Friday, May 14, 2010

पाण्डेय चाय वाला !!!

लीजिये हुज़ूर संभालिये ! एक दम पुराना और बासी प्रोडक्ट लेकर आया हूँ ! अब ताज़े कि उम्मीद तो मुझसे कीजियेगा नहीं क्योकि अपने धंधे का एक ही उसूल है "बासी माल टिकाना ताज़ा माल छिपाना"

हाँ ! तो साब और मेमसाब कौन सी चाय पियेंगे रामदुलारी चाय , राम बिसारी चाय , रामकली चाय , लाची वली चाय , बिना लाची वाली चाय, स्पेसल चाय !

समोसा , कचौड़ी , पकौड़ी , गरमा गरम टिक्की सौ प्रतिशत बासी कि गारंटी के साथ !

जी जनाब ....यस सर ....हाज़िर महोदय !!!

जनाब , जब हम तीसरी क्लास में पढ़ते थे तो प्रार्थना के बाद पहले पीरियड में क्लास टीचर महोदय हमारी हाजरी लेते थे !

वे बोलते - गंगुलाल ! तो "गंगू" उठकर बोलता - उपस्थित महोदय !
"गंगू" यह शब्द बोलता तो "नंगू" यस सर कहता !
"प्रेमू" हाज़िर जनाब बोलता तो "नरेश" जी हाँ श्रीमान कह कर अपनी उपस्थति दर्ज करवाता !

अर्थात कक्षा में पूरी तरह लोकतंत्र विद्यमान था !

लेकिन कभी कभी कोई अकडू अध्यापक आता तो वह सभी को एक जैसे शब्द बोलने पर मजबूर कर देता जैसे "उपस्थित हूँ गुरुदेव"!

कक्षा में हाजरी के समय उपस्थित रहना ऐसा अनुष्ठान था जैसे पाणिग्रहण संस्कार के वक़्त वर वधू का !

कक्षा में हाज़िर रहने वालो कि संख्या प्रतिदिन नब्बे प्रतिशत से ऊँची रहती थी !
बाद में स्कूलों के मॉनिटर अर्धविश्राम के बाद भी हाजरी लेने लगे !
कॉलेज में तो हर पीरियड में ही उपस्थति ली जाती थी ! यहाँ ज्यादातर बच्चे गायब रहते थे और विषय प्राध्यापक अक्सर उनके अनुपस्थित रहने पर भी उपस्थति लगा देते !

तब स्कूल - कॉलेज के रजिस्टर को सच्चा दस्तावेज माना जाता था !

एक बार हम अपने चंट दोस्तों के साथ सलीमा देखने चले गए ! वहाँ दोस्तों ने सलीमा कर्मचारी को बिना डिटर्जेंट के धो दिया !

पुलिस केस हुआ ! लेकिन हम उस पुलिसिया चक्कर से इसलिए बच गए क्योंकि अध्यापक जी ने रजिस्टर में हमारी हाजरी लगा रखी थी ! यानी उस वक़्त हम सलीमा घर में नहीं वरन कक्षा में मौजूद माने गए !

लेकिन अब देखिये कक्षाओ में छात्रों को जाने के लिए बेचारे मंत्री महोदय को छात्रों को बोनस अंक देने पड़ रहे है !

क्या आप बता सकते है कि छात्र कक्षा में क्यों नहीं आते ?

इसलिए नहीं कि वो पढना नहीं चाहते ! दरअसल उन्हें ढंग से पढाया नहीं जाता ! गुरु जी को कालेज में राजनीति करने से फुर्सत मिले तो पढाये ! गुरूजी परनिंदा में डूबे रहते है !

वे इस बोर तरीके से पढ़ाते है कि बच्चे उनकी कक्षा में ऊँघने से बेहतर मेरी कैंटीन में बैठ कर बासी समोसा और स्पेसल चाय पीना ज्यादा पसंद करते है !

हमारी मित्रा ,सखी, सहेली.... संगीता जब बीच सत्र में अपनी पढाई से संन्यास लेने कि घोषणा कि तो हमने उसको सत्र पूरा करने के बारे में समझाया !

उत्तर में संगीता हमसे प्रश्न कर बैठी - अबे मलीहाबादी आम !

( कृपया आप इस संबोधन शब्द को नज़रंदाज़ करे ! वो स्नेहवश मुझको मलीहाबादी आम कहती है वो ह्रदय कि बुरी कतई नहीं है ! )

मैं क्यों पढूं ? ना तो मुझे पढाई में रस आता है, ना गुरु जी हमको ढंग से पढ़ाते है , ना इस पढाई से मेरा कोई लाभ होने वाला है , जब पढने से कुछ भी हासिल नहीं तो मैं क्यों पढूं ?

यह सवाल तो ऐसे था जैसे जून कि दोपहर में कोई आग जला कर तापे !

तो साब चाहे कितना भी कर लो पर जब तक ससुर पढने में आनंद नहीं आएगा , पढने से फायदा नहीं होगा ! कौन पढने में रुचि लेगा भला ? आग लगा दो क्लास को !

पर कुछ भी कहो अपना बासी माल बिकता तो खूब है !

अपील :- शिक्षा जगत में सुधार कीजिये मंत्री महोदय अन्यथा ब्लैक बोर्ड होंगे ! सीटे होंगी ! अध्यापक होंगे ! रजिस्टर होंगे पर जी जनाब ! यस सर ! हाज़िर महोदय ! हाँ श्रीमान बोलने वाले विद्यार्थी नहीं होंगे !!! होगा तो सिर्फ पाण्डेय चाय वाला ..........

एक बार सेवा का मौका अवश्य दे ! आज नकद कल उधार !
पिछला हिसाब clear कर दीजिये साब !

3 comments:

  1. bilkul sahi baat kahi haasya ke put ke sath...jo mahaul is samay hamari shiksha ka hai use bas berojgaar hi paida honge...achchi shiksha bas kuch sansthaano ki bapauti reh gaya hai...wahan ke vidyaarthi bhi desh me rehna nahi chahte...vikas kaise hoga...

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  2. धन्यवाद ! दिलीप साहब ....आपने सराहा बस दिन बन गया आज खुद को लेखक कहने को दिल कहता है वरना "पाण्डेय चाय वाला" सुन सुन कर बोर हो गया था !

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