Wednesday, May 19, 2010

देहाती ज्ञान !! दे हाथी ज्ञान !!

अरे............... ऐ रामअवध ....ऐ रामदुलारी !!!

अरे ....................औ.. भौजाई कहाँ हो ? अकेल अकेल कहाँ जात बाणु .....तनी रउवा संग बतिया ला शहरिया से आये है ...!!!

मिश्र जी ....का मर्दवा तुहू जौन हउवा ना.... लावा तनी चुनौटी - वुनौटी दा ढेर दिन हो गईल बानी शुर्तियाँ खाए !!!

अरे ऐ............ संग्ठा ले आवा ऐहरे ले आवा आपन घटियवा तनी बैठल जाई..और पिंकिया कि अम्मा से तनी कह दा कि दुई चार लोटा गुड का रस बना ले आजले मिल बैठकर सब लोगन गुड का रस पियल जाई ! कहो कैसा पिलान है ?

रामअवध :- कहो भैया पाणे चाय वाला ! का बात है ? आज बड़े ही खुश दिख रहे हो ? कौनो बिशेष बात भैय्ल का !

पाण्डेय चाय वाला : अरे हाँ भैया ! आज हम देहाती ज्ञान देंगे तुमका !

रामअवध :- ऐसा क्या ? ता फैकिये पाणे भैया ! हम तुम्हरे साथ है और पूरा गाँव तुम्हरे साथ है !
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लीजिये साब ...."देहाती ज्ञान" ! अब इसको यह मत कहना की "दे हाथी ज्ञान" !

आप हमारी तस्वीर देखकर अंदाज़ा लगा सकते है की हम कैसे हाथी है ?

गलती से छींक भी मार दोगे तो पतंग जैसे गंगन विहार करने लगेंगे हम !

भला इस "विकास दर" के माहौल में हाथी भी पचास किलो का रह गया है अब तो कुछ करो ! बहरहाल ,

विकासदर
हम डॉ मनमोहन सिंह , प्रणब मुखर्जी , और मोंटेक सिंह आहलुवालिया जैसे अर्थशास्त्री तो है नहीं , हम तो भारत देश में रहने वाले सामान्य नागरिक है !

अभी तक तो हमारा प्रवेश "इंडिया" तक में नहीं हुआ है ! अब देहाती क्या जाने अंग्रेजी ?

लुटियन के टीले पर रहने वाले मानव रत्नों के बारे में तो हम सात जन्मो तक नहीं पहुँच सकते ! अलबत्ता हम भी इसी देश के सभ्य नागरिक है , संविधान की मोटी पुस्तक में वर्णित अधिकार हमारे पास भी है !

हम भी चौराहे पर खड़े होकर किसी को भी गरिया सकते है ! किसी के खिलाफ लिख सकते है !

इसके बावजूद हमे "विकास दर" का गणित अभी तक समझ नहीं आया ! पीएम् साब कह रहे है की गरीबी हटाने और युवाओ को रोज़गार देने के लिए दस फीसदी विकास दर की आवश्यकता है !

हम तो मोटी सी बात यह समझते है की इसका अर्थ है इस साल जितनी आपकी आमदनी है , उसमे दस फीसदी इजाफा हो जाये तो आपकी विकास दर दस प्रतिशत हो गयी !

लेकिन साब ऐसा होता है ?
हमारे देश में तो विकास दर की गतियों में भी उतना ही अंतर है ,जितना सिविल लाइंस और गरीबों की कच्ची बस्ती की सड़कों में !

एक तो एकदम फिल्म तारिका के कपोलों की तरह चिकनी और दूसरी किसी उजाड़ बंजर मैदान की तरह खुरदरी !

जहां तक विकासदर की बात है वो भी उतनी ही असंतुलित है की पूछो मत !

अपने चुकंदर मल का बेटा छछूंदर सरकारी आरक्षण पाकर सिविल सर्वेंट बन गया ! दो बर्ष में ही चुकंदर जी के ठाठ हो गये ! टाट के कपडे की जगह मखमल के परदे लग गए ! खुरदरी खादी की जगह बंगाली मखमल के कुर्ते बन गए ! चना - सत्तू की जगह काजू - किशमिश चबाने लग गए ! राम कसम ऐसी विकासदर तो विकासशील देशो की भी नहीं थी !

अगर कोई आदमी थर्ड हैण्ड मोपेड की जगह लक्जरी कार खरीद ले , तो आप उसकी विकास दर की कल्पना कर सकते है ?

ज़मीन - जायदाद का अवैध धंधा करने वालो की विकासदर को देखिये ! कल तक जुगाड़ चलाने वाले को आज "बी एम् डब्लू " में बैठा देख............... हमे गश आ गया !

विकासदर देखनी है तो अपने नेता और जन प्रतिनिधियों को देखिये ! विकास दर का अध्ययन करना हो तो उत्तरप्रदेश की रानी बहन जी का अध्ययन कीजिये ! विकासदर की असीमित गति तो भ्रष्टाचारी अफसरों के घर देखी जा सकती है !

बहरहाल , सुयोग्य पुत्रियों के ईमानदार पिता मनमोहन सिंह एक पढ़े लिखे अर्थशास्त्री की तरह देश के विकासदर की बात करते है ! तो हमे थोड़ी हैरत होती है ...हैरत इसलिए की अब उन्हें इस देश का प्रधानमन्त्री बने काफी अरशा हो गया है ! अब तक तो उन्हें भी इस देश के भ्रष्ट अधिकारियों , बेईमान नेताओ ,और चालबाजो की विकास दर दिखाई देने लगी होगी !

नहीं तो , हम उन्हें उस प्रदर्शनी में लेकर चल सकते है जिसके लिए एक शायर दुष्यंत ने कहा है

" कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए ,हमने पूछा नाम तो बोला :- हिन्दुस्तान ! "

रामअवध :- का कह रहे हो भैया ! ऐसा गज़ब खेला होत है शहरिया में....
ए भैया अब कि बार हमका भी लिवा चलो शहरिया अपने संगे !

पाण्डेय चाय वाला :- हुमम म म म म म !

का बोलते हो आप ले आवे इनको शहरिया ?

3 comments:

  1. बधाई...आज के भारत का सही चित्र शब्दों से उकेरा है आपने.भाषा समझने में कहीं कहीं कठिनाई आई किंतु भाव समझ आ गया.
    विशेष रूप से दुष्यंत जी का उद्धरण दे जो समापन किया है, बहुत बढ़िया लगा

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  2. thank you vijay ji ....aapne kam se kam padha to !!!

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