Wednesday, May 12, 2010

खीर पूड़ी !!!

कोई सही शीर्षक नहीं मिल रहा था सोचा क्यों ना खीर पूड़ी का एक पहलू बता दूँ आपको कि हमारे बड़े बुजुर्ग क्यों कहते थे की बंद मुठ्ठी लाख की और खुल गयी तो ख़ाक की !

इसीलिए पुराने लोग अपनी तिजोरी और संदूक किसी को नहीं दिखाते थे !

सामने वाला अंदाज़ा ही लगाता रहता की इस तिजोरी में कितना माल है, चाहे उसमे रुपयों की जगह रद्दी कागज ही क्यों ना भरे हुए हो !

हम एक ऐसे सेठ जी को जानते है जिनके बारे में यह प्रसिद्द था की उनके पास बड़ा भारी धन है लेकिन जब वे मरे तो पता चला की उनके ऊपर लाखो का कर्जा है !

बंद मुठ्ठी कहते किसे है ? ऐसी बात जिसके बारे में अनुमान लगाना मुश्किल हो ! समझदार ऐसा तमाशा करते है की सामने वाला यह तय ही नहीं कर पता की इसमें कितना सच है और कितना झूठ !

अब देखिये अपनी नादानी से अपनी बहन जी ने अपने करिश्मे की पोल खोल दी ! अपने गले में मुसीबत की माला पहनकर ....उनके ही प्रदेश में बच्चो को शिक्षा नहीं मिल रही है क्योकि धन की कमी है किन्तु माला पहनने के लिए धन की पूर्ती भी हो जाती है !

बहरहाल , अपने यहाँ तो चमत्कार को नमस्कार किया जाता है !

महान वीर और सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर माने जाने वाले अर्जुन के भी इतने बुरे दिन आये कि जब वे विधवा यादव स्त्रियों को ले जा रहे थे तो उन्हें साधारण लुटेरों ने लूट लिया !

रणभूमि में अपने धनुष कि टंकार से लोगो के कान बहरे कर देने वाला अर्जुन टापता ही रह गया !

इसी हाल पर अपने चचा ग़ालिब ने कहा है - बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले .....!

हमे एक सच्ची कथा याद रही है ...एक वृद्ध दंपत्ति थे जिनके चार बेटे थे ! बूढ़े माँ बाप को कौन रोटी खिलाये, इस बात को लेकर बहुएं दबी दबी जुबान में बड़बड़ाती रहती !

उनकी मंशा भांप एक दिन बूढ़े बाप ने कहा पुत्रों ! मैं तुम्हारी माँ के साथ अलग रहना चाहता हूँ ! मैं अपना सब कुछ तुमको सौंप रहा हूँ बस यह संदूक अपने साथ ले जा रहा हूँ !

बेटे ने देखा कि पिताजी के पास इतना मज़बूत संदूक है जिसपर मोटा सा ताला लटक रहा है ! उसने सोचा इसमें जरूर जेवर दौलत है !

उसने तुरंत कहा पिताजी : आप मेरे साथ रहिये ! एक भाई कि बात सुन बाकी भाइयों के कान खड़े हो गए ! वे भी पिताजी को अपने साथ रखने के लिए उत्सुक हो गए बहुएं भी अपने सास ससुर को रोज़ रोज़ खीर पूड़ी बनाकर खिलाने लगी !

वक़्त गुज़रता गया एक दिन बूढ़ा मर गया लेकिन संदूक कि चाबी बुढ़िया को सौंप गया और बुढ़िया को समझा गया कि संदूक को भूल कर भी ना खोले ! फिर एक दिन बुढ़िया भी राम को प्यारी हो गयी तेरहवी के बाद लडको ने संदूक को खोला तो उसमे धातु के कबाड़ के साथ एक पत्र मिला जिसमे लिखा था -

बेवकूफों ! मैं जानता था तुम लोग बड़े स्वार्थी हो ! बस इसीलिए मैंने बड़े ताले वाला खाली संदूक अपने साथ रखा था ! अब इस संदूक को अपने माथे पर रख कर ज़िन्दगी भर नाचो और हो सके तो आज से ही तुम लोग भी एक संदूक रख लो ताला लगा कर ताकि कल तुम्हारे बच्चे तुमको भी अपने सिर आँखों पर बैठा कर रखे !

तुम्हारा स्वर्गवासी बाप !

तो बंधुओ ....हम तो यही कहेंगे कि अपने माता पिता कि सेवा आज से ही शुरू कर दीजिये और फिर देखिये पत्थर कि मूरत भी फीकी लगने लगेगी !

अच्छा तो चलते है खीर पूड़ी के न्यौते पर आमंत्रित करना ना भूले ! सोच क्या रहे है ...? जल्दी कीजिये !

2 comments:

  1. waah kya jugaad liya us pita ne....kash aise kisi sandook ki zarurat na pade kabhi kisi pita ko...

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  2. अच्छी लगी आपकी पोस्ट ...

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