम टिक्की सौ प्रतिशत बासी कि गारंटी के साथ !

जी जनाब ....यस सर ....हाज़िर महोदय !!!

जनाब , जब हम तीसरी क्लास में पढ़ते थे तो प्रार्थना के बाद पहले पीरियड में क्लास टीचर महोदय हमारी हाजरी लेते थे !

वे बोलते - गंगुलाल ! तो "गंगू" उठकर बोलता - उपस्थित महोदय !
"गंगू" यह शब्द बोलता तो "नंगू" यस सर कहता !
"प्रेमू" हाज़िर जनाब बोलता तो "नरेश" जी हाँ श्रीमान कह कर अपनी उपस्थति दर्ज करवाता !

अर्थात कक्षा में पूरी तरह लोकतंत्र विद्यमान था !

लेकिन कभी कभी कोई अकडू अध्यापक आता तो वह सभी को एक जैसे शब्द बोलने पर मजबूर कर देता जैसे "उपस्थित हूँ गुरुदेव"!

कक्षा में हाजरी के समय उपस्थित रहना ऐसा अनुष्ठान था जैसे पाणिग्रहण संस्कार के वक़्त वर वधू का !

कक्षा में हाज़िर रहने वालो कि संख्या प्रतिदिन नब्बे प्रतिशत से ऊँची रहती थी !
बाद में स्कूलों के मॉनिटर अर्धविश्राम के बाद भी हाजरी लेने लगे !
कॉलेज में तो हर पीरियड में ही उपस्थति ली जाती थी ! यहाँ ज्यादातर बच्चे गायब रहते थे और विषय प्राध्यापक अक्सर उनके अनुपस्थित रहने पर भी उपस्थति लगा देते !

तब स्कूल - कॉलेज के रजिस्टर को सच्चा दस्तावेज माना जाता था !

एक बार हम अपने चंट दोस्तों के साथ सलीमा देखने चले गए ! वहाँ दोस्तों ने सलीमा कर्मचारी को बिना डिटर्जेंट के धो दिया !

पुलिस केस हुआ ! लेकिन हम उस पुलिसिया चक्कर से इसलिए बच गए क्योंकि अध्यापक जी ने रजिस्टर में हमारी हाजरी लगा रखी थी ! यानी उस वक़्त हम सलीमा घर में नहीं वरन कक्षा में मौजूद माने गए !

लेकिन अब देखिये कक्षाओ में छात्रों को जाने के लिए बेचारे मंत्री महोदय को छात्रों को बोनस अंक देने पड़ रहे है !

क्या आप बता सकते है कि छात्र कक्षा में क्यों नहीं आते ?

इसलिए नहीं कि वो पढना नहीं चाहते ! दरअसल उन्हें ढंग से पढाया नहीं जाता ! गुरु जी को कालेज में राजनीति करने से फुर्सत मिले तो पढाये ! गुरूजी परनिंदा में डूबे रहते है !

वे इस बोर तरीके से पढ़ाते है कि बच्चे उनकी कक्षा में ऊँघने से बेहतर मेरी कैंटीन में बैठ कर बासी समोसा और स्पेसल चाय पीना ज्यादा पसंद करते है !

हमारी मित्रा ,सखी, सहेली.... संगीता जब बीच सत्र में अपनी पढाई से संन्यास लेने कि घोषणा कि तो हमने उसको सत्र पूरा करने के बारे में समझाया !

उत्तर में संगीता हमसे प्रश्न कर बैठी - अबे मलीहाबादी आम !

( कृपया आप इस संबोधन शब्द को नज़रंदाज़ करे ! वो स्नेहवश मुझको मलीहाबादी आम कहती है वो ह्रदय कि बुरी कतई नहीं है ! )

मैं क्यों पढूं ? ना तो मुझे पढाई में रस आता है, ना गुरु जी हमको ढंग से पढ़ाते है , ना इस पढाई से मेरा कोई लाभ होने वाला है , जब पढने से कुछ भी हासिल नहीं तो मैं क्यों पढूं ?

यह सवाल तो ऐसे था जैसे जून कि दोपहर में कोई आग जला कर तापे !

तो साब चाहे कितना भी कर लो पर जब तक ससुर पढने में आनंद नहीं आएगा , पढने से फायदा नहीं होगा ! कौन पढने में रुचि लेगा भला ? आग लगा दो क्लास को !

पर कुछ भी कहो अपना बासी माल बिकता तो खूब है !

अपील :- शिक्षा जगत में सुधार कीजिये मंत्री महोदय अन्यथा ब्लैक बोर्ड होंगे ! सीटे होंगी ! अध्यापक होंगे ! रजिस्टर होंगे पर जी जनाब ! यस सर ! हाज़िर महोदय ! हाँ श्रीमान बोलने वाले विद्यार्थी नहीं होंगे !!! होगा तो सिर्फ पाण्डेय चाय वाला ..........

एक बार सेवा का मौका अवश्य दे ! आज नकद कल उधार !
पिछला हिसाब clear कर दीजिये साब !

Wednesday, May 12, 2010

खीर पूड़ी !!!

कोई सही शीर्षक नहीं मिल रहा था सोचा क्यों ना खीर पूड़ी का एक पहलू बता दूँ आपको कि हमारे बड़े बुजुर्ग क्यों कहते थे की बंद मुठ्ठी लाख की और खुल गयी तो ख़ाक की !

इसीलिए पुराने लोग अपनी तिजोरी और संदूक किसी को नहीं दिखाते थे !

सामने वाला अंदाज़ा ही लगाता रहता की इस तिजोरी में कितना माल है, चाहे उसमे रुपयों की जगह रद्दी कागज ही क्यों ना भरे हुए हो !

हम एक ऐसे सेठ जी को जानते है जिनके बारे में यह प्रसिद्द था की उनके पास बड़ा भारी धन है लेकिन जब वे मरे तो पता चला की उनके ऊपर लाखो का कर्जा है !

बंद मुठ्ठी कहते किसे है ? ऐसी बात जिसके बारे में अनुमान लगाना मुश्किल हो ! समझदार ऐसा तमाशा करते है की सामने वाला यह तय ही नहीं कर पता की इसमें कितना सच है और कितना झूठ !

अब देखिये अपनी नादानी से अपनी बहन जी ने अपने करिश्मे की पोल खोल दी ! अपने गले में मुसीबत की माला पहनकर ....उनके ही प्रदेश में बच्चो को शिक्षा नहीं मिल रही है क्योकि धन की कमी है किन्तु माला पहनने के लिए धन की पूर्ती भी हो जाती है !

बहरहाल , अपने यहाँ तो चमत्कार को नमस्कार किया जाता है !

महान वीर और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माने जाने वाले अर्जुन के भी इतने बुरे दिन आये कि जब वे विधवा यादव स्त्रियों को ले जा रहे थे तो उन्हें साधारण लुटेरों ने लूट लिया !

रणभूमि में अपने धनुष कि टंकार से लोगो के कान बहरे कर देने वाला अर्जुन टापता ही रह गया !

इसी हाल पर अपने चचा ग़ालिब ने कहा है - बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले .....!

हमे एक सच्ची कथा याद रही है ...एक वृद्ध दंपत्ति थे जिनके चार बेटे थे ! बूढ़े माँ बाप को कौन रोटी खिलाये, इस बात को लेकर बहुएं दबी दबी जुबान में बड़बड़ाती रहती !

उनकी मंशा भांप एक दिन बूढ़े बाप ने कहा पुत्रों ! मैं तुम्हारी माँ के साथ अलग रहना चाहता हूँ ! मैं अपना सब कुछ तुमको सौंप रहा हूँ बस यह संदूक अपने साथ ले जा रहा हूँ !

बेटे ने देखा कि पिताजी के पास इतना मज़बूत संदूक है जिसपर मोटा सा ताला लटक रहा है ! उसने सोचा इसमें जरूर जेवर दौलत है !

उसने तुरंत कहा पिताजी : आप मेरे साथ रहिये ! एक भाई कि बात सुन बाकी भाइयों के कान खड़े हो गए ! वे भी पिताजी को अपने साथ रखने के लिए उत्सुक हो गए बहुएं भी अपने सास ससुर को रोज़ रोज़ खीर पूड़ी बनाकर खिलाने लगी !

वक़्त गुज़रता गया एक दिन बूढ़ा मर गया लेकिन संदूक कि चाबी बुढ़िया को सौंप गया और बुढ़िया को समझा गया कि संदूक को भूल कर भी ना खोले ! फिर एक दिन बुढ़िया भी राम को प्यारी हो गयी तेरहवी के बाद लडको ने संदूक को खोला तो उसमे धातु के कबाड़ के साथ एक पत्र मिला जिसमे लिखा था -

बेवकूफों ! मैं जानता था तुम लोग बड़े स्वार्थी हो ! बस इसीलिए मैंने बड़े ताले वाला खाली संदूक अपने साथ रखा था ! अब इस संदूक को अपने माथे पर रख कर ज़िन्दगी भर नाचो और हो सके तो आज से ही तुम लोग भी एक संदूक रख लो ताला लगा कर ताकि कल तुम्हारे बच्चे तुमको भी अपने सिर आँखों पर बैठा कर रखे !

तुम्हारा स्वर्गवासी बाप !

तो बंधुओ ....हम तो यही कहेंगे कि अपने माता पिता कि सेवा आज से ही शुरू कर दीजिये और फिर देखिये पत्थर कि मूरत भी फीकी लगने लगेगी !

अच्छा तो चलते है खीर पूड़ी के न्यौते पर आमंत्रित करना ना भूले ! सोच क्या रहे है ...? जल्दी कीजिये !