आप क्यों लिखते हो ?
हमारी एक शुभचिंतिका को हमारे ब्लॉग से कुछ ज्यादा ही परहेज है ! वो समय समय पर सिर्फ एक ही प्रशन ही पूछा करती है कि "आप क्यों लिखते है ? " "आप को लिखने के लिए विषय कहाँ से मिलते है ? " कसम अपने computer कि और key board कि उसके सवाल रावलपिंडी के तेज़ गेंदबाज़ 'शोएब अख्तर' कि गेंदों से भी ज्यादा घातक होते है ! मै लिखता हूँ...... प्रतिदिन लिखता हूँ....... किन्तु कभी इस पर विचार नहीं किया कि मै क्यों लिखता हूँ ? क्यों लिखता हूँ ? क्योकि मैं इस देश का सामान्य व्यक्ति हूँ और जैसे कि एक आम व्यक्ति कि आदत है वो तब तक नहीं सोचता और लिखता जब तक कि बात उस पर ही ना आ पड़े ! ना ही प्रतिक्रिया ही जतलाता है ! अब देखो दाल के भाव अर्धशतक को पार कर रहे है , प्रणब दादा अपनी 'दादागिरी' कर रहे है ,पर आम आदमी चुप .........चीनी ,केरोसिन के दाम बैलों कि तरह उछल रहे है , पर नागरिक नहीं बोल रहे ! शेयर का सांड बिग्डैलों जैसा व्यवहार कर रहा है , पर लोग नहीं बोल रहे है ! पानी के लिए हाहाकार है ! गेहूं का आटा मानो परचून वाले का चांटा बन गया है ! भ्रष्टाचार का आलम यह है कि रोज रिश्वत खोर पकडे जा रहे है ! बावजूद इसके तमाम न्यूज़ चेनल वाले हमको २०१२ का डर दिखा कर डरा रहे है !
लेकिन हुजुर एक लेखक के लिए ये ही सबसे माकूल समय है ! उसे लिखने के लिए जरुरत से ज्यादा खुराख मिल रही है जैसे बरसात में मेंढकों कि चांदी हो जाती है ठीक उसी तर्ज़ पर इन दिनों लेखको कि चांदी हो रही है ! लेकिन फिर सवाल उठता है कि लिखने से क्या होता है ? कुछ बदलता है ! या लिखना भी एक आत्मरति है ! हमारे एक कवी मित्र प्रतिदिन संध्यावंदन कि तरह एक कविता रोज़ लिखते है ! चूँकि उनकी कविता के एक मात्र श्रोता हम ही है इसलिए हमे जब तब पकड़ कर एक कविता जरुर बांच देते है !कविता सुनने के शुल्क में हम उन्हें एक cafe coffee house ले जाते है ! पीते हम है बिल वे चुकाते है ! बेचारे कवि पर दो-दो मार ! कविता लिखते वक़्त अपना खून जलाओ और फिर सुनाने के लिए अपना बटुआ खाली करो ! हुजुर सच कहें........... आज अपने यहाँ क्या हो रहा है ? जो लिख रहा है वही पढ़ भी रहा , जिसके लिए एक कवि अपनी आत्मा को सुलगा कर कविताएँ गढ़ रहा है वह मजदूर तो बीडी के कश लगा रहा है !और अगर श्रृंगार प्रधान है कविता तो नायिका ऑफिस में नया बॉयफ्रेंड तलाश रही है ! ऐसे में कौन सुध लेगा उस कवि और लेखक कि जो उसकी याद में कविता लिख रहा है !
व्यंग्य करने वाला खुद ही अपने व्यंग्यो को पढ़ कर हंस रहा है ! "कटाक्ष" करने वाले पर ज़माने भर का कटाक्ष हो रहा है !एक लेखक प्रतिदिन इस लालच में कि कहीं कोई मेरे लेखों को पढता भी है या नहीं यह जानने के लिए रोज़ इन्टरनेट पर अपने ब्लॉग को खोल कर कमेन्ट देखना चाहता है पर ना उम्मीदी के अलावा और कुछ हासिल भी नहीं कर पाता है और इसी पशोपेश में फिर एक नया ब्लॉग लिखने बैठ जाता है कि शायद इस पर कोई कमेन्ट आ जाये ! मज़े कि बात तो यह है कि यह सब जानने के बावजूद भी लेखक है कि लिखे जा रहा है ! क्यों लिखे जा रहा है ?
पता नहीं ......
"आप क्यों लिखते है ?" हालाँकि यह सवाल मेरे लिए था इसलिए जवाब देना भी मेरे "की बोर्ड" का धर्म है !
उत्तर :- मै विनय इसलिए लिखता हूँ क्योंकि लोगों को आज कल Three Idiots के मूत्र विसर्जन ,स्तन , बलात्कारी और तोहफा क़ुबूल जैसे संवाद पर हंसी आती है ! जब परिवार के साथ बैठ कर इस सिनेमा का आनंद लेते है और इन संवादों पर हम सब ठहाके लगते है !और तो और मज़े कि बात तो यह है कि यह सिनेमा ताबड़ तोड़ व्यवसाय भी करती है ! तो क्या मेरा व्यंग्य कटाक्ष नहीं चलेगा जिसमे समाज कि ही तश्वीर है बस थोडा सा व्यंग्य का चोला पहने हुई है !
अब आप बताये ..............."आप क्यों लिखते है "
विनय पाण्डेय
No comments:
Post a Comment