Wednesday, February 3, 2010

बाल मजदूरी या बाल मजबूरी

बाल मजदूरी या बाल मजबूरी यह काफी सवेंदनशील प्रशन है ! भारतीय समाज इसको किस रूप में स्वीकार करता है इसमें काफी मतभेद लगता है ! एक तरफ तो भारतीय समाज इसको पाप, घृणित कार्य इत्यादि के उपनाम से पुकारता है ! वही दूसरी तरफ इसको बढ़ावा भी देता है ! कुछ हिंदी फिल्मो की तर्ज़ पर हमारा भारतीय समाज चल रहा है ! कहता कुछ है, करता कुछ है, दिखता कुछ है, दिखाता कुछ है !!! एक तरफ तो बाल मजदूरी को बंद करने की बात करता है और दूसरी तरफ उसी बाल मजदूरी को कुछ रियालिटी शो के माध्यम से दिखाता भी है ! जरा सा गौर करने की बात है अगर ध्यान देंगे तो खुद ब खुद सब कुछ दिख जायेगा भारतीय सविंधान के एक विचित्र क़ानून के तहत १८ वर्ष से कम उम्र के बच्चो को रोज़गार इत्यादि की मनाही है ! इस उम्र में बच्चो का ध्यान सिर्फ पढाई की तरफ होना चाहिए ताकि भारतवर्ष की उन्नति, विकास आने वाले भविष्य में हो सके! ऐसे तमाम होर्डिंग हम सबने सडको के किनारे पढे है ! कई पान-बीडी की दुकानों पर लिखा हुआ मिल जायेगा की " अट्ठारह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चो का तम्बाकू खरीदना अथवा बेचना दंडनीय अपराध है " किन्तु क्या सही मायने में ऐसा होता है ? नहीं, यह सिर्फ दिखावा है! वास्तविकता तो यह है की अट्ठारह वर्ष से कम उम्र के गरीब ,निर्धन बच्चो का भीख मांगना, रोज़गार करना सिर्फ यह ही पाप है, वही किसी संगीत रियलटी शो में अट्ठारह वर्ष से कम उम्र के बच्चो का सगीत, हास्य इत्यादि शो में प्रतिस्पधा में जीत कर लाखो कमाना बहुत बड़ा काम है, नेकी है ! गरीब का पेट, पेट नहीं हड्डियों का ढांचा है और अच्छे परिवार के बच्चो के बैंक खातो में लाखो है, गरीब के माता पिता परिवार, परिवार नहीं शिक्षा देने का मंच है और लाखो कमाने वाले बच्चे अपने देश का गौरव है! इसी से पता चलता है की हमारा भारतीय समाज कितना संकुचित है उसका कितना छोटा दायरा है जिसके दो दो चेहरे है एक तरफ तो बाल मजदूरी को पाप कहता है वहीँ दूसरी तरफ उसको किन्ही रियलिटी शो के माध्यम से गौरव का नाम दे देता है ! एक कवि की पंक्ति याद आ गयी......"भूख हर दर्शन के घूँघट को उघाड़ देती है ...और रोटी सामने हो तो लाजवंती भी कपडे उतार देती है !" या तो क़ानून को ठोस बनाओ की अट्ठारह वर्ष की आयु से कम उम्र के बच्चो का किसी भी तरह के शो किसी भी तरह की पैसो के खेल में हिस्सा नहीं मिलेगा और किसी भी तरीके की इनामी राशी न उसके परिवार को न उस बच्चे को मिलेगी न किसी सीरियल में वह काम कर सकेगा उसका ध्यान सिर्फ पढाई में ही होना चाहिए जब तक वह उन्नीस वर्ष का नहीं हो जाता! और अगर ऐसा क़ानून बनाने में इस बहुमुखी भारतीय समाज की प्रतिष्ठा पर प्रशनवाचक चिन्ह लगता है तो बे वजह गरीब को शिक्षा की शिक्षा न दी जाये सबको समानता का अधिकार दो ! अन्यथा जैसे राम भरोशे हिन्दुस्तान चल रहा है चलने दो!
और अपनी अपनी रोटी सेकों गरीब बच्चो की लाचारी की भट्टी पर और कहते रहो हिन्दुस्तानी समाज जिंदाबाद !!!!
जय हिंद
विनय पाण्डेय

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