Saturday, April 10, 2010

काकी जी कहिन

काकी जी कहिन

मेरा नाम विनय पाण्डेय , नाम तो सुना ही होगा............ अब अपने बारे में क्या कहूँ ?
यह तो आपके माथे से टपकता पसीना , कुर्सी पर बैठे आपका यूँ पैर हिलाना, चेहरे पर छोटी सी मुस्कान, आखों में थोडा सा गुस्सा और कुछ लोगो का अपने बालों को नोचना ही बता रहा है कि आप लोग मुझसे और मेरे व्यंग्य से अच्छी तरह से "पक" चुके है ! इसमें कोई दो राय नहीं कि अब आपलोग खुद को "चना" मान रहे होंगे ! जो कि एक दम से "पक" चुके होंगे !
बहरहाल , आज मैं आप लोगों को पकाने के नहीं बल्कि किसी से मिलाने के उद्देश्य से आया हूँ !
काकी .....मेरी काकी ......मेरी जानकी काकी ....नाम तो मुझे भी नहीं पाता बस कभी जानकी माँ, कभी जानकी काकी अब जानकी काकी कौन है ?
यही सवाल हैं ना आपका तो जनाब "योगी जी" मेरे काका तो उनकी धर्मपत्नी मेरी "जानकी काकी" हुई ! तो साहब........
आज उनके द्वारा सुनाई कहानियों में से एक कहानी को आपके साथ बांटना चाहता हूँ ! तो झेलिये मेरा मतलब है सुनिए ....जानकी काकी कि कहानियों में से एक कहानी :-

बखत ........
बख्त बख्त कि बात है प्यारे ....बखत कि बात बखत पर करनी चाहिए ...क्योकि बखत कि बात ! बखत के साथ ! बखत से राजा और बखत से ही रंक ! सही बखत हो तो आदमी कि गड्डी आसमान में हो और बखत ख़राब हो तो ऊंट पर बैठे बौने आदमी को भी कुत्ता काट ले ....! लेकिन आदमी एक ऐसा जंतु है कि बखत आने पर रावण बन जाता है और बखत जाते ही रोने लग जाता है !
थोथी माला , थोथा ज्ञान बखत बड़ा बलवान नहीं मनुष्य बलवान !
काकी जी कहती है :- वक्त कि हर शै गुलाम , वक्त का हर शै पर राज !

टेम...टेम कि बात "माफ़ करना" टाइम टाइम कि बात है !

एक राजा था और उसकी थी एक रानी ! राजा रानी के कोई कमी कहाँ !
"अजी आजकल के राजा रानी ही जनता के पैसो पर मज़े करते है"
तो वह तो असल के राजा रानी थे !
पर हुज़ूर .... आदमी के पास कितनी ही संपत्ति हो , हो चाहे कितना भी ज्ञान !
पर दुखी रहते है हर वो मानस जिनके नहीं संतान !
संतान चाहे सुबह उठते और रात सोते लगाय मात -पिता को जूते चार पर मात -पिता का कभी ना कम होता उनके लिए दुलार !

बेऔलाद बेचारा मन ही मन दुःख पाता है ! यही हाल था राजा और रानी का ! चाहने को संतान राजा ने क्या क्या ना किया पूजन किया , मंदिर बनवाये ,मज़ार पूजी ,बलि चढ़ाई और किया अनुष्ठान ....
किन्तु कुछ नहीं मिला ....वरदान !
फिर एक दिन .....एक पंडित आया और दिया राजा को दुर्लभ ज्ञान :- चाहिए अगर तुमको संतान तो बनवाओ चित्र चार ! लगवाओ उसको महल पर !

चित्र किसके ? राजा दशरथ , माता कौशल्या ,बालक राम और रावण का !
पहले तीन चित्र तो हर कोई बना दे पर रावण का चित्र बनाने को नहीं हुआ कोई तैयार ! राज रानी बड़े दुखी ........!

आखिर एक चित्रकार ने कहा मैं बनाऊंगा चारो चित्र ! पर तब जब होगा मेरा मन !
राजा-रानी राजी !
चित्रकार ने तीन चित्र तो बना दिए पर नहीं मिला उसे रावण जैसा कोई किरदार !
एक दिन हो बेजार राजा ने हुक्म सुनाया :- नहीं बनाएगा अगर तू चित्र तो काट दूंगा तेरे बेटे का गला !
हम निसंतान मरेंगे पर नहीं रहने देंगे तेरी भी कोई संतान !

आखिर चित्रकार ने खोजा एक दुष्ट ! वो था बड़ा क्रूर , जालिम , हत्यारा ! चित्रकार ने दिया लालच और ले आया अपने घर !
उसे बिठा कर बनाने लगा रावण का चित्र !
जैसे जैसे चित्र हुआ तैयार वो हत्यारा रोने लगा जार जार......!
चित्रकार हैरान पूछा क्यों रो रहे हो भाई ?
क्या इसलिए कि मैंने तुमको रावण मान कर चित्र बनाया ?
वह हत्यारा बोला :- नहीं ....नहीं महोदय चित्रकार !

मैं तो हूँ ही क्रूर ! पर जानते हो आज से सत्रह साल पहले जब मैं बच्चा था तब तुमने ही मुझे बिठाकर राम का चित्र बनाया था !
तब मैं "राम" था और आज "रावण" हूँ !

यही बखत कि बात है भैया !
काकी कि कहानी ख़तम और पैसा हज़म !
पर साहब , आदमी वो जो कहानी से कुछ सीख ले ! अब आपकी आप जानो ! हमने जो बात कहनी थी कह दी ! "राम" में "रावण" ढूँढना और "रावण" में "राम" ढूँढना आपका काम है !

अपुन तो चला .....आज काकी खीर पूड़ी बनायीं है और मुझे बुलाई है !
जानकी काकी.............. तैयार है खीर पूड़ी ,
काका से बचा कर रखना मैं अभी आया........

ओके जी ....बाय है जी ..........

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