Monday, March 15, 2010

एक उदासी !!!

आज लिखने का मन नहीं कर रहा है क्योकि आज मुझमे "एक उदासी" है ! आज मेरी ज़िन्दगी में ऐसा पल आया जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं कि थी ! और इसलिए मै उदास हूँ !

बस .............आप लोगो कि यह ही आदत मुझे अच्छी नहीं लगती कि आप लोग मुझपर विश्वास नहीं करते !

क्यों.......................?

मै उदास नहीं सकता मै क्या कोई अलग ग्रह का वासी हूँ ! यह तो पूछना चाहीए ना.......कि क्यों उदास हो क्या बात है ? आप लोगो को मेरी उदासी में भी 'व्यंग्य' दिखता है ! जानते हो आज क्या हुआ ?
मेरे एक परम दोस्त "कुलभूषण " ने दूसरी शादी कर ली....वो भी अदालती शादी क्या होगा उसकी पहली पत्नी का ? कौन सोचेगा उसके बारे में ..........?

यह माना कि इतिहास भरा हुआ है इन सबसे अब "राजा दशरथ" को ही लीजिये उनकी पटरानी भले ही "कौशल्या" थी, लेकिन चलती सिर्फ नयी रानी "कैकई" कि थी ! "कृष्ण" पर भी "रुक्मणी" से ज्यादा "सत्यभामा" का प्रभाव था बस "राम" ही समझदार थे इसलिए एक ही विवाह किया ! "द्रोपदी" को भी जीवन भर ये ही मलाल रहा कि उसका पति "अर्जुन" उससे ज्यादा "सुभद्रा" कि लल्लो चप्पो करता था !

अजी ........जनाब फ़िल्मी दुनिया में तो पति और पत्नी ऐसे बदले जाते है जैसे अधोवस्त्र ! किसी भी शादी शुदा कि बीवी बनना फ़िल्मी जगत में कोई बड़ी बात नहीं है ! फिर चाहे वो "हेमा" हो या "श्रीदेवी"! हैरानी कि बात तो यह है कि इन दूसरी बीवियों के इस कृत्य को निजी जीवन कि घटना कहकर नज़रंदाज़ कर दिया जाता है ! ये दूसरी बीवियां सांसद तक बन जाती है !

अब आप जरा सर्वेक्षण करे तो आपको इस समाज में इतने सारे लोग नज़र आयेंगे, जिन्होंने एक पत्नी के रहते दूसरा ब्याह रचा रखा है ! पुराने ज़माने में गावों में बच्चो का जल्दी ब्याह हो जाता था ! यह ग्रामीण बच्चे जब बड़े होकर शहर में बड़े अफसर बन जाते थे तो सबसे पहले दूसरी शादी का बंदोबस्त करते थे ! एक गाँव वाली, एक शहर वाली
"राजा दुष्यंत" तक ने भी यह ही किया था ! उन्होंने वन में जाकर "शकुंतला" को गर्भवती किया और खुद नगर में भाग आया ! वो तो भला हो "कण्व ऋषि" का जो "शकुंतला" को लेकर भरे दरबार में ही पहुँच गए !

मै तो भैया .......सबसे पहले नंबर वन बीवियों से कहना चाहता हूँ ! " अरे .......बहनाओ ! जागो ! अपने हाथ में बेलन उठाओ और अपने पतियों से भिड जाओ! अपने अधिकारों को समझो ! अपने हक के लिए लड़ो ! अपने शोहरों को मुआवजा और भत्ता देने के लिए मजबूर कर दो ! भला चोर के कितने पाँव ?

कम्बख्त.......सारी छकड़ी ना भूल जाये तो मै अपना नाम बदल लूँगा ! सावधान मूंछधारी ! जैसे तुम दो पत्नियाँ रखते हो अब पत्नी भी दो दो पति रखेगी ऐसे में तुम्हारा क्या होगा? अगर ता ता थैया नाचने ना लगे तो मै भी विनय नहीं ! अरे भाई....... मेरे हमारे पूर्वज जरुर बन्दर थे पर उन बंदरों ने ही इंसान बनकर विवाह का आविष्कार किया था ! शादी आदमी को इज्जत बख्शती है! फिर आज के ज़माने में जहाँ दाल ६० रुपये किलो बिकती है वहां दो दो बीवी का रिस्क क्यों लेना !
हाय रे मूर्ख मानव ! तू कब समझेगा मुसीबत जितनी कम हो उतना ज्यादा अच्छा होता है !
अब आप ही बताये मैंने कोई व्यंग्य किया ! नहीं......... क्योकि आज मेरा लिखने का मन ही नहीं था क्योकि आज "एक उदासी" है मेरे मन में !
विनय पाण्डेय

2 comments:

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  2. Saadi bhashaa, saadey vichaar.

    Bhaut khoob likha. Badhaai

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