Wednesday, April 28, 2010

'विनय' से बचो ........

'विनय' से बचो ........

( विनय भाई रसिक भाई मेहता) से हमारी मुलाकात नवरात्रि के दौरान खेले जाने वाले डांडिया समारोह में हुई थी !

हम अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेल रहे थे कि अचानक

सिल्क का कुर्ता-पायजामा पहने एक अर्ध गंजे पुरुष डंडे बजाते हुए हमारे बीच में कूद पड़े और हमे एक तरफ कर के हमारी उपस्थिति में ही हमारी गर्लफ्रेंड के साथ डांडिया खेलने लगे !

हम अपना कलेजा जलाते हुए एक तरफ खड़े रहे कसम से अगर उस दिन हमारे हाथ में डांडिया के बजाय खुरपा होता तो उनके बचे खुचे बाल भी छील देते !

खेल ख़त्म होने पर हमारी गर्लफ्रेंड ही उन्हें हमारे पास लायी और

बोली - देखो विनय ...यही है विनय भाई रसिक भाई मेहता !
V.M Boutique के मालिक जिनसे मैं अपने ड्रेस लेती हूँ !

विनय भाई को देखते ही हम समझ गए कि यह पैदाइश ही रसिक है !

बहरहाल , उस दिन से हमारी विनय भाई रसिक भाई मेहता से मित्रता हो गयी ! वही विनय भाई अभी दो दिन पहले हमारे घर आये और

बोले - मैं अपना नाम बदल रहा हूँ ! हमने चौंक कर कहा क्या कहते हो विनय भाई ? आपका नाम तो इतना चोखा है ! इतना झकाश है ! इतना सोलिड है ! बिलकुल हमारे नाम से मिलता जुलता !

वे बोले - यही तो रोना है ...कि हमारा नाम बिलकुल आपके नाम जैसा है कल तक जब हम आपको नहीं जानते थे तब तक तो ठीक था किन्तु अब तो दाल रोटी के भी वांदे पड़ गए है !

जो लोग बुटिक पर आते है हमारा नाम पूछ कर ऐसे भाग जाते है जैसे हमने अपना नाम नहीं कोई विस्फोटक सामग्री का नाम ले दिया है ....

पूछताछ करने पर पता चला कि यह वही विनय है ना जो ब्लॉग जगत में लोगो को झेलाता है ! और तो और हमने सुना है विनय नाम के दो ठग भी पकडे गये है पिछले दिनों .....

विनय भाई कि बात सुनकर हम भी चक्कर में पड़ गए क्या सचमुच विनय नाम का इतना खौफ है ?

अचानक हमे विनय भाई से डर लगने लगा ! अपनी घबराहट को छिपाते हुए हम

बोले - विनय भाई ! नाम में क्या रखा है ? यह तो संयोग मात्र है ! अब देखो हमारे नाम कि विडंबना भी ऐसी ही है ! कानपुर में हमारा नामकरण हुआ बड़े प्यार से हमारी मौसी मधु पाण्डेय जी ने नाम रखा विनय पाण्डेय बड़े हुए तो हमारी कक्षा में विनय नाम के तीन छात्र थे ! दुष्कर्म वो करते थे और मरम्मत हमारी हो जाती थी !

और बड़े हुए तो विनय नाम का हमारे मोहल्ले में एक लड़का और भी था लड़कियां वो छेड़ता था फिर उस लड़की के भाई हमको लात मुक्को से छेड़ जाते थे !

पर जनाब हमने कभी बुरा नहीं माना क्योकि कभी कभी फायदा भी हो जाता था इस नाम का, हम भी सीटियाँ बजा लेते थे और फिर बज दुसरे विनय कि जाती थी !

परीक्षा में परचा खाली हम छोड़ देते थे और उसी पर्चे में हमको सबसे ज्यादा अंक भी मिल जाते थे !

और जब से ब्लॉग लिखना शुरू किया तो हमसे पहले ही यहाँ विनय नाम के दो तीन दिग्गज बुद्धिजीव मौजूद थे ! और हमारे भोले भाले पाठक आज तक Confusion में उनका नाम पढ़कर हमे पढ़ जाते है !

तो बोलिए जनाब विनय नाम के फायदे है कि नहीं , बहरहाल विनय भाई तो चले गए पर जाते जाते एक विचारणीय प्रश्न दे गए कि क्या वाकई विनय से बचो ?

अब यह तो आप जानो हमारा तो खैर नाम है ही विनय पाण्डेय किन्तु कुछ अति बुद्धिमान हमको भूत अथवा ना जाने क्या क्या समझते है !

जय राम जी कि ......

1 comment:

  1. भाई बहुत फायदे हैं ! बहुत से नये पाठक मिले हैं मुझे !!
    कई इस भ्रम में मुझे पढने लगे है कि मैं ही वह दिग्गज
    बुद्धिजीवि हूँ जिसका ज़िक्र आपने किया है । वहीं बहुत से
    ऎसे भी हैं जिन्होंने विनय पान्डेय को भूल से विनय वैद्य
    समझ लिया । ऒर ब्लॉग देखते ही भाग खड़े हुए ।
    सन्तों करम की गति न्यारी ।

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