अमरबेल
वल्लाह .....कल तो कमाल हो गया ! अब आप लोग सोच रहे होंगे कि भई......अब क्या कमाल हो गया? "सुख" कि तलाश ख़त्म हुई तो अब यह नया ड्रामा क्या है ? तो हुजुर थोडा सा सब्र कीजिये सब सामने आ रहा है ! अभी कल कि ही बात है सुबह सुबह हम अपने बागीचे में As a Amitaabh "बागबान" हम घूम रहे थे ! ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि मै आप को बतला देना चाहता हूँ कि 'ग्लोबल वार्मिंग' को हम भी बहुत मानते है !
तो हमने देखा कि लम्पट एक 'अमरबेल' हमारे बागीचे में स्वयं उत्पन्न हो गयी ! यह देख हम आनन् फानन में दौडे कुछ गुणीजनों के पास इस अमरबेल का राज़ जानने कि भला यह क्या मुसीबत है ? जो रक्तबीज दानव कि तरह जहाँ मन करे वहां उग जाती है !
तो जनाब.... सबसे पहले हम पहुंचे "योगेश्वर दुबे जी" के पास जो काफी तल्लीनता से व्यंग्य कि तलाश कर रहे थे ! एक हाथ में नारद मुनि और और दूसरे हाथ में अमेरिका कि तस्वीर लिए..... ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ क्योकि आप लोग उनका यह लेख पढना जरुर.....बहरहाल , मैंने उनसे जब पूछा कि बताइए भला यह अमरबेल क्या है ? तो वो बोले - बेटा.......अमरबेल वो लम्पट चीज़ है जो जिस पेड़ से चिपक जाती है वह थोडे ही दिन में अल्लाह को प्यारा हो जाता है ! अब अल्लाह को प्यारा और खुदा का दुलारा तो तुम समझते ही हो अमरबेल जब साथ होती है तो धीरे धीरे सारा सत्व सोख लेती है ! और तो और बेटा तुम ताज्जुब करोगे कि अमरबेल से हमको डरने कि जरुरत नहीं है ! हमारे देश में तो लाखो अमरबेल आदमी का रूप धर के देश को चूसने लगी है ! ऐसे लोगो के लिए देश बर्फ चुस्की और गन्ने कि गनेरी है ! जिन्हें चूसो और फेंक दो !
बातों का सिलसिला अभी चल ही रहा था कि वहां "आभा मित्तल जी" भी आ गयी अपनी एक नयी सुन्दर सी रचना को लेकर उनकी भी रचना को पढना जरूर बहुत उम्दा लेख लिखती है ! वह बात को आगे बढ़ते हुए बोली - बेटा विनय , अभी पिछले दिनों भ्रष्टाचार निरोधक विभाग ने कुछ अफसरों के घर छपे मारे ! ये सब दूसरी तीसरी श्रेणी के अधिकारी थे ! लेकिन जब इनके छापे पड़े तो पता चला कि इनके पास लाखो कि नकदी है , कई किलो सोना चांदी है ! एक अफसर ने तो अपने ड्राईवर के नाम पर ही पेट्रोल पम्प ले रखा था ! किसी के पास दस दस भूखंड निकले ! किसी के पास कॉलेज था ! अब इनसे पूछो कि भैया तुम्हारे पास इतना माल कहाँ से आया ? क्या धन कुबेर से कोई रिश्तेदारी निकाल आई है ? जी नहीं , यह सारा माल जनता का है और जनता रुपी वृक्ष से इन भ्रष्टाचारी अमरबेल रुपी अफसरों ने सोख लिया है !
इतने में ही वहां एक और धनुर्धर व्यंग्य बाणों के पहुँच गए "महेंदर करुणेश जी" , उन्होंने भी लगे हाथो कुछ बाण चलाये अपने अंदाज़ में बोले - हे अल्प आयु के जीव विनय सुनो - अफसरों कि क्या बात करे ? अपने नेताओं को ही ले लो ! अधिकाँश नेता ऐश के साथ रहते है ! हमने कहा - क्यों मजाक कर रहे हो ऐश के साथ तो अभिषेक रहता है ! बोले - अरे मेरे छोटे से बुलबुले - ऐश नहीं ऐशो आराम के साथ रहते है ! ये क्या कारोबार करते है ? क्या व्यवसाय करते है ? कितना टेक्स देते है ? सब कुछ इतना पर्दे में रहता है कि पता ही नहीं चल पाता ! चालिए आप सब आपको एक और बुद्धिजीवी से मिलवाता हूँ !
"गुरमीत मोक्ष" शायद उन्ही के हाथो इस अमरबेल को मोक्ष मिले - आभाजी , योगेश्वर जी , महेंदर जी संग मै भी चल पड़ा महेंदर जी के बैल गाडी में .........(आपको बता दूँ कि बैल गाडी प्रदुषण रहित यातायात का साधन है इसलिए इसका इस्तेमाल वर्तमान में लाजमी है )
गुरमीत जी एक नयी ग़ज़ल को लिख रहे थे देखते ही अपनी ग़ज़ल छुपा लिए क्योकि मै पहले भी उनकी एक ग़ज़ल को चुराने कि नाकाम कोशिश कर चूका हूँ ! बहरहाल, अमरबेल के विषय में उन्होंने कहा -अपने यहाँ अमरबेल दो तरह कि मिलती है - एक तो प्रत्यक्ष और दूसरी अप्रत्यक्ष ! प्रत्यक्ष तो सामने दिखती है इन्हें बड़ी आसानी से हटाया जा सकता है ! अमरबेल को हटाने का सबसे उत्तम उपाय है उसकी गर्भनाल को ही काट दिया जाये लेकिन उन अमरबेल का क्या किया जाये जो दिखाई ही नहीं देती ! छिपी रहती है और रस चूसती रहती है !
इतने में ही "वनिता" , "संध्या जी", "सोनिया जी", "संजय अवस्थी जी" , "वेद प्रकाश जी" सब के सब वहीँ आ गये और एक स्वर बोले - अरे कोल्हू के बैल विनय, तुम बस गोल गोल ही घूमते रहोगे कभी 'सुख' के पीछे कभी 'अमरबेल' के पीछे अरे.... कभी तो अपना स्तर बढाओ और जाते जाते यह दुर्लभ ज्ञान ले जाओ "अमरबेल हर जगह मिलती है ! जरा ध्यान से से देखो तो दफ्तर , घर, समाज सभी स्थलों पर अमरबेल फैली पड़ी है ! सरकार से वेतन लेकर मज़े करने वाले भी अमरबेल के वंशज है ! घर में भी अमरबेल मिल जाएगी ! एक भाई जी तोड़ मेहनत करता है ! दिन रात खटता है ! दूसरा आनंद उठाता है क्योकि वह माँ का दुलारा है , बाप का प्यारा है ! "
इस दुर्लभ ज्ञान को पाने के बाद मै सिर्फ इतना ही कहूँगा - "भाइयों और भाभियों ! अमरबेल से होशियार रहो इसे पनपने ना दो ! तुरंत काट कर फेंक दीजिये ! अगर अमरबेल कि तरफ आप लापरवाह रहे तो आपका हाल भी मेरी तरह और हमारे लोकतंत्र जैसा हो जायेगा ! हमे तो गुणीजनों का साथ मिल गया शायद आपको ना मिल सके !
विनय पाण्डेय
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